Saturday, 25 April 2020

दोहे

1-जनम-मरन
जीव- वृक्ष गति एक है,लेते जन्म नवीन।
जनम-मरन पुनि पुनि रहे,होकर मृत्यु अधीन।।

2-सत्ता
सत्ता लोभी लालची , करते अत्याचार।
झोली भरते झूठ से , जाकर सबके द्वार।।

3-अत्याचार
अब भी राक्षस हैं यहाँ , करते अत्याचार।
नहीं डरे निज कर्म से , करे संत पर वार।।

४-संत
संग्रह कर तू प्रेम धन , समझ और की पीर।
नेक कर्म सबसे बड़ा , कहते संत फकीर।

5-जन्म
मानव अपने जन्म को , नहीं गवांवो व्यर्थ।
कर लो ऐसा कर्म तुम , निकले जिसका अर्थ।।

6-नैन
नैन सखा है हृदय की , समझे उसकी पीर।
हृदय कराहे दर्द से , गिरे नैन से नीर।।

7-नेत्र
धोखा खाता नेत्र भी , कहते संत सुजान।
सोने का मृग देखकर , कर न सके पहचान।।

स्वरचित
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

2 comments:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    26/04/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  2. सुन्दर कविता

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