Sunday, 1 November 2020

मुक्तक

01/11/2020
नमन मंच
2122/ 2122/ 212
उड़ गया पंछी ठिकाना छोड़कर।
चल दिया वो तो जमाना छोड़कर।
सच यही है  कर्म रहता है यहां,
हैं सभी जाते खजाना छोड़कर।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

मुक्तक

01/11/2020
नमन मंच
2122/ 2122/ 212
बस दिलों में अब सताना छोड़कर।
सब को' हैं जाना खजाना छोड़कर।
बद दुआ ना अब किसी की भी मिले,
प्रेम धन बांटो बहाना छोड़कर।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

Friday, 30 October 2020

मुक्तक

नेकी की' राह हमको' दिखाकर चले गए l
दिल से वो' द्वेष - भाव हटाकर चले गए ll
मन तो हुआ फ़कीर ये' जीवन सँवर गया l
ऐसा  हमें  महीप  बनाकर  चले गए...

Wednesday, 28 October 2020

मुक्तक

221   2122   1221  212
वो ख्वाब तो दिखाए दिखाकर चले गए।
दिल में मुझे बसाए बसाकर चले गए।
मैं देखती रही रास्ते बैठकर यहां,
समझा जिसे जिंदगी भुलाकर चले गए।

Monday, 19 October 2020

muktak

19/10/2020
सोमवार
1222.    1222.  1222

गरीबों को बसाने का हुनर सीखो।
किसी का ग़म चुराने का हुनर सीखो।
नहीं छोड़ो अकेले राह में उनको,
गले उनको लगाने का हुनर सीखो।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

muktk

1222-1222-1222
कलम को भी चलाने का हुनर सीखो।
नहीं कविता चुराने का हुनर सीखो।
गमों को ढाल गजलों में बहर में लिख,
उसे पढ़कर सुनाने का हुनर सीखो।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

Sunday, 4 October 2020

मुक्तक


1222  1222   1222  1222
जहां ईमान बिकता है वहां आचार क्या देखें।
जहां दूषित रहे परिवेश तो सत्कार क्या देखें।
नशा में लत नहीं इज्जत नहीं दिखता भला मानुष,
वहां हम प्रेम या विश्वास या अधिकार क्या देखें।

Wednesday, 26 August 2020

मुक्तक


2122 2122  2122  212
दोस्तों के बीच गद्दारी कहाँ से आ गई।
था घना ये प्रेम मक्कारी कहाँ से आ गई।
फासला बढ़ने लगा था पाटना जिसको हमें,
भाइयों के बीच लाचारी कहाँ से आ गई।

मुक्तक


2122  2122  2122  212
अब अचानक ही ये दुश्वारी कहाँ से आ गई।
जानना मुश्किल कि बीमारी कहाँ से आ गई।
अब सभी अपने घरों में कैद हैं ज्यों जेल हो,
ओह ऐसी यार लाचारी कहाँ से आ गई।

Saturday, 22 August 2020

कुछ यूं ही

जब हम पहली बार मिले थे।
इन अधरों पर फूल खिले थे।
एक झलक ने ऐसा छेड़ा
मेरे दिल के तार हिले थे।

दिल की घण्टी खूब बजी थी।
नैनो में बस प्रीत सजी थी।
साजन तेरी खातिर मैं तो,
निज बाबुल का गेह तजी थी।

Friday, 21 August 2020

मुक्तक


212  212  212  212
शिव कृपा आपकी ही सदा चाहिए।
शीश पर हाथ हो और क्या चाहिए।
हर कदम पर हमें साथ उनका मिले,
गम रहे दूर ऐसी दुआ चाहिए।

Thursday, 20 August 2020

मुक्तक

20/08/2020
2122  2122  2122
द्वेष उर से मैं मिटाना चाहती हूँ।
राह के काँटे हटाना चाहती हूँ।
फूल पग पग पर खिले ऐसा करें हम,
इक जहां ऐसा बसाना चाहती हूँ।

मुक्तक

मुक्तक
122  122  122  122
न हमसे करो इस तरह तुम किनारा।
चलो हम बनें दूसरे का सहारा।
यहाँ छोड़कर सब है जाना सभी को,
नहीं कुछ तुम्हारा नहीं कुछ हमारा।


जल ही जीवन है


20/08/
प्रदत्त शब्द-जल हल कल
मुक्तक

नीर नहीं तो कैसा कल है।
जीवन तब जब भू पर जल है।
नीर बचाना सीखो मानव,
जल संरक्षण इसका हल है।

धरती पर जब जल बिखरेगा।
बोलो कल कैसे निखरेगा।
नीर बचाओ तो जीवन है,
इस हल से जीवन संवरेगा।

जल बिन कैसे कल पाओगे।
अपनी प्यास बुझा पाओगे।
नीर बचे कैसे अब सोचो,
सोच लिया तो हल पाओगे।

आकर बादल प्यास बुझाते।
धरती के मन को सहलाते।
जीव जंतु भी खुश हो जाते,
यूं खुशियों की राह सजाते।

Tuesday, 18 August 2020

मुक्तक

एक कोशिश
2122  2122  2122
जिन्दगी को मैं सजाना चाहती हूँ।
कुछ नया करके दिखाना चाहती हूँ।
है कठिन यदि ये डगर तो क्या हुआ जी,
सत्य का इक पथ बनाना चाहती हूँ।

Monday, 17 August 2020

हरिगीतिका छंद में ईश वंदना



कर जोरि है विनती हमारी हे प्रभो!स्वीकार कर,
तुझको नमन उपकार कर सबका यहाँ अभिमान हर।
बस प्रेम का दीपक जले दिल से कपट अब दूर हो,
हम साथ मिलकर ही चले मद में न कोई चूर हो।
तम छा गया विपदा हरो भयभीत है जन जन यहाँ,
आयी शरण मैं आपकी बोलो तुम्हीं जायें कहाँ।
ताला खुला पर कैद में लगता बँधे हैं जेल में,
अब कौन सी गोटी चलें शतरंज के इस खेल में।
इक व्यूह रचकर है खड़ा हमको यहाँ ललकारता,
हिम्मत नहीं की लड़ सकूं अब मन नहीं स्वीकारता।
दुख बन घटा में छा गया प्रभु बन पवन आओ यहाँ,
ले जा उड़ा कर अब इसे आये न अब मुड़कर यहाँ।
दिन-रात करते आरती हम बैठ तेरे द्वार पर,
आये शरण हम आपकी अब जिंदगी से हार कर।
प्रभु प्रेम में बलिदान जो अपना मनुज जीवन करे,
हरदम झुकाये शीश जो प्रभु क्लेश को क्षण में हरें।


Thursday, 13 August 2020

जय श्री कृष्णा


जब जन्में गोपाल जी, थी अंधियारी रात।
छाई थी काली घटा, खूब हुई बरसात।।

मोर मुकुट है शीश पर,श्याम वर्ण गोपाल।
मक्खन खाते चाव से,नटखट सुंदर लाल।।

माखन की चोरी करें,नंद दुलारे लाल।
मात देख झट से छुपे,नटखट थे गोपाल।।

नटखट है इनकी अदा, करते सबसे प्रीत।
अपनी इक मुस्कान से,लेते मन को जीत।।

जन जन के उर में बसे,चुलबुल नंदकिशोर।
गोकुल की ये गोपियां,कहती माखन चोर।।


Wednesday, 29 July 2020

आलू पर दोहे



आलू के है गुण बड़े, यह सब्जी का भूप।
होता गोल मटोल-सा, इसका रूप अनूप।।


छिप कर रहे जमीन में, बढ़े मिले जब खाद।
व्यंजन बनते हैं कई, इसका अच्छा स्वाद।।


जनमें धरती गर्भ से, रक्षा करे किसान।
बेचे अच्छे भाव में, और बने धनवान।।


नहीं जलन की भावना,करता सबसे प्रीत।
सबके दुख में साथ दे, बनकर उसका मीत।।


मानव तुम भी सीख लो, ऐसा जीवन भोग।
खून खराबा द्वेष सब, है जीवन के रोग।।


Saturday, 4 July 2020

बिटिया पर दोहे


1-
बिटिया से दुल्हन बनी, पीहर से ससुराल।
जहाँ सभी अनजान हैं, कौन रखेगा ख्याल।।

2-
मैं आँगन की दीप थी,और खुशी का द्वार।
चली पिया के गाँव मैं, ले पीहर का प्यार।।

3-
धागा हो यदि नेह का, देता रिश्ते जोड़।
अगर बुने ये जाल तो, देता बन्धन तोड़।।

Friday, 3 July 2020

गिलहरी


1-
तीन धारियाँ पीठ पर, तेरी चपल निगाह।
मुश्किल होता समझना, तेरे मन की थाह।।

2-
लम्बी तेरी पूंछ है, गिल्लू तेरा नाम।
जीवन बस दो साल का, दिन भर करती काम।।

3-
मन को भाती ये सदा, खूब दिखाती खेल।
भोजन करती संतुलित,सबसे रखती मेल।।

4-
रखती तन में विष नहीं,नहीं कपट व्यवहार।
मतलब है निज काम से,और प्रकृति से प्यार।।

5-
देख दूर ये भागती, कभी करें ये शोर।
चुलबुल बच्चों सी लगे,और लगे चित चोर।।