Tuesday 10 December 2019

कुण्डलिया


कुण्डलिया
गोरी बैठी द्वार पर,पिया बसे परदेश।
कैसे करु श्रृंगार मैं, नहीं मिला संदेश।।
नहीं मिला संदेश,चाँद पिय को तुम लाना।
जाना तुम उस पार, पीर मेरी बतलाना।
करना ये उपकार,जोड़ती कर मैं तोरी।
कहना पी से जाय,खोजती तेरी गोरी।

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