1-जनम-मरन
जीव- वृक्ष गति एक है,लेते जन्म नवीन।
जनम-मरन पुनि पुनि रहे,होकर मृत्यु अधीन।।
2-सत्ता
सत्ता लोभी लालची , करते अत्याचार।
झोली भरते झूठ से , जाकर सबके द्वार।।
3-अत्याचार
अब भी राक्षस हैं यहाँ , करते अत्याचार।
नहीं डरे निज कर्म से , करे संत पर वार।।
४-संत
संग्रह कर तू प्रेम धन , समझ और की पीर।
नेक कर्म सबसे बड़ा , कहते संत फकीर।
5-जन्म
मानव अपने जन्म को , नहीं गवांवो व्यर्थ।
कर लो ऐसा कर्म तुम , निकले जिसका अर्थ।।
6-नैन
नैन सखा है हृदय की , समझे उसकी पीर।
हृदय कराहे दर्द से , गिरे नैन से नीर।।
7-नेत्र
धोखा खाता नेत्र भी , कहते संत सुजान।
सोने का मृग देखकर , कर न सके पहचान।।
स्वरचित
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
26/04/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
सुन्दर कविता
ReplyDelete