जब जन्में गोपाल जी, थी अंधियारी रात।
छाई थी काली घटा, खूब हुई बरसात।।
मोर मुकुट है शीश पर,श्याम वर्ण गोपाल।
मक्खन खाते चाव से,नटखट सुंदर लाल।।
माखन की चोरी करें,नंद दुलारे लाल।
मात देख झट से छुपे,नटखट थे गोपाल।।
नटखट है इनकी अदा, करते सबसे प्रीत।
अपनी इक मुस्कान से,लेते मन को जीत।।
जन जन के उर में बसे,चुलबुल नंदकिशोर।
गोकुल की ये गोपियां,कहती माखन चोर।।
No comments:
Post a Comment