tag:blogger.com,1999:blog-12498771542379267172024-02-21T19:42:05.033+05:30मेरी भावनाएं.../कंचनलता चतुर्वेदीकंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.comBlogger316125tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-72642153323505235142020-11-01T13:26:00.003+05:302020-11-01T13:26:47.012+05:30मुक्तक<div>01/11/2020</div><div>नमन मंच</div><div>2122/ 2122/ 212</div><div>उड़ गया पंछी ठिकाना छोड़कर।</div><div>चल दिया वो तो जमाना छोड़कर।</div><div>सच यही है कर्म रहता है यहां,</div><div>हैं सभी जाते खजाना छोड़कर।</div><div>कंचन लता चतुर्वेदी</div><div>वाराणसी</div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-85837330784431312882020-11-01T13:26:00.001+05:302020-11-01T13:26:02.613+05:30मुक्तक<div>01/11/2020</div><div>नमन मंच</div><div>2122/ 2122/ 212</div><div>बस दिलों में अब सताना छोड़कर।</div><div>सब को' हैं जाना खजाना छोड़कर।</div><div>बद दुआ ना अब किसी की भी मिले,</div><div>प्रेम धन बांटो बहाना छोड़कर।</div><div>कंचन लता चतुर्वेदी</div><div>वाराणसी</div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-4273436903456065752020-10-30T14:16:00.001+05:302020-10-30T14:16:43.173+05:30मुक्तक<div>नेकी की' राह हमको' दिखाकर चले गए l</div><div>दिल से वो' द्वेष - भाव हटाकर चले गए ll</div><div>मन तो हुआ फ़कीर ये' जीवन सँवर गया l</div><div>ऐसा हमें महीप बनाकर चले गए...</div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-7623833562250936992020-10-28T14:32:00.001+05:302020-10-28T14:32:35.838+05:30मुक्तक<div>221 2122 1221 212</div><div>वो ख्वाब तो दिखाए दिखाकर चले गए।</div><div>दिल में मुझे बसाए बसाकर चले गए।</div><div>मैं देखती रही रास्ते बैठकर यहां,</div><div>समझा जिसे जिंदगी भुलाकर चले गए।</div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-36760650894532873492020-10-19T15:39:00.001+05:302020-10-19T15:40:19.132+05:30muktak<div>19/10/2020</div><div>सोमवार</div><div>1222. 1222. 1222</div><div><br></div><div>गरीबों को बसाने का हुनर सीखो।</div><div>किसी का ग़म चुराने का हुनर सीखो।</div><div>नहीं छोड़ो अकेले राह में उनको,</div><div>गले उनको लगाने का हुनर सीखो।</div><div>कंचन लता चतुर्वेदी</div><div>वाराणसी</div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-32794535442711654952020-10-19T15:38:00.001+05:302020-10-19T15:38:40.149+05:30muktk<div>1222-1222-1222</div><div>कलम को भी चलाने का हुनर सीखो।</div><div>नहीं कविता चुराने का हुनर सीखो।</div><div>गमों को ढाल गजलों में बहर में लिख,</div><div>उसे पढ़कर सुनाने का हुनर सीखो।</div><div>कंचन लता चतुर्वेदी</div><div>वाराणसी</div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-10632563622912716142020-10-04T18:43:00.001+05:302020-10-04T18:43:19.753+05:30मुक्तक<div><br></div><div>1222 1222 1222 1222</div><div>जहां ईमान बिकता है वहां आचार क्या देखें।</div><div>जहां दूषित रहे परिवेश तो सत्कार क्या देखें।</div><div>नशा में लत नहीं इज्जत नहीं दिखता भला मानुष,</div><div>वहां हम प्रेम या विश्वास या अधिकार क्या देखें।</div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-42114807089200060472020-08-26T14:06:00.001+05:302020-08-26T14:06:50.457+05:30मुक्तक<div><br></div><div>2122 2122 2122 212</div><div>दोस्तों के बीच गद्दारी कहाँ से आ गई।</div><div>था घना ये प्रेम मक्कारी कहाँ से आ गई।</div><div>फासला बढ़ने लगा था पाटना जिसको हमें,</div><div>भाइयों के बीच लाचारी कहाँ से आ गई।</div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-90676694968466650972020-08-26T14:05:00.001+05:302020-08-26T14:05:14.169+05:30मुक्तक<div><br></div><div>2122 2122 2122 212</div><div>अब अचानक ही ये दुश्वारी कहाँ से आ गई।</div><div>जानना मुश्किल कि बीमारी कहाँ से आ गई।</div><div>अब सभी अपने घरों में कैद हैं ज्यों जेल हो,</div><div>ओह ऐसी यार लाचारी कहाँ से आ गई।</div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-87203248713373259172020-08-22T11:47:00.001+05:302020-08-22T12:03:10.022+05:30कुछ यूं हीजब हम पहली बार मिले थे।<div>इन अधरों पर फूल खिले थे।</div><div>एक झलक ने ऐसा छेड़ा</div><div>मेरे दिल के तार हिले थे।</div><div><br></div><div>दिल की घण्टी खूब बजी थी।</div><div>नैनो में बस प्रीत सजी थी।</div><div>साजन तेरी खातिर मैं तो,</div><div>निज बाबुल का गेह तजी थी।</div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-57162064552087278732020-08-21T19:29:00.001+05:302020-08-21T19:29:55.413+05:30मुक्तक<div><br></div><div>212 212 212 212</div><div>शिव कृपा आपकी ही सदा चाहिए।</div><div>शीश पर हाथ हो और क्या चाहिए।</div><div>हर कदम पर हमें साथ उनका मिले,</div><div>गम रहे दूर ऐसी दुआ चाहिए।</div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-33196159346876011912020-08-20T20:41:00.001+05:302020-08-20T20:41:53.909+05:30मुक्तक<div>20/08/2020</div><div>2122 2122 2122</div><div>द्वेष उर से मैं मिटाना चाहती हूँ।</div><div>राह के काँटे हटाना चाहती हूँ।</div><div>फूल पग पग पर खिले ऐसा करें हम,</div><div>इक जहां ऐसा बसाना चाहती हूँ।</div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-9541217030323415382020-08-20T15:38:00.001+05:302020-08-20T15:38:29.630+05:30मुक्तक<div>मुक्तक</div><div>122 122 122 122</div><div>न हमसे करो इस तरह तुम किनारा।</div><div>चलो हम बनें दूसरे का सहारा।</div><div>यहाँ छोड़कर सब है जाना सभी को,</div><div>नहीं कुछ तुम्हारा नहीं कुछ हमारा।</div><div><br></div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-71749514466099811822020-08-20T15:37:00.001+05:302020-08-22T11:43:16.118+05:30जल ही जीवन है<div><br></div><div>20/08/</div><div>प्रदत्त शब्द-जल हल कल</div><div>मुक्तक</div><div><br></div><div>नीर नहीं तो कैसा कल है।</div><div>जीवन तब जब भू पर जल है।</div><div>नीर बचाना सीखो मानव,</div><div>जल संरक्षण इसका हल है।</div><div><br></div><div>धरती पर जब जल बिखरेगा।</div><div>बोलो कल कैसे निखरेगा।</div><div>नीर बचाओ तो जीवन है,</div><div>इस हल से जीवन संवरेगा।</div><div><br></div><div>जल बिन कैसे कल पाओगे।</div><div>अपनी प्यास बुझा पाओगे।</div><div>नीर बचे कैसे अब सोचो,</div><div>सोच लिया तो हल पाओगे।</div><div><br></div><div>आकर बादल प्यास बुझाते।</div><div>धरती के मन को सहलाते।</div><div>जीव जंतु भी खुश हो जाते,</div><div>यूं खुशियों की राह सजाते।</div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-6753103141989488182020-08-18T19:49:00.001+05:302020-08-18T19:49:43.376+05:30मुक्तक<div>एक कोशिश</div><div>2122 2122 2122</div><div>जिन्दगी को मैं सजाना चाहती हूँ।</div><div>कुछ नया करके दिखाना चाहती हूँ।</div><div>है कठिन यदि ये डगर तो क्या हुआ जी,</div><div>सत्य का इक पथ बनाना चाहती हूँ।</div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-87093547282841469272020-08-17T16:52:00.001+05:302020-08-20T15:42:20.615+05:30हरिगीतिका छंद में ईश वंदना<div><br></div><div><br></div><div>कर जोरि है विनती हमारी हे प्रभो!स्वीकार कर,</div><div>तुझको नमन उपकार कर सबका यहाँ अभिमान हर।</div><div>बस प्रेम का दीपक जले दिल से कपट अब दूर हो,</div><div>हम साथ मिलकर ही चले मद में न कोई चूर हो।</div><div>तम छा गया विपदा हरो भयभीत है जन जन यहाँ,</div><div>आयी शरण मैं आपकी बोलो तुम्हीं जायें कहाँ।</div><div>ताला खुला पर कैद में लगता बँधे हैं जेल में,</div><div>अब कौन सी गोटी चलें शतरंज के इस खेल में।</div><div>इक व्यूह रचकर है खड़ा हमको यहाँ ललकारता,</div><div>हिम्मत नहीं की लड़ सकूं अब मन नहीं स्वीकारता।</div><div>दुख बन घटा में छा गया प्रभु बन पवन आओ यहाँ,</div><div>ले जा उड़ा कर अब इसे आये न अब मुड़कर यहाँ।</div><div>दिन-रात करते आरती हम बैठ तेरे द्वार पर,</div><div>आये शरण हम आपकी अब जिंदगी से हार कर।</div><div>प्रभु प्रेम में बलिदान जो अपना मनुज जीवन करे,</div><div>हरदम झुकाये शीश जो प्रभु क्लेश को क्षण में हरें।</div><div><br></div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-83576365196043388662020-08-13T20:45:00.001+05:302020-08-13T20:45:15.035+05:30जय श्री कृष्णा<div><br></div><div>जब जन्में गोपाल जी, थी अंधियारी रात।</div><div>छाई थी काली घटा, खूब हुई बरसात।।</div><div><br></div><div>मोर मुकुट है शीश पर,श्याम वर्ण गोपाल।</div><div>मक्खन खाते चाव से,नटखट सुंदर लाल।।</div><div><br></div><div>माखन की चोरी करें,नंद दुलारे लाल।</div><div>मात देख झट से छुपे,नटखट थे गोपाल।।</div><div><br></div><div>नटखट है इनकी अदा, करते सबसे प्रीत।</div><div>अपनी इक मुस्कान से,लेते मन को जीत।।</div><div><br></div><div>जन जन के उर में बसे,चुलबुल नंदकिशोर।</div><div>गोकुल की ये गोपियां,कहती माखन चोर।।</div><div><br></div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-71792287842272831752020-07-29T15:33:00.001+05:302020-07-29T15:33:50.923+05:30आलू पर दोहे<div><br></div><div><br></div><div>आलू के है गुण बड़े, यह सब्जी का भूप।</div><div>होता गोल मटोल-सा, इसका रूप अनूप।।</div><div><br></div><div><br></div><div>छिप कर रहे जमीन में, बढ़े मिले जब खाद।</div><div>व्यंजन बनते हैं कई, इसका अच्छा स्वाद।।</div><div><br></div><div><br></div><div>जनमें धरती गर्भ से, रक्षा करे किसान।</div><div>बेचे अच्छे भाव में, और बने धनवान।।</div><div><br></div><div><br></div><div>नहीं जलन की भावना,करता सबसे प्रीत।</div><div>सबके दुख में साथ दे, बनकर उसका मीत।।</div><div><br></div><div><br></div><div>मानव तुम भी सीख लो, ऐसा जीवन भोग।</div><div>खून खराबा द्वेष सब, है जीवन के रोग।।</div><div><br></div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-46548794722609505912020-07-04T15:53:00.001+05:302020-07-04T15:53:58.751+05:30बिटिया पर दोहे<div><br></div><div>1-</div><div>बिटिया से दुल्हन बनी, पीहर से ससुराल।</div><div>जहाँ सभी अनजान हैं, कौन रखेगा ख्याल।।</div><div><br></div><div>2-</div><div>मैं आँगन की दीप थी,और खुशी का द्वार।</div><div>चली पिया के गाँव मैं, ले पीहर का प्यार।।</div><div><br></div><div>3-</div><div>धागा हो यदि नेह का, देता रिश्ते जोड़।</div><div>अगर बुने ये जाल तो, देता बन्धन तोड़।।</div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-28458461415104695222020-07-03T10:17:00.001+05:302020-07-03T10:17:53.307+05:30गिलहरी<div><br></div><div>1-</div><div>तीन धारियाँ पीठ पर, तेरी चपल निगाह।</div><div>मुश्किल होता समझना, तेरे मन की थाह।।</div><div><br></div><div>2-</div><div>लम्बी तेरी पूंछ है, गिल्लू तेरा नाम।</div><div>जीवन बस दो साल का, दिन भर करती काम।।</div><div><br></div><div>3-</div><div>मन को भाती ये सदा, खूब दिखाती खेल।</div><div>भोजन करती संतुलित,सबसे रखती मेल।।</div><div><br></div><div>4-</div><div>रखती तन में विष नहीं,नहीं कपट व्यवहार।</div><div>मतलब है निज काम से,और प्रकृति से प्यार।।</div><div><br></div><div>5-</div><div>देख दूर ये भागती, कभी करें ये शोर।</div><div>चुलबुल बच्चों सी लगे,और लगे चित चोर।।</div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-43882231691707974442020-06-30T14:03:00.001+05:302020-06-30T14:03:06.235+05:30देश भक्ति पर दोहे<div><br></div><div><br></div><div>लिए तिरंगा हाथ में,ये हैं वीर जवान।</div><div>कदम मिलाकर चल रहे, हैं भारत की शान।।</div><div><br></div><div>रक्षा करते देश की, होकर ये कुर्बान।</div><div>चलो बढायें जोश हम,रखकर इनका मान।।</div><div><br></div><div>आन बान ये शान हैं, चलो करें जयगान।</div><div>जियें हजारों साल ये,भारत के अभिमान।।</div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-85647891399899774282020-06-24T17:34:00.001+05:302020-07-13T15:57:11.426+05:30प्रकृति का महत्व<div>1-</div><div>मत काटो तुम वृक्ष को,ये जीवन के अंग।</div><div>इनके बिन जीवन कहाँ, भरते यही उमंग।</div><div><br></div><div>2-</div><div>प्रकृति सम्पदा हैं बड़ी,इसको पल पल तोल।</div><div>श्वास बिना सुन हे मनुज,क्या जीवन का मोल।।</div><div><br></div><div>3-</div><div>हे मानव नादान तू,मत जीवन को भूल।</div><div>धरती से यदि तरु हटे, होगा नष्ट समूल।।</div><div><br></div><div>4-</div><div>धरती के शृंगार है,इनसे कर लो प्यार।</div><div>वृक्षों ने हमको दिया,ये सुंदर संसार।।</div><div><br></div><div>5-</div><div>पेड़ कटे जीवन घटे, नहीं मिले सुख धाम।</div><div>पेड़ बढ़े जीवन मिले, करें पथिक विश्राम।।</div><div><br></div><div>6-</div><div>मेघ प्रीत बरसा रहा,जैसे हो उपहार।</div><div>सज जायेगी अब धरा,कर नूतन शृंगार।।</div><div><br></div><div>7-</div><div>गीत सलोने गा रहे,मेघ सजायें साज।</div><div>सात सुरों के साथ हैं,बारिश बूँदे आज।।</div><div><br></div><div>8-</div><div>नहीं प्रकृति हैं जल बिना,नहीं सकल संसार।</div><div>पानी बिन जीवन कहाँ, जल जीवन आधार।।</div><div><br></div><div>9-</div><div>नदियाँ परहित में बहे,नहीं करें अभिमान।</div><div>पशु पक्षी इंसान को,जीवन करे प्रदान।।</div><div><br></div><div>10-</div><div>पानी बिन सब सून है,नदियाँ बनती रेत।</div><div>जल जीवन आधार है,मानव रहो सचेत।।</div><div><br></div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-53067171612251637702020-06-24T10:58:00.001+05:302020-06-24T10:58:03.692+05:30दोहा मुक्तक<div><br></div><div>सगुण भक्ति दो रूप में,कृष्ण भक्ति अरु राम।</div><div>मूल कथा इस काल के,राम और हैं श्याम।</div><div>सूरदास जी ने किया,मोहन का गुणगान,</div><div>मूरत थे आदर्श के,तुलसी के श्री राम।</div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-1763096092361485472020-06-23T12:55:00.001+05:302020-06-23T12:55:32.907+05:30दोहा मुक्तक<div><br></div><div>(2)</div><div>अब कागज के फूल से,सभी सजाते द्वार।</div><div>देख अपरचित से लगे,दिखती नहीं बहार।</div><div>कलयुग है कंचन सुनो, सब हैं माया जाल,</div><div>सूरत चिकनी झूठ की,जिससे करते प्यार।</div><div><br></div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1249877154237926717.post-46641132169664679222020-06-22T15:40:00.001+05:302020-06-22T15:40:56.137+05:30दोहा मुक्तक<div>नमन मंच</div><div>दोहा मुक्तक प्रतियोगिता</div><div>22/06/2020</div><div>सोमवार</div><div>विधा-दोहा मुक्तक</div><div>(1)</div><div>हार गई मैं सत्य कह,कौन रखे अब मान।</div><div>दीवानें अब झूठ के,झूठी है मुस्कान।</div><div>सत्य भले लगता कठिन,देता ये विश्वास,</div><div>देख रही पर झूठ अब,बन बैठा बलवान।</div><div>कंचन लता चतुर्वेदी</div><div>वाराणसी</div>कंचनलता चतुर्वेदीhttp://www.blogger.com/profile/09264087232186686865noreply@blogger.com0