Sunday 9 December 2012

दहेज/Old Post-6

      दहेज प्रथा ने आज सम्पूर्ण समाज को इतने प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया हैं कि व्यक्ति,परिवार तथा समाज के जीवन में विघटन की दशा उत्पन्न हो गयी हैं। इसका सबसे बडा़ दुष्परिणाम पारिवारिक विघटन के रूप में हमारे सामने आया हैं। जब कभी भी वर पक्ष को दहेज में इच्छित सम्पत्ति और उपहार प्राप्त नही होते तो इसके बदले नव-वधू को तरह- तरह से अपमानित किया जाता हैं। इससे नव दम्पत्ति का पारिवारिक जीवन विघटित हो जाना बहुत स्वभाविक हैं। दहेज प्रथा स्त्रियों की समाजिक स्थिति को गिराने वाला एक प्रमुख कारण सिद्ध हुई हैं। इसके कारण प्रत्येक परिवार में पुत्री के जन्म को एक भावी विपत्ति’ के रूप में देखा जाने लगा हैं। इसी कारण लड़कियों को पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में लड़्को के समान अधिकार प्राप्त नही हो पाते। दहेज व्यक्तियों में ऋणग्रस्तता की समस्या को अत्यधिक बढ़ावा दिया हैं। दहेज का प्रबंध करने के लिए अधिकांश व्यक्ति या तो ऋण पर निर्भर होते हैं या सम्पूर्ण जीवन अपने द्धारा उपार्जित आय का स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग नही कर पाते। भारत में जैसे-जैसे दहेज प्रथा की समस्या गम्भीर होती जा रही हैं। नव विवाहित स्त्रियों द्धारा की जाने वाली आत्महत्याओं की संख्या भी बढ़ती जा रही हैं। यह समस्या समाज के सम्भ्रांत, समृद्ध और सशक्त वर्ग से सम्बंधित होने के कारण यह जानना भी कठिन हो जाता हैं कि ऎसी दुर्घटना को हत्या कहा जाय या आत्महत्या। जैसे- जैसे स्त्रियाँ दहेज के विरुद्ध जागरुक होती जा रही हैं, उनकी समस्या सुलझने के स्थान पर और अधिक जटिल बनती जा रही हैं। भारत में दहेज प्रथा उन्मूलन करने के लिए सरकार ने सन १९६१ में एक दहेज निरोधक अधिनियम लागू किया लेकिन असफल रहा। इस अधिनियम को अधिक प्रभावपूर्ण बनाने के लिए सरकार ने सन १९८३ में कानून मे संशोधन किया इसके अतिरिक्त सरकार ने सन १९८५ में भी एक नया कानून बनाया जिसे ‘दहेज निरोधक अधिनियम १९८८’ कहा गया। यह सम्पूर्ण भारत में २ अक्टूबर १९८५ में लागू हो गया। इन सब प्रयत्नों के बाद भी यह हैं कि सरकार का कोई भी वैधानिक अथवा प्रशासकीय प्रयत्न दहेज की समस्या को कम नही कर सका। दहेज के इस कलंक को मिटाने के लिए समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता हैं। इस अभिशाप को मिटाने के लिए युवक और युवतियों को सजग होकर इसका विरोध करना चाहिए। इस दहेज रूपी दानव से युवक ही मुक्ति दिला सकते हैं यदि वे यह संकल्प कर ले कि हम बिना दहेज का विवाह करेंगे तो दहेज माँगनेवालो को कड़ी से कड़ी सजा दिला सकते हैं। इससे हमारे समाज से दहेज लोभी अवश्य दूर हो जायेंगे।है न...

6 comments:

  1. दहेज के इस कलंक को मिटाने के लिए समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता हैं। इस अभिशाप को मिटाने के लिए युवक और युवतियों को सजग होकर इसका विरोध करना चाहिए।

    Aapki baat se sahmat hoon.
    Reply
  2. यदि वे यह संकल्प कर ले कि हम बिना दहेज का विवाह करेंगे तो दहेज माँगनेवालो को कड़ी से कड़ी सजा दिला सकते हैं। इससे हमारे समाज से दहेज लोभी अवश्य दूर हो जायेंगे...


    सही कहा आपने ....!!
    Reply
  3. आश्चर्य है कि अभी भी लोग इसे लेने और देने में विश्वास रखते हैं। लेखनी से एक अच्छा प्रयास किया है इस सामाजिक समस्या से निबटने का।
    Reply
  4. nahin main aapse sahmat nahin .. har samsya ka samadhan uske karno mein chhipa hota hai..dahez ladki ko uske pita se milne wala vah dhan hai jo use pita ki sampati se milna tha yadi vah ladka hoti .. galti dahhez mein nahi uske anupalan mein hai.. na ladki ke mata pita ko na hi var paksh ke logon ko ye adhikar hai ki ladki ke bhag ke is dhad ko idhar udhar ki vyarhttaon aur dikhavon mein ujad dein ..ye poori kadai ke sath ladki ke nam se bank ya kisi jaydad ke roop mein surkshit rahna chahiye.. (koi sarkari agency iski custodian honi chahiye)..(iska pata bhi ladki ke pita aur ladki ke siva anay kisi ko nahin hona chahiye..) jo ya to bahut aadey samay mein ya aage bacchon ke kam aa sake.. iske liye jaroori hai ki shadi ki rasmey bahut sadgi se hon .. var paksh par bhi koi dvab nahin hona chahiye..behtar ho ki shadiyan court mein ragistar hon 5-5 log dono pakshon se aayein bat khatam .. aaj ke samay ko dekhte hue shadi to bahut hi vyarth si cheez lagne lagi hai ..mujhe lagta hai matrisatatmak samaj bhi achha vikalp ho sakta hai..ye bahas kisi sahi nishkarsh tak pahoonchey bina ab rukni nahin chahiye.. osho ne ek bat kahi thi aadhe adure man se ladi jane wali koi bhi ladai hare jane ke liye hoti hai
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  5. बहुत सही जगह प्रहार कर रही हैं आप। यह प्रथा ,परम्परा या लालच सभ्य समाज पर अभिशाप है।
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  6. Dahej ka swaroop aaj bhale hi badal gaya hai lekin wah aaj bhi kam ghatak nahi..
    bahut badiya aalkeh..aabhar!
    Reply

वॄक्ष / Old Post-5

      हमारी संस्कृति वन-प्रधान हैं। ॠग्वेद जो हमारी सनातन शक्ति का मूल हैं,वन देवियों की अर्चना करता हैं। मनु स्मॄति में वन-बिच्छेदक को पापी बतलाया गया हैं। अग्नि पुराण भी वॄक्ष की पूजा पर जोर देता हैं। वनो की छाया में हमने जन्म लिया और वही हमारा विकास हुआ। हमारे पूर्वज वनों के आर्थिक मह्त्व से भी परिचित थे। वे जानते थे कि वन हमारे आर्थिक जीवन की रीढ़ हैं। इस लिए वन को देवता समझ वे उसकी पूजा करते थे। एक दिन वह था जब आध्यात्मिक विकास के लिए सुन्दर स्थान जंगल ही समझा जाता था। साधु, संन्यासी दुनिया से विराग ले, ईश्वर प्राप्ति के लिए जंगलो में ही जाते थे। भारतीय इतिहास का बहुत बड़ा पॄष्ठ, भारतीय संस्कॄति का बहुत बड़ा अंग इन जंगलों के साथ संबंधित हैं। इन जंगलो के शांत वातावरण में ही हमारे अतीत की महानता सुरक्षित हैं। हमारे भोजन और हमारे स्वास्थ्य का अविरल स्रोत जंगल ही हैं। अपनी सुरक्षा के लिए जंगलो की सुरक्षा नितांत आवश्यक हैं। हमारे शरीर के स्वरूप का निर्माण पंचमहाभूतों-पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश तथा वायु के मिलने से हुआ। पृथ्वी से शरीर का मूर्त स्वरूप बना, जल उत्पत्ति का कारण हुआ, अग्नि, और आकाश सहायक तत्व रहे और वायु जीवित रहने का माध्यम हुई। प्रकृति प्रदत्त पेड़- पौधे, हरे- भरे वन सभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के जीवन को प्रभावित करती हैं। पेड़- पौधो कोधरती के हरे फेफडे़कहा जाता हैं। ये दिन की धूप में अपना भोजन बनाने के दौरान मानव जीवन हेतु आक्सीजन छोड़ते हैं तथा कार्बन-डाई-आक्साइड गैस ग्रहण करते हैं। पेड़- पौधे जल के भी अच्छे संग्राहक हैं।वनों ने अनेक जीवनदायिनी औषधियों को सुरक्षित रखकर उनका संर्वधन करके मानव के स्वास्थ्य में अपना महत्वपूर्ण योगदान किया हैं। यदि इनकी सुरक्षा की जाये तो मानव- जीवन खतरे में पड़ जायेगा। पेड़ हमारे आदिम पूर्वजों के पडो़सी, सहचर रहे हैं। वे आज भी उसी हालत में है जैसे पहले हमारे साथ थे लेकिन हम सभी आज उन्ही पेडो़ से शत्रुता नफरत करते जा रहे हैं। फिर उन बेचारे पेडो़ में वनो में किसी भी प्रकार का परिर्वतन नही हुआ।ये हमें फल, फूल, छाया, हवा, ईधन, आवास-निवास एवं सही जीवन देते हैं। इसके बदले हम उनको उजाड़ते हैं लेकिन धरती का हर पेड़ किसी किसी प्रकार से अपना अलग ही महत्व रखता हैं। घास-फूस तो जडी़ बूटियां हैं। अत: धरती पर जन्मी सभी वस्तुएं रक्षणीय और पूजनीय हैं। हमें उनकी रक्षा करनी चाहिए।...........
पेड़ होता नही तो पवन भी नही।
ये धरा भी नहीं ये चमन भी नही।
पेड़ ही से पवन शुद बहता सदा।
शुद्ध होता है पर्यावरण आपका
पेड़ से ही बरसते हैं बादल सभी।
और इनकी वजह से है बहती नदी।
अन्न देते हमें, फल ये देते हमें।
आओ हम मिल के पेड़ों की रक्षा करें।

16 comments:

  1. बहुत अच्छा आलेख है!
    Reply
  2. प्रकृति और वृक्ष के उपर आपका आलेख प्रशंसा के पात्र है..
    बधाई...
    Reply
  3. बहुत अच्छी और सार्थक पोस्ट...हमें पर्यावरण की रक्षा हर कीमत पर करनी ची चाहिए वर्ना आने वाली पीढियां हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी...
    नीरज
    Reply
  4. पर्यावरण के प्रति आपकी चिंता मन को व्यथित करती है !
    हम कब चेतेंगे
    प्रकृति के साथ कब तक छेड़ छाड़ करते रहेंगे ?

    सार्थक पोस्ट ... सुन्दर लेखन
    शुभकामनायें
    Reply
  5. वृक्षों की महिमा जग जानी।
    { Treasurer-S, T }
    Reply
  6. aapki bhasha kaafi bhari bharkam hai....sirf grahini to nahi lagti aap...khair kaafi achha likhti hain..aapke blog par aa kar achha laga
    Reply
  7. सर्वोपयोगी जानकारी एक बेहतर दृष्टिकोण के साथ। इस ब्‍लॉग के अन्‍य लेख भी पढ़ने की उत्‍सुकता जाग गई है।
    Reply
  8. vaah.....aap to badaa acchha kaam kar rahi hain... aapke blog par aakar badaa acchha lagaa....sach.....!!
    Reply
  9. Interesting nd useful post.thnx for this. go on.....
    Reply
  10. सुंदर और उपयोगी पोस्ट।
    Reply
  11. उपयोगी जानकारी
    प्रकृति और वृक्ष के उपर आपका सार्थक लेख
    शुभकामनायें



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    Reply
  12. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए शुक्रिया!
    मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
    Reply
  13. Lekh aur kavita dono hi vicharotezak hain.Shubkamnayen.
    Reply

समाज का प्रतिबिम्ब/Old Post-4

    साहित्य समाज का वह परिधान है जो जनता के जीवन के सुख-दुख, हर्ष-विषाद, आकर्षण-विकर्षण के ताने-बाने से बुना जाता है। वह जीवन की व्याख्या करता है, इसी से उसमें जीवन देने की शक्ति आती है। वह मानव को, उसके जीवन को लेकर ही जीवित है, इसलिये वह पूर्णत: मानव-केन्द्रित हैं। मानव सामाजिक प्राणी है। सामाजिक समस्याओं, विचारों तथा भावनाओं का जहाँ वह स्रष्टा होता है, वही वह उनसे स्वयं भी प्रभावित होता हैं। इसी प्रभाव का मुखर रूप साहित्य हैं। साहित्य का अर्थ हैं- जो हित सहित हो।भाषा द्वारा ही साहित्य हितकारी रूप में प्रकट होता हैं। उसी के द्वारा मानव-समाज में एक दूसरे के सुख-दुख में भाग लेने का सहकारिता का भाव उत्पन्न होता हैं। साहित्य मानव के सामाजिक सम्बंधों को और भी दॄढ बनाता हैं, क्योंकि उसमें सम्पूर्ण मानव जाति का हित सम्मिलित रहता हैं। साहित्य साहित्यकार के भावों को समाज में प्रसारित करता हैं जिससे सामाजिक जीवन स्वयं मुखरित हो उठता हैं।साहित्य का आन्नद लेने के लिए हमें सतोगुणात्मक वृत्तियों में रमने का अभ्यास हो जाता हैं। साहित्य सेवन से मनुष्य की भावनाएँ कोमल बनती हैं।उसके भीतर मनुष्यता का विकास होता हैं, शिष्टता और सभ्यता आती हैं। आप आँख दिखाकर किसी को वश में नही कर सकते। केवल मधुर और कोमल वाणी ही ह्दय पर प्रभाव डालती हैं और उसके द्वारा आप दूसरों से मनचाहा कार्य करा सकते हैं। तुलसी भी इस बात को स्वीकार करते हैं---

तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।
वशीकरण इक मंत्र हैं,परिहर वचन कठोर॥

साहित्य का कान्ता-सम्मित मधुर उपदेश बडा प्रभावकारी होता हैं। केशव के एक छंद ने बीरबल को प्रसन्न कर राजा इन्द्रजीत सिंह पर किया हुआ जुर्माना माफ करवा दिया था। बिहारी के एक दोहे ने राजा जयसिंह का जीवन बदल दिया था। इस प्रकार साहित्य हमारे बाहय और आन्तरिक जीवन को निरन्तर प्रभावित करता रहता हैं। समाज और साहित्य का सम्बंध अनादि काल से चला आ रहा हैं। बाल्मिकी ने अपनी रामायण में एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था का चित्रण कर अपने दृष्टिकोण के अनुसार समाज के विभिन्न पहलुओं की विवेचना करते हुए यह सिद्व किया कि मानव- समाज किस पथ का अनुसरण करने से पूर्व संतोष और सुख का अनुभव कर सकता हैं। तुलसी ने भी अपने समय की सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित होकर रामराज्य और राम परिवार को मानव समाज के सम्मुख आदर्श रूप में प्रस्तुत किया। अत: साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब हैं।

5 comments:

  1. kanchan ji,
    pehle toh bahut bahut shukriya ki aapne mujh nacheez ke blog pe aa ke comment kiya....
    aur ab main ye kehna chahunga ki sahitya he ek aisa pul he jo ek nahi anek sanskritiyon ko jodta hai...
    bahut achha likha hai aapne...
    main aapka follower ban raha hoon aata rahunga.....
    asha hai aap bhi aati rahegi apni kripamay salaah aur tippaniya dene....
    Reply
  2. Achcha laga aapke blog par aakar.shubkamnayen.
    Reply
  3. तुलसी के समय में साहित्य महान चरित्रों द्वारा लिखा गया। अब उस पर बौनों का साम्राज्य है! :-)
    Reply
  4. bahut accha laga sahity ko lekar is prkar ka chintan केशव के एक छंद ने बीरबल को प्रसन्न कर राजा इन्द्रजीत सिंह पर किया हुआ... IN PRSANGON KO THODA AUR VISTAR MILNA CHAHIYE TAKI MERE JAISE LOGO KO KUCHH JANKARI MIL SAKE ..YE MATR REQUEST HAI ANAYTHA NA LEIN ...KUL MILA KAR AAPKE BLOG PAR AANA ACHHA LAGA.
    Reply

आशा/Old Post-3

आशा सदा हमारे साथ है। दुखमय संसार में आशा ही वह चीज हैं जिसके बल पर मनुष्य जीता हैं।हम दुख सहते हैं, कष्ट झेलते हैं, मुसीबतो का सामना करते हैं, इसी आशा पर कि एक दिन सुख आयेगा। यही आशा हमारी जिन्दगी हैं। जिस दिन वह साथ छोड देगी उस दिन हम दुनिया का साथ छोड देगे। ईश्वर ने जब विश्व की रचना की तो उन्होने दुख के समय मनुष्य को ढाढस बँधाने के लिए अपनी प्रिय पुत्री आशा को भेज दिया। संसार में कोई भी सुखी नही हैं। सभी सुख की खोज में हैं, पर आज तक किसी ने उस वस्तु को पाया नही। सभी को किसी न किसी वस्तु की कमी खटकती रहती हैं- राजा हो या रंक। किसी को रूपये की चिन्ता हैं तो किसी को पुत्र की। किसी को रोग की चिन्ता हैं तो किसी को राजपाट की। चिन्ता-विहीन कोई नही हैं। हर कष्ट सहते हुए भी हम जीना चाहते हैं क्योंकि आशा सदा हमारे साथ हैं। आशा से अलग होकर हममें वह शक्ति नही रह जाती कि हम दुनिया की वास्तविकता का मुकाबला कर सके। जब हम परेशान होते हैं,आशा हमें धीरज बँधाती हैं, जब हम निरुत्साहित होने लगते हैं, आशा हमें उत्साहित करती हैं। आशा जिस दिन दुनिया से रूठ जायेगी, दुनिया मनुष्यों से खाली हो जायेगी । आशा से ही मनुष्य कष्ट्मय दुनिया में रहकर भी सुख का अनुभव करता हैं। आशा कहती हैं अतीत से सबक लो और भविष्य के लिए तैयारी करो।आशा का प्रबल शत्रु निराशा हैं। आशा और निराशा के बीच सदियों से द्वन्द्व चलता रहा हैं। आशा प्रकाश हैं तो निराशा अंधकार। आशा मनुष्य को भविष्य का सपना दिखलाकर वर्तमान तथा अतीत की चिन्ता से दूर ले जाती हैं तो निराशा मनुष्य को चिन्ता के गड्ढे में ढकेल देती हैं फिर भी निराशा के बीच मनुष्य को जीने की शक्ति आशा ही देती हैं। मनुष्य के जीवन में आशा ही एकमात्र प्रकाश हैं जिससे वह आगे बढता जाता हैं।

6 comments:

  1. "मनुष्य के जीवन में आशा ही एकमात्र प्रकाश हैं जिससे वह आगे बढता जाता हैं।"
    कंचनलता चतुर्वेदी जी!
    आशावाद का पथ दिखलाता आपका लेख समीचीन है।
    बधाई।
    Reply
  2. Aaj pahlee baar aayee hun..aur ye rachna padhne kee sakht zaroorat thee..! Shukriya..!

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    Reply
  3. आशा ही जीवन है.........
    आशावाद पर सशक्त लेखन ,बधाई.
    Reply
  4. Likhte rahiye .Shubkamnayen.
    Reply
  5. yah asha hi hai jo hame mahanata ke shikhar tak le jati hai..nahi to ham manushy kuch bhi na kar paye..
    asha aur ummid is duniya me bahut hi badi cheez hai..

    achcha post likha aapne..badhayi..
    Reply

स्त्री/Old Post-2

     हम खाते हैं भूख मिटाने के लिए, वस्त्र धारण करते हैं लज्जा निवारण के लिए, आराम करते हैं थकावट दूर करने के लिए। हमारा प्रत्येक कार्य किसी खास तात्पर्य से होता हैं फ़िर हमारा जीवन तात्पर्य विहीन क्यों हो?ये सभी जीवन के लिए आवश्यक हैं, पर जीवन स्वयं किस लिए है? इस जीवन का एक लक्ष्य होना चाहिए, एक ध्येय होना चाहिए। लक्ष्य का निर्माण करना सहज हैं पर ल्क्ष्य को प्राप्त करना कठिन।हो सकता हैं लक्ष्य प्राप्ति के लिए हमें आजीवन परिस्थितियों से लड़ना पडे़, हो सकता हैं हमें विकट रास्ते से गुजरना पडे़, आत्मीयजन साथ छोड़ दे। अपना कहलाने वाले पराया बन जाय, लोग छीटा-कसी करे, हमारे पैर लड़खड़ाए,कुछ दिनो तक निराशा के सिवा कुछ हाथ न लगे। पर हमें साहस और धैर्य नही खोना चाहिए। आगे चलकर पीछे नही मुड़ना चाहिए। हमारे पास सच्ची लगन हैं तो अन्त में हमें सफलता अवश्य मिलेगी।मैं दुनिया से निर्लिप्त रहकर आत्मोन्नति करना चाहती हूँ, आत्म विकास करना चाहती हूँ। मैं सदा अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने की चेष्टा करती हूँ, क्यों कि मैं जानती हूँ कि आज के युग में पग-पग पर प्रलोभन हैं,वासना को उभारने वाली चीजे हैं, स्कूली पुस्तक से लेकर फिल्मो के कथानक और रेडियों के गीतो तक में श्रींगार रस की प्रधानता हैं जबकि मैं महसूस करती हूँ कि इसके लिए शान्त और स्वच्छ वातावरण और सात्विक भोजन की आवश्यकता होगी। आज की शिक्षा से मैं असन्तुष्ट हूँ। मुझे ऎसी शिक्षा की आवश्यकता हैं जो आत्मिक विकास में सहायक हो, हमारे सदगुणो को जगाये। मैं जानती हूँ कि दुनिया मुझे कहेगी कि तुम कठिनाइयों से डर कर भाग रही हो। यह दुनिया कर्मभूमि हैं,यहा कायरों के लिए स्थान नहीं। मुझे कठिनाइयों से भय नही, बाधाओं से घबराती नहीं, डर हैं तो आज के पतित दुनिया के प्रति।मैं दुनिया नही छोड़ना चाहती बल्कि दुनिया के दुर्गुणो पर विजय पाने की शक्ति प्राप्त करना चाहती हूँ। मैं कर्म से नही डरती,कर्तव्य से नही भागती बल्कि चाहती हूँ त्याग और तपस्या की अग्नि में जलकर दुनिया के समक्ष एक उदाहरण बनूं ।वह देश, वह समाज, वह व्यक्ति सभ्य नहि कहला सकता जिसने स्त्रियों का आदर न किया हो। पुरुष देश की बाहु हैं तो स्त्री देश का ह्दय। एक को भी खोकर देश सबल नही रह सकता।पुरुष द्वार का रौनक हैं तो स्त्री घर का चिराग। आज हमारे घरो में चिराग हैं पर उसमें तेल नही। दोष हैं हमारे समाज का। हमारे समाज के लोग कह्ते हैं ,स्त्री-शिक्षा पाप हैं । लोग कहते हैं , वेद कहता हैं, पुराण कहता हैं नही ,ये वही लोग कहते हैं जो वेद और शास्त्र शब्द को शुद्व लिख भी नही सकते।अत: जिस तरह पुरुष शिक्षा आवश्यक है उसी तरह स्त्री शिक्षा भी अनिवार्य हैं। यह आवश्यक नही कि हमारे देश की स्त्रियाँ भी अन्य देशो की स्त्रियों की तरह नौकरी करने के लिए ही पढे।
जीवन क्षेत्र का विभाजन प्रमुखत: दो भागों में किया जा सकता हैं- घर और बाहर। दोनो का महत्व समान होते हुए भी पहला घर हैं। क्यों कि घर की उन्नति पर ही बाहर की उन्नति निर्भर करती हैं। घर की देख-रेख करना साधारण काम नही हैं बल्कि इसमें अधिक धैर्य और सहनशीलता की आवश्यकता होती हैं। पुरुष इतना त्याग नही कर सकते। लोग कहते हैं कि बच्चे पालना और रसोई करना बेकार काम है, उन्हें एक नौकरानी कर सकती हैं लेकिन मैं कहती हूँ बच्चे पालना और रसोई बनाना दुनिया के सभी कामों में महान काम हैं।ये वे काम हैं जिन पर किसी का बनना-बिगड़ना निर्भर करता हैं। नौकरी करने वाली स्त्री सिर्फ अपना भाग्य निर्माण कर सकती हैं, सिर्फ अपने आपको दूसरो की निगाह में ऊँचा उठा सकती हैं, पर घर में काम करने वाली शिक्षित स्त्री देश का भाग्य निर्माण कर सकती हैं। स्वयं छिपे रहकर बहुतो को प्रकाश में ला सकती हैं।घर का खाना स्वादिष्ट इस लिए होता हैं कि उसमें स्नेह के कण मिले रहते हैं। घर की स्वामिनी ही अपने पति की स्वामिनी होती हैं। जिसने घर पर अपना कब्जा न किया वह पति पर क्या कब्जा कर सकती हैं।अगर पढी लिखी स्त्रियाँ दूसरे के नौकरी की अपेक्षा अपने घर की ,अपने बच्चो की देखभाल करे तो मेरा विश्वास हैं कि एक के चलते अनेको का सुधार हो जायेगा और घर का ही दूसरा नाम स्वर्ग पड़ जायेगा।

28 comments:

  1. "अगर पढी लिखी स्त्रियाँ दूसरे के नौकरी की अपेक्षा अपने घर की ,अपने बच्चो की देखभाल करे तो मेरा विश्वास हैं कि एक के चलते अनेको का सुधार हो जायेगा और घर का ही दूसरा नाम स्वर्ग पड़ जायेगा।"

    बहुत सुन्दर लेख है।
    बधाई।
    Reply
  2. Blog jagat me aapka swagat hai.
    Reply
  3. हिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है इस बेहतरीन आलेख के साथ. नियमित लेखन हेतु शुभकामनाऐं.
    Reply
  4. बहुत सुन्दर विचार हैं। दृढ़ विश्वास ही सफलता की कुंजी है।
    Reply
  5. आपका लेख बेहद महत्वपूर्ण और सारगर्भित लगा !
    पूरी तरह भारतीय जीवन दर्शन से ओत-प्रोत !
    ऐसा प्रतीत हुआ मानो मेरे ही दिल की बात आपने कह दी हो !
    आज का समाज इस कदर दिग्भ्रमित है कि उसे स्वयं ही नहीं पता कि उसकी मंजिल क्या है ... उसकी जरूरत क्या है ... जीवन की सार्थकता किस में है !
    आज अधिकाँश समस्यायें जो हम देख रहे हैं .. वो जबरन अपने ऊपर थोपी हुयी हैं !

    आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत ख़ुशी हुयी !
    आशा है आगे भी आप ऐसी ही पठनीय रचनाएं लिखती रहेंगी !
    पुनः आऊंगा !

    हार्दिक शुभ कामनाएं !

    आज की आवाज
    Reply
  6. कृपया वर्ड वैरिफिकेशन की उबाऊ प्रक्रिया हटा दें !
    लगता है कि शुभेच्छा का भी प्रमाण माँगा जा रहा है।
    इसकी वजह से प्रतिक्रिया देने में अनावश्यक परेशानी होती है !

    तरीका :-
    डेशबोर्ड > सेटिंग > कमेंट्स > शो वर्ड वैरिफिकेशन फार कमेंट्स > सेलेक्ट नो > सेव सेटिंग्स

    आज की आवाज
    Reply
  7. एक गृहिणी का ब्लॉग जगत में पूरी तैयारी के साथ प्रवेश- मैं इसे ऐतिहासिक घटना कहूँगा।
    इससे ही आप की स्वतंत्र बुद्धि, परिवार का सहयोग, समय की संयोजन कुशलता और तकनीक से सख्य का पता चलता है।

    आप का स्वागत है। लिखती रहें।
    एक विनम्र बात - जिन बुराइयों का जिक्र आप ने किया है, वे सदा से समाज में रही हैं और रहेंगी। निरंतर विकसित होती मानव सभ्यता के साथ चलते हुए अपना भी उन्नयन उद्देश्य होना चाहिए। फिर आप चाहे जिस कर्मक्षेत्र में हों।

    हाँ, शिक्षित नारी का केवल गृहकर्म के लिए समर्पित होना - एक ऐसा विषय आप ने छेड़ा है जिस पर बहुत बहस हो सकती है। आप 'नारी' केन्द्रित ब्लॉग्स का भी खूब अध्ययन करें- समझ को और बहुत कुछ मिलेगा, चिंतन हेतु।
    Reply
  8. आपकी साधना पूरी हो- शुभकामनाएं॥
    Reply
  9. जीवन में संतुलन आवश्यक है . शिक्षित कामकाजी नारी घर ओर बाहर दोनों ओर सफल है . घर बैठी ज्यादातर टीवी सीरियल देख रही हैं. बधाई
    Reply
  10. अच्छा है लिखती हैं आप -जारी रखें !
    Reply
  11. `मैं दुनिया से निर्लिप्त रहकर आत्मोन्नति करना चाहती हूँ, आत्म विकास करना चाहती हूँ।'
    यह अच्छा लक्ष्य है चुना है आपने।

    गिरिजेश जी की बात पर गौर फरमाइये। चिंतन और व्यवहार पर आगे जाने की संभावनाएं असीमित हैं।

    कभी-कभी मनुष्य अपनी मजबूरी और कुंठाओं को तार्किक भव्यता देने लगता है, जबकि वस्तुगतता अलग होती है।
    Reply
  12. Danyabad Kanchanlata ji,ITANE ACHCHE VICHARO KE LIYE,PAR EK OR JAB HAM 21V SADI KI OR AGRASAR HO RAHE HAI VAHI DOOSARY OR YAH BAT JAMI NAHI,हैं।अगर पढी लिखी स्त्रियाँ दूसरे के नौकरी की अपेक्षा अपने घर की ,अपने बच्चो की देखभाल करे तो मेरा विश्वास हैं कि एक के चलते अनेको का सुधार हो जायेगा और घर का ही दूसरा नाम स्वर्ग पड़ जायेगा।
    Reply
  13. आत्म विश्वास से भरपूर एक अच्छा आलेख।

    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com
    Reply
  14. "मैं कहती हूँ बच्चे पालना और रसोई बनाना दुनिया के सभी कामों में महान काम हैं।"
    आपका लेखन सारगर्भित है. सुविचारो के लिए साधुवाद
    Reply
  15. You have given expression to the feelings of many.A house wife ,annapurna ,grihani is a valueable asset these days .only she can produce good citizens.That is the best service to the nation which can not be repaid and measured in terms of money and wages.veerubhai1947@gmail.com(virendra sharma)
    Reply
  16. नौकरी करने वाली स्त्री सिर्फ अपना भाग्य निर्माण कर सकती हैं, सिर्फ अपने आपको दूसरो की निगाह में ऊँचा उठा सकती हैं, पर घर में काम करने वाली शिक्षित स्त्री देश का भाग्य निर्माण कर सकती हैं।
    बहुत बढिया लिखा है, ढेरों शुभकामनाएं
    सुनील पाण्‍डेय
    नई दिल्‍ली
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  17. "नारी नर की खान है।" "धरती माता के समान सब कुछ सह जाती है।" - जैसे महान कथन हैं। शायद ही कोई ऐसा पुरुष हो जिसे नारी की कभी कोई जरूरत न हो। हर पुरुष के मन में नारी के प्रति श्रद्धा और स्नेह और अन्य भाव... समाए रहते हैं।
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  18. चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

    गुलमोहर का फूल
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  19. bhut achha likha hai aapne .mai bhi grhini hu a ur aapke vicharo se shmat hu.
    bdhai
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  20. jandar,shandar,damdar.narayan narayan
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  21. वाकई अच्छा लिखती हैं आप ,हमारी शुभकामनायें .
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  22. Bahut sundar rachana..really its awesome...

    Regards..
    DevSangeet
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  23. हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |
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  24. बहुत सुंदर और लाजवाब लिखा. बहुत शुभकामनाएं.
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  25. Its nice one...most welcome in Bloggers world.
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  26. ... अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!!
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  27. बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
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