1-
तीन धारियाँ पीठ पर, तेरी चपल निगाह।
मुश्किल होता समझना, तेरे मन की थाह।।
2-
लम्बी तेरी पूंछ है, गिल्लू तेरा नाम।
जीवन बस दो साल का, दिन भर करती काम।।
3-
मन को भाती ये सदा, खूब दिखाती खेल।
भोजन करती संतुलित,सबसे रखती मेल।।
4-
रखती तन में विष नहीं,नहीं कपट व्यवहार।
मतलब है निज काम से,और प्रकृति से प्यार।।
5-
देख दूर ये भागती, कभी करें ये शोर।
चुलबुल बच्चों सी लगे,और लगे चित चोर।।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०४-०-७२०२०) को 'नेह के स्रोत सूखे हुए हैं सभी'(चर्चा अंक-३७५२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 04 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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