Saturday, 18 April 2020

दोहे


-अनुपम
अनुपम छवि प्रभु राम की , तीर, धनुष हैं हाथ।
धाम छोड़ वन को चले , सीता,लक्ष्मण साथ।।

2-द्रष्टा
राजा हो या रंक हो , सब हैं एक समान।
हरते सबके पीर को , सम द्रष्टा भगवान।।

3-दुर्लभ
बैठे दुर्लभ सब लगे , जाती किस्मत रूठ।
मेहनत कहता है सदा , भाग्य रेख को झूठ।।

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