Wednesday 17 July 2013

काश ! मैं बच्चा होता


         माँ ! माँ ! मैं फिर से बच्चा बनना चाहता हूँ | मुझे अपने आंचल में छुपा लो माँ ! मुझे वही कहानी सुनाओ जो सुनाया करती थी | मैं इस देश दुनियां से अनभिज्ञ रहना चाहता हूँ | मैं इन लोगों का रुदन बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा | भ्रष्टाचार की डरावनी चीखें, भूखमरी के  विलाप से अच्छा है कि मैं बच्चा ही रहूँ,  कभी बड़ा न होऊं  |

काश ! मैं बच्चा होता,
खाता खेलता हँसता,
लोरी सुनकर सोता,
काश ! मैं बच्चा होता |

काश ! मैं बच्चा होता,
सुख सपनों में खोता,
चाद तारों के लिए रोता,
काश ! मैं बच्चा होता |

काश ! मैं बच्चा होता,
नानी, दादी से कहानी सुनता,
माँ के आंचल में छुपकर सोता,
काश ! मैं बच्चा होता |

काश ! मैं बच्चा होता,
माँ के हाथों रोटी खाता,
भूखमरी, बेरोजगारी से न रोता,
काश ! मैं बच्चा होता |

Saturday 6 July 2013

क्यों ? क्यों ? क्यों ?



    मै चुप हूँ, क्यों ? क्योंकि मैं दर्द से व्याकुल हूँ | घुटन हो रही है, मैं दर्द का बयाँ किससे करूं | क्यों करूं ? मेरे लिए चुप रहना क्यों बहुत अहम है ? क्योंकि अपना दर्द बयाँ करते हुए डर लगता है | यदि मैं ईश्वर से कहूँ तो , ईश्वर सर्वव्यापक है उनसे कहने की जरूरत ही क्या है | वह सब देख रहा है | फिर ऐसी लीला क्यों ? यदि मैं इंसान से कहूँ तो क्यों ? जो संवेदनहीन हो गया, अपनी मानवता को खो चुका है और दरिंदगी को अपना लिया है | इससे तो अच्छा है मैं चुप ही रहूँ लेकिन ये आंसुओ का सैलाब जो मेरे नेत्र से निकल रहे हैं | इसे कैसे बंद करूं या उस इंसानियत को खोजने की कोशिश करूं जो कहीं खो गयी है | नही मुझे अब इंसानियत में भी खोट नजर आ रही है | सत्य में भी असत्य की झलक महसूस हो रही है | ये मैं क्यों कह रही हूँ क्योंकि मैं भी सशंकित हूँ | क्या सत्य है क्या असत्य है, मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है |
                                   - समाज में व्याप्त इंसान की संवेदनहीनता के लिए