Monday 17 August 2020

हरिगीतिका छंद में ईश वंदना



कर जोरि है विनती हमारी हे प्रभो!स्वीकार कर,
तुझको नमन उपकार कर सबका यहाँ अभिमान हर।
बस प्रेम का दीपक जले दिल से कपट अब दूर हो,
हम साथ मिलकर ही चले मद में न कोई चूर हो।
तम छा गया विपदा हरो भयभीत है जन जन यहाँ,
आयी शरण मैं आपकी बोलो तुम्हीं जायें कहाँ।
ताला खुला पर कैद में लगता बँधे हैं जेल में,
अब कौन सी गोटी चलें शतरंज के इस खेल में।
इक व्यूह रचकर है खड़ा हमको यहाँ ललकारता,
हिम्मत नहीं की लड़ सकूं अब मन नहीं स्वीकारता।
दुख बन घटा में छा गया प्रभु बन पवन आओ यहाँ,
ले जा उड़ा कर अब इसे आये न अब मुड़कर यहाँ।
दिन-रात करते आरती हम बैठ तेरे द्वार पर,
आये शरण हम आपकी अब जिंदगी से हार कर।
प्रभु प्रेम में बलिदान जो अपना मनुज जीवन करे,
हरदम झुकाये शीश जो प्रभु क्लेश को क्षण में हरें।


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