Sunday 1 November 2020

मुक्तक

01/11/2020
नमन मंच
2122/ 2122/ 212
उड़ गया पंछी ठिकाना छोड़कर।
चल दिया वो तो जमाना छोड़कर।
सच यही है  कर्म रहता है यहां,
हैं सभी जाते खजाना छोड़कर।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

मुक्तक

01/11/2020
नमन मंच
2122/ 2122/ 212
बस दिलों में अब सताना छोड़कर।
सब को' हैं जाना खजाना छोड़कर।
बद दुआ ना अब किसी की भी मिले,
प्रेम धन बांटो बहाना छोड़कर।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

Friday 30 October 2020

मुक्तक

नेकी की' राह हमको' दिखाकर चले गए l
दिल से वो' द्वेष - भाव हटाकर चले गए ll
मन तो हुआ फ़कीर ये' जीवन सँवर गया l
ऐसा  हमें  महीप  बनाकर  चले गए...

Wednesday 28 October 2020

मुक्तक

221   2122   1221  212
वो ख्वाब तो दिखाए दिखाकर चले गए।
दिल में मुझे बसाए बसाकर चले गए।
मैं देखती रही रास्ते बैठकर यहां,
समझा जिसे जिंदगी भुलाकर चले गए।

Monday 19 October 2020

muktak

19/10/2020
सोमवार
1222.    1222.  1222

गरीबों को बसाने का हुनर सीखो।
किसी का ग़म चुराने का हुनर सीखो।
नहीं छोड़ो अकेले राह में उनको,
गले उनको लगाने का हुनर सीखो।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

muktk

1222-1222-1222
कलम को भी चलाने का हुनर सीखो।
नहीं कविता चुराने का हुनर सीखो।
गमों को ढाल गजलों में बहर में लिख,
उसे पढ़कर सुनाने का हुनर सीखो।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

Sunday 4 October 2020

मुक्तक


1222  1222   1222  1222
जहां ईमान बिकता है वहां आचार क्या देखें।
जहां दूषित रहे परिवेश तो सत्कार क्या देखें।
नशा में लत नहीं इज्जत नहीं दिखता भला मानुष,
वहां हम प्रेम या विश्वास या अधिकार क्या देखें।

Wednesday 26 August 2020

मुक्तक


2122 2122  2122  212
दोस्तों के बीच गद्दारी कहाँ से आ गई।
था घना ये प्रेम मक्कारी कहाँ से आ गई।
फासला बढ़ने लगा था पाटना जिसको हमें,
भाइयों के बीच लाचारी कहाँ से आ गई।

मुक्तक


2122  2122  2122  212
अब अचानक ही ये दुश्वारी कहाँ से आ गई।
जानना मुश्किल कि बीमारी कहाँ से आ गई।
अब सभी अपने घरों में कैद हैं ज्यों जेल हो,
ओह ऐसी यार लाचारी कहाँ से आ गई।

Saturday 22 August 2020

कुछ यूं ही

जब हम पहली बार मिले थे।
इन अधरों पर फूल खिले थे।
एक झलक ने ऐसा छेड़ा
मेरे दिल के तार हिले थे।

दिल की घण्टी खूब बजी थी।
नैनो में बस प्रीत सजी थी।
साजन तेरी खातिर मैं तो,
निज बाबुल का गेह तजी थी।

Friday 21 August 2020

मुक्तक


212  212  212  212
शिव कृपा आपकी ही सदा चाहिए।
शीश पर हाथ हो और क्या चाहिए।
हर कदम पर हमें साथ उनका मिले,
गम रहे दूर ऐसी दुआ चाहिए।

Thursday 20 August 2020

मुक्तक

20/08/2020
2122  2122  2122
द्वेष उर से मैं मिटाना चाहती हूँ।
राह के काँटे हटाना चाहती हूँ।
फूल पग पग पर खिले ऐसा करें हम,
इक जहां ऐसा बसाना चाहती हूँ।

मुक्तक

मुक्तक
122  122  122  122
न हमसे करो इस तरह तुम किनारा।
चलो हम बनें दूसरे का सहारा।
यहाँ छोड़कर सब है जाना सभी को,
नहीं कुछ तुम्हारा नहीं कुछ हमारा।


जल ही जीवन है


20/08/
प्रदत्त शब्द-जल हल कल
मुक्तक

नीर नहीं तो कैसा कल है।
जीवन तब जब भू पर जल है।
नीर बचाना सीखो मानव,
जल संरक्षण इसका हल है।

धरती पर जब जल बिखरेगा।
बोलो कल कैसे निखरेगा।
नीर बचाओ तो जीवन है,
इस हल से जीवन संवरेगा।

जल बिन कैसे कल पाओगे।
अपनी प्यास बुझा पाओगे।
नीर बचे कैसे अब सोचो,
सोच लिया तो हल पाओगे।

आकर बादल प्यास बुझाते।
धरती के मन को सहलाते।
जीव जंतु भी खुश हो जाते,
यूं खुशियों की राह सजाते।

Tuesday 18 August 2020

मुक्तक

एक कोशिश
2122  2122  2122
जिन्दगी को मैं सजाना चाहती हूँ।
कुछ नया करके दिखाना चाहती हूँ।
है कठिन यदि ये डगर तो क्या हुआ जी,
सत्य का इक पथ बनाना चाहती हूँ।

Monday 17 August 2020

हरिगीतिका छंद में ईश वंदना



कर जोरि है विनती हमारी हे प्रभो!स्वीकार कर,
तुझको नमन उपकार कर सबका यहाँ अभिमान हर।
बस प्रेम का दीपक जले दिल से कपट अब दूर हो,
हम साथ मिलकर ही चले मद में न कोई चूर हो।
तम छा गया विपदा हरो भयभीत है जन जन यहाँ,
आयी शरण मैं आपकी बोलो तुम्हीं जायें कहाँ।
ताला खुला पर कैद में लगता बँधे हैं जेल में,
अब कौन सी गोटी चलें शतरंज के इस खेल में।
इक व्यूह रचकर है खड़ा हमको यहाँ ललकारता,
हिम्मत नहीं की लड़ सकूं अब मन नहीं स्वीकारता।
दुख बन घटा में छा गया प्रभु बन पवन आओ यहाँ,
ले जा उड़ा कर अब इसे आये न अब मुड़कर यहाँ।
दिन-रात करते आरती हम बैठ तेरे द्वार पर,
आये शरण हम आपकी अब जिंदगी से हार कर।
प्रभु प्रेम में बलिदान जो अपना मनुज जीवन करे,
हरदम झुकाये शीश जो प्रभु क्लेश को क्षण में हरें।


Thursday 13 August 2020

जय श्री कृष्णा


जब जन्में गोपाल जी, थी अंधियारी रात।
छाई थी काली घटा, खूब हुई बरसात।।

मोर मुकुट है शीश पर,श्याम वर्ण गोपाल।
मक्खन खाते चाव से,नटखट सुंदर लाल।।

माखन की चोरी करें,नंद दुलारे लाल।
मात देख झट से छुपे,नटखट थे गोपाल।।

नटखट है इनकी अदा, करते सबसे प्रीत।
अपनी इक मुस्कान से,लेते मन को जीत।।

जन जन के उर में बसे,चुलबुल नंदकिशोर।
गोकुल की ये गोपियां,कहती माखन चोर।।


Wednesday 29 July 2020

आलू पर दोहे



आलू के है गुण बड़े, यह सब्जी का भूप।
होता गोल मटोल-सा, इसका रूप अनूप।।


छिप कर रहे जमीन में, बढ़े मिले जब खाद।
व्यंजन बनते हैं कई, इसका अच्छा स्वाद।।


जनमें धरती गर्भ से, रक्षा करे किसान।
बेचे अच्छे भाव में, और बने धनवान।।


नहीं जलन की भावना,करता सबसे प्रीत।
सबके दुख में साथ दे, बनकर उसका मीत।।


मानव तुम भी सीख लो, ऐसा जीवन भोग।
खून खराबा द्वेष सब, है जीवन के रोग।।


Saturday 4 July 2020

बिटिया पर दोहे


1-
बिटिया से दुल्हन बनी, पीहर से ससुराल।
जहाँ सभी अनजान हैं, कौन रखेगा ख्याल।।

2-
मैं आँगन की दीप थी,और खुशी का द्वार।
चली पिया के गाँव मैं, ले पीहर का प्यार।।

3-
धागा हो यदि नेह का, देता रिश्ते जोड़।
अगर बुने ये जाल तो, देता बन्धन तोड़।।

Friday 3 July 2020

गिलहरी


1-
तीन धारियाँ पीठ पर, तेरी चपल निगाह।
मुश्किल होता समझना, तेरे मन की थाह।।

2-
लम्बी तेरी पूंछ है, गिल्लू तेरा नाम।
जीवन बस दो साल का, दिन भर करती काम।।

3-
मन को भाती ये सदा, खूब दिखाती खेल।
भोजन करती संतुलित,सबसे रखती मेल।।

4-
रखती तन में विष नहीं,नहीं कपट व्यवहार।
मतलब है निज काम से,और प्रकृति से प्यार।।

5-
देख दूर ये भागती, कभी करें ये शोर।
चुलबुल बच्चों सी लगे,और लगे चित चोर।।

Tuesday 30 June 2020

देश भक्ति पर दोहे



लिए तिरंगा हाथ में,ये हैं वीर जवान।
कदम मिलाकर चल रहे, हैं भारत की शान।।

रक्षा करते देश की, होकर ये कुर्बान।
चलो बढायें जोश हम,रखकर इनका मान।।

आन बान ये शान हैं, चलो करें जयगान।
जियें हजारों साल ये,भारत के अभिमान।।

Wednesday 24 June 2020

प्रकृति का महत्व

1-
मत काटो तुम वृक्ष को,ये जीवन के अंग।
इनके बिन जीवन कहाँ, भरते यही उमंग।

2-
प्रकृति सम्पदा हैं बड़ी,इसको पल पल तोल।
श्वास बिना सुन हे मनुज,क्या जीवन का मोल।।

3-
हे मानव नादान तू,मत जीवन को भूल।
धरती से यदि तरु हटे, होगा नष्ट समूल।।

4-
धरती के शृंगार है,इनसे कर लो प्यार।
वृक्षों ने हमको दिया,ये सुंदर संसार।।

5-
पेड़ कटे जीवन घटे, नहीं मिले सुख धाम।
पेड़ बढ़े जीवन मिले, करें पथिक विश्राम।।

6-
मेघ प्रीत बरसा रहा,जैसे हो उपहार।
सज जायेगी अब धरा,कर नूतन शृंगार।।

7-
गीत सलोने गा रहे,मेघ सजायें साज।
सात सुरों के साथ हैं,बारिश बूँदे आज।।

8-
नहीं प्रकृति हैं जल बिना,नहीं सकल संसार।
पानी बिन जीवन कहाँ, जल जीवन आधार।।

9-
नदियाँ परहित में बहे,नहीं करें अभिमान।
पशु पक्षी इंसान को,जीवन करे प्रदान।।

10-
पानी बिन सब सून है,नदियाँ बनती रेत।
जल जीवन आधार है,मानव रहो सचेत।।


दोहा मुक्तक


सगुण भक्ति दो रूप में,कृष्ण भक्ति अरु राम।
मूल कथा इस काल के,राम और हैं श्याम।
सूरदास जी ने किया,मोहन का गुणगान,
मूरत थे आदर्श के,तुलसी के श्री राम।

Tuesday 23 June 2020

दोहा मुक्तक


(2)
अब कागज के फूल से,सभी सजाते द्वार।
देख अपरचित से लगे,दिखती नहीं बहार।
कलयुग है कंचन सुनो, सब हैं माया जाल,
सूरत चिकनी झूठ की,जिससे करते प्यार।

Monday 22 June 2020

दोहा मुक्तक

नमन मंच
दोहा मुक्तक प्रतियोगिता
22/06/2020
सोमवार
विधा-दोहा मुक्तक
(1)
हार गई मैं सत्य कह,कौन रखे अब मान।
दीवानें अब झूठ के,झूठी है मुस्कान।
सत्य भले लगता कठिन,देता ये विश्वास,
देख रही पर झूठ अब,बन बैठा बलवान।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

Sunday 14 June 2020

दोहा मुक्तक


दोहा मुक्तक
***********
कैद किये प्रिय नजर से , दिये एक मुस्कान।
हार गयी मैं हृदय को , और हुई कुर्बान।
कर सोलह श्रृंगार मैं , गई सजन के पास,
उपमा में मुझको कहा , मुखड़ा चाँद समान।

फँसी मुहब्बत जाल में , जकड़ गयी मैं यार।
मेरे मन के मीत थे , कर ली उनसे प्यार।
सात जनम में बँध गयी ,मैं सजना के साथ,
दर्पण थे मेरे पिया , करती थी श्रृंगार।

चुरा लिया चित चोर ने , लगा प्रेम का रोग।
वो पतंग मैं डोर हूँ , कहते ऐसे लोग।
सुध बुध खोई मैं खड़ी , करूँ पिया को याद,
करें सखी उपहास ये , किया किसी ने जोग।

क्या मोहब्बत है यही ,कौन मुझे समझाय।
जियरा धड़के जोर से , पल पल बढ़ता जाय।
नहीं दवा इस रोग का , कहते ऐसे  वैद्य,
प्रीत रोग मुझको लगी , अब क्या करूँ उपाय।


Saturday 13 June 2020

कुण्डलिनी छंद


कहता मन भँवरा बनूँ, गाऊँ मीठे गीत।
बाँटूं सबको प्रेम रस,बनकर सबका मीत।।
बनकर सबका मीत, सभी के उर में रहता।
सदा लुटाऊँ नेह,यही मन मेरा कहता।

Wednesday 10 June 2020

कुण्डलिनी छंद


ऐसी सास ननद मिली,करें बहू से घात।
करतीं बात घमंड से,ताना दे दिन रात।।
ताना दे दिन रात,बहू आयी है कैसी।
बहे नैन से नीर,पीर सहती वो ऐसी।

कुण्डलिनी छंद


छोटी बिटिया ने कहा,मुझको भाती शाम।
काम काज सब छोड़कर,पापा आते धाम।।
पापा आते धाम,बनाती माता रोटी।
पकड़ पिता का हाथ,खुशी से नाचे छोटी।

कुण्डलिनी छंद


पूजा होती कर्म की,समझो पर की पीर।
पंछी है ये आत्मा,उड़ती छोड़ शरीर।।
उड़ती छोड़ शरीर,संग ना जाता दूजा।
यदि हो कर्म महान,जगत में होती पूजा।

Sunday 7 June 2020

बेटियाँ


07/06/2020
चित्राक्षरी लेखन
पढ़े बढ़े अब बेटियाँ, बदले और समाज।
शान बने इस देश की,इनके सिर हो ताज।।

खुशबू है ये फूल की,सात सुरों का साज।
इंद्रधनुष-सा रूप है,ये धरती का ताज।।

ये मीठी मुस्कान हैं,लक्ष्मी का वरदान।
जिस घर से अनजान है,उस घर की पहचान।।

अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार।
सृष्टि कहाँ इनके बिना,इनसे घर परिवार।।

Saturday 6 June 2020

जीवन,सत्संग,विश्वास


दिनांक-06/ 06/ 2020
1-विश्वास
बाँध डोर विश्वास की , लेते हैं दिल जीत।
संकट में जो साथ दे , वो हैं सच्चे मीत।।

2-सत्संग
निर्मल मन,प्रमुदित हृदय , पुलकित होते अंग।
उत्तम जन यदि साथ हो , जीवन है सत्संग।।

3-जीवन
हाथ बढ़े सहयोग को , समझे सबका मर्म।
मानव जीवन तब सफल , अगर नेक हो कर्म।।

Saturday 30 May 2020

दोहे....राग,अनुराग,वैराग्य

30/ 05/ 2020
1-राग
शब्द गीत लय ताल हो , और समय की माप।
सात सुरों से ही सजे , राग तान आलाप।।

2-अनुराग
चरण कमल प्रभु पादुका , लिए भरत सब त्याग।
राम चरण में ही दिखा , केवट का अनुराग।।

3-वैराग्य
मन में हो वैराग्य सा , समझे जन की पीर।
समझ उसे संसार का , सबसे बड़ा अमीर।।

Thursday 28 May 2020

देवता....28/05/2020


मन मंदिर हो देवता , मृदु वाणी हो फूल।
फैले सदा सुवास बन , स्वयं कर्म अनुकूल।।

पत्थर के ये देवता , रहते हरदम मौन।
कहते मानव कर्म कर , मत पूछो मैं कौन।।

नेक कर्म करना मनुज , करना कभी न भूल।
जिसे देख कर देवता , दूर करे पथ शूल।।

दोहा.....कलयुग


27 मई 2020
कहते हैं कुछ और ही , करते हैं कुछ और।
सोच समझ मन मीत रे , ये कलयुग का दौर।।

Tuesday 26 May 2020

उपहार.......26/05/2029

द्वेष कपट अब हो नहीं , सबके दिल में प्यार।
सेवा भाव उदारता , ये अनुपम उपहार।।

जब मैं होता हूँ व्यथित , करती मुझे दुलार।
दीदी का ये प्यार है , ईश्वर का उपहार।।

Monday 25 May 2020

कुण्डलिया25/05/2020


थकती चिड़िया है नहीं , गाती मीठे गान।
खुश रहती है वो सदा , है छोटी सी जान।
है छोटी सी जान , रोज छप्पर पर आती।
रखे समय का ध्यान,सुबह ही हमें जगाती।
करती दिन भर काम,सूर्य से पहले उठती।
बच्चे करें सवाल,क्यों नहीं चिड़िया थकती।

Sunday 24 May 2020

उत्सव शब्द पर दोहा


24/05/2020
उत्सव तो संगीत है , झूम उठे उर तार।
राधा सुनकर बाँसुरी , गई हृदय से हार।।

Saturday 23 May 2020

कुण्डलिया


यह कैसा मजदूर है , जीवन से मजबूर।
पैदल पैदल जा रहा , जिसका घर है दूर।।
जिसका घर है दूर , घड़ी मुश्किल ये आई।
जाना इसको गाँव , संग बच्चे पितु माई।
क्रंदन करते पुत्र , पिता के पास न पैसा।
है जीवन से जंग , समय आया यह कैसा।।

भक्ति रस


भक्ति भाव हर शब्द में , बहती है रसधार।
तुलसी कृति जो भी पढ़ा , उपजा मन सुविचार।।

श्रद्धा से पत्थर बना ,जन जन का भगवान।
बिन श्रद्धा मिलते नहीं , लाख लगाओ ध्यान।।

भक्ति भाव उर में भरो , करो ईश का ध्यान।
किया न प्रभु गुणगान जो , वो है मरा समान।।

लता पुकारे रात-दिन , कहाँ छुपे प्रभु आप।
सभी घरों में कैद हैं , हर लो अब संताप।।

संकट में हैं ये धरा , कष्ट हरो हनुमान।
सकल जगत अंधेर में , कृपा करो भगवान।।

शृंगार रस


22/05/
मृदु वाणी हो अधर पर , आँखों में हो नेह।
आभूषण हो सत्य का , करे सुशोभित देह।।

एक नार ऐसी दिखी , जिसके नैन विशाल।
चाल चले गज के सदृश , सबको करे निहाल।।


मृग लोचन है मदभरी ,और गुलाबी गाल।
कौन नार, ये सुंदरी , मन में उठे सवाल।।


अनुपम कृति ये प्रकृति है , दूजा नारी रूप।
सृष्टि कहाँ इनके बिना , दोनों रूप अनूप।।

कोमल है ये पुष्प-सी , और नैन में नेह।
लगे अधर सुंदर सुधा , भूषण चमके देह।।


गुनाह

23/05
विधा-दोहा
*****************
मात-पिता के वचन का , करना तुम निर्वाह।
उन चरणों में धाम है , मत कर कभी गुनाह।।

पाक रहे ये जिंदगी , करती हूँ आगाह।
महनत से सब कुछ मिले , करना नहीं गुनाह।।

खुद को मत छोटा समझ , मन में रख उत्साह।
हीन समझना स्वयं को , सबसे बड़ा गुनाह।।

करना नहीं गुनाह तू , पाप-पुण्य पहचान।
बनो न भागी नर्क का , रखो कर्म का ध्यान।।

गलती से ही सीखता , हर कोई इंसान।
बचना मगर गुनाह से , सही गलत पहचान।।

भोला अरु मासूम रह , रखना स्वच्छ निगाह।
दूषित मन करना नहीं , करके कोइ गुनाह।।

ऐसी जगह नहीं जहाँ , होते नहीं गुनाह।
न्याय हमेशा ही मिले , यही मनुज की चाह।।

मंदिर मस्जिद ही नहीं , प्रभु तो है चहुँ ओर।
करता मनुज गुनाह तो , देते दंड कठोर।।

मुझसे नजरें चार कर , मुझको किया तबाह।
प्यार किया था बस उन्हें , फिर क्या किया गुनाह।।

कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी  (उत्तर प्रदेश)

Friday 22 May 2020

आंसू,गाँव, मजदूर

22/05/2020
1-आँसू
पलकों में आँसू भरे , बनकर गिरते नीर।
कोई समझे नीर है , कोई समझे पीर।।

2-गाँव
बिगड़ी हालत गाँव की , उजड़ गया सब बाग।
नहीं छाँव दिखता कहीं , सूरज उगले आग।।

3-मजदूर
बसी बसाई जिंदगी , छोड़ दिये मजदूर।
जाना इनको गाँव है , अब होकर मजबूर।।


Monday 18 May 2020

दोहे...श्रृंगार, धरती

18/05/2020
कोमल है ये पुष्प-सी , और नैन में नेह।
लगे अधर सुंदर सुधा , भूषण चमके देह।।

धरती के इस जिस्म पर , मैं हूँ एक लिबास।
कोमल कोमल गात है , कहते मुझको घास।।


Saturday 16 May 2020

कुण्डलिया



हिम्मत चिड़िया की गजब ,कभी न मानी हार।
तिनका तिनका जोड़कर,दिया हवा को मार।।
दिया हवा को मार,सफलता हासिल कर ली।
किया विजय का गान,हीय में खुशियाँ भर ली।
रखे समय का ध्यान,बड़ी है इसकी कीमत।
है छोटी सी जान,मगर कितनी है हिम्मत।

दोहे-कर्म ,धर्म,मर्म

16/05/2020/शनिवार
1-कर्म
मानव तन दुर्लभ मिले , मत बनना तू शूल।
यश  फैले निज कर्म से , बनो सुवासित फूल।।

2-धर्म
कर्ज उतारा कर्ण ने , किया धर्म से बैर।
साथ दिया था मित्र का , कर अपनो को गैर।।

3-मर्म
कोयल बैठी मौन है , कौवे करते शोर।
करते बातें मर्म की , बोले वचन कठोर।।


Thursday 14 May 2020

दोहे


बाते करता सत्य की , खुद ही बोले झूठ।
सत्य वचन कड़वा लगे , पल पल जाये रूठ।।

निर्मल उसका नाम है , रखता मन में मैल।
दिखे नहीं संवेदना , लगता उर से शैल।।

Tuesday 12 May 2020

चुनौती...12/05/2020


विकट चुनौती का चलो , ढूंढे कोई तोड़।
जीवन है संघर्ष का , देना मत पथ छोड़।।


जलती लौ-सी जिंदगी , मत जीवन से हार।
पवन चुनौती दे रहा , इसको कर स्वीकार।।

Saturday 9 May 2020

तुलसी,सूर,कबीर

भक्ति भाव रसपूर्ण है , भाषा सरल सुबोध।
रामचरित मानस रचे , करके तुलसी शोध।।

काम क्रोध मद लोभ सब , तज कर तुलसी संत।
रामचरित मानस रचे , महिमा बड़ी अनंत।।

कथा कहे श्री राम की , किये राम से प्रीत।
रामचरित तुलसी रचे , लिए हृदय को जीत।।

जन जन के उर में बसे , तुलसी के श्री राम।
जो भजता श्री राम को , मिलता है सुख धाम।।

तुलसी सूर कबीर जी , तीनो संत सुजान।
भगवन का गुणगान कर , बांटा सबको ज्ञान।।

दोहे संत कबीर के , देते हैं संदेश।
दीपक जलता ज्ञान का , मिटता मन का क्लेश।।

गुरू बड़ा है ईश से , कहते यही कबीर।
ज्ञान ज्योति गुरु से जले , बदले जो तकदीर।।

पाखण्डों को काटते ,  ऐसे संत कबीर।
भेद भाव से मुक्त हो , मगहर तजा शरीर।।

तरुवर खाता फल नहीं , नदी न पीती नीर।
सज्जन तो सद्ज्ञान से , हरते सबके पीर।।
09/05/2020

Friday 8 May 2020

दोहा


मन रूपी संदूक में , यादें रखो समेट।
दुख की घड़ियां छोड़कर , रखना नेह लपेट।।

Thursday 7 May 2020

दोहा


07/05/2020
****************
कैद भरी है जिंदगी , बैठा मनुज उदास।
रास रचा यूं प्रकृति ने , लगता घर वनवास।।

Wednesday 6 May 2020

06/05मन में उठा सवाल

कौन सुखी इस जगत में , मन में उठा सवाल।
देखा राजा रंक तक , सबका इक सा हाल।।

दशरथ जी तो भूप थे , पर था पुत्र वियोग।
तड़प तड़प कर वो मरे , कैसा जीवन भोग।।

देख कथा श्री राम की , छोड़ दिये सुख धाम।
लक्ष्मण,सीता साथ में , वन वन भटके राम।।

सीता माँ थी पतिव्रता , फिर भी लगा कलंक।
जीवन बीता विरह में , गयी धरा के अंक।।

नारी थी इक उर्मिला , छूटा पति का संग 
लौटे चौदह वर्ष पर , बदला जीवन रंग।।

नारी थी इक द्रोपदी , सहे दुखों की आँच।
लाज बचायी कृष्ण ने ,  रहे विवश पति पाँच।।

दोहे06/05

लग जाये यदि लत बुरी , समझ शुरू अवसाद।
एक सुखी इंसान को , कर देता बर्बाद।।

नैन सखा है हृदय की , समझे उसकी पीर।
हृदय कराहे दर्द से , गिरे नैन से नीर।।

गर्दिश के इस दौर में , सकल जगत भयभीत।
मगर न छोड़ो धैर्य को , होगी अपनी जीत।।

माँ को राशन चाहिए , पापा मुझे किताब।
गर चिंता परिवार की , छूना नहीं शराब।।

राशन की चिंता करो , भरता इससे पेट।
छूना नहीं शराब को , पैसा रखो समेट।।

Monday 4 May 2020

दोहे


मन की चोरी कवि करे,धन की करता चोर।
दोनों एक समान हैं, करे न कोई शोर।।

जीवन तो है साधना,मत बैठो तुम हार।
जीवन रूपी नाव फिर, कैसे होगी पार।।

यहाँ सबल अब कौन है,या निर्बल है कौन।
देखे जब हालात तो,बैठी मैं तो मौन।।


अनुशासन से देश का,होता है उद्धार।
कर शासन की पालना,जीवन का शृंगार।।

गठरी बाँधो कर्म की,फल की इच्छा त्याग।
कर्म योग निष्काम हो,लगे न कोई दाग।।

हृदय चीरता तिमिर का,जला जला कर गात।
रखता है शुचि भावना,सहनशील अभिजात।।


Sunday 3 May 2020

दोहागजल


दोहागजल
धरती के श्रृंगार है , इनसे कर लो प्यार।
वृक्षों ने हमको दिया , ये सुंदर संसार।।

पंछी के घर बार है , बरसाते ये मेघ,
बिना मुकुट के भूप हैं , करें प्रकृति शृंगार।

हरे हवा के जहर को , इनसे मिलती श्वांस,
देते हैं बिन लोभ के , करते नित उपकार।

भाव समर्पण का रहे , हर क्षण सेवा,त्याग,
रक्षा करते वृक्ष ये , खुशहाली के द्वार।

साफ करें पर्यावरण , ये जीवन के अंग,
इनके बिन जीवन नहीं , ये जीवन आधार।

इनसे ही भोजन मिले , इनसे बने मकान,
काट रहे क्यों वृक्ष को , करना मनुज विचार।


जय माँ शारदे


जय माँ शारदे🙏🙏
**************
श्वेत वस्त्र धारण किये , वीणा पुस्तक हाथ।
ज्ञान कोष की स्वामिनी , टेकू द्वारे माथ।।

रहती है बैकुण्ठ में , दिखे कीर्ति चहुँ ओर।
दूर करे अज्ञानता , करें ज्ञान का भोर।।

नमन करूँ माँ शारदे , ऐसा कर उपकार।
ज्ञान ज्योति उर में जले , बढे लेखनी धार।।

वीणा पुस्तक धारणी , हृदय विराजो आप।
मिट जाये अज्ञानता , नहीं रहे संताप।।

Friday 1 May 2020

दोहे


प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा , बढ़े न तन का ताप।
भोग योग पर ध्यान दो , रहकर घर में आप।।

ध्यान लगाओ ईश में , मिटता मन अवसाद।
मन के पाँच विकार तो , कर देते बर्बाद।।



Wednesday 29 April 2020

ऋण पर दोहा


दबो नहीं तुम ऋण तले , इसका घातक भार।
छिन जाता सुख चैन सब , फिर जीवन बेकार।।

Sunday 26 April 2020

श्री कृष्ण और सूर


विधा-दोहा
श्याम वर्ण गोपाल जी , बालरूप भगवान।
सूरदास जी कर रहे , मोहन का गुणगान।।

मनमोहक छवि श्याम की , मुख पर है मुस्कान।
मोर मुकुट औ पीत पट , कुण्डल शोभे कान।।

कृष्ण भक्ति में लीन है , दिखे प्रेम अनुराग।
ध्यानमग्न हो गा रहे , सुख वैभव सब त्याग।।

भक्ति भाव में लीन है , सूरदास जी संत।
बालरूप वर्णन किये , जिनकी कृपा अनंत।।

बहती धारा प्रेम की , भले नेत्र से सूर।
रामकली में पद रचे , भक्ति भाव भरपूर।।

बहती धारा प्रेम की , भक्ति भाव में डूब।
सूरदास वर्णन किये , बालरूप का खूब।।

Saturday 25 April 2020

दोहे

1-जनम-मरन
जीव- वृक्ष गति एक है,लेते जन्म नवीन।
जनम-मरन पुनि पुनि रहे,होकर मृत्यु अधीन।।

2-सत्ता
सत्ता लोभी लालची , करते अत्याचार।
झोली भरते झूठ से , जाकर सबके द्वार।।

3-अत्याचार
अब भी राक्षस हैं यहाँ , करते अत्याचार।
नहीं डरे निज कर्म से , करे संत पर वार।।

४-संत
संग्रह कर तू प्रेम धन , समझ और की पीर।
नेक कर्म सबसे बड़ा , कहते संत फकीर।

5-जन्म
मानव अपने जन्म को , नहीं गवांवो व्यर्थ।
कर लो ऐसा कर्म तुम , निकले जिसका अर्थ।।

6-नैन
नैन सखा है हृदय की , समझे उसकी पीर।
हृदय कराहे दर्द से , गिरे नैन से नीर।।

7-नेत्र
धोखा खाता नेत्र भी , कहते संत सुजान।
सोने का मृग देखकर , कर न सके पहचान।।

स्वरचित
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

Sunday 19 April 2020

बचपन


छोटे छोटे पैर हैं , छोटे छोटे हाथ।
लाठी लेकर चल रही , गगरी रख कर माथ।।

दिखने में छोटी लगे , काम करे गम्भीर।
बजा रहे सब तालियां , कोइ न देखे पीर।।

मात-पिता की लाडली , दिखा रही है खेल।
भरती इससे पेट ये , जीवन गर्त ढकेल।।

जिनके हाथों चाहिए , कॉपी कलम दवात।
उनको चिंता भूख की , सता रही दिन- रात।।

छोटी सी ये जान है , करती बड़ा कमाल।
बचपन क्यों मजबूर है , करती लता सवाल।।


Saturday 18 April 2020

दोहे

छूना हो यदि शिखर को,कर पथ का निर्माण।
लक्ष्य भेद कर ही करो,अपना शुरू प्रयाण।।

दीप जले दहलीज पर,भवन खिले हर फूल।
दुख का साया दूर हो,जीवन हो अनुकूल।।

गठरी बाँधो कर्म की,फल की इच्छा त्याग।
कर्म योग निष्काम हो,लगे न कोई दाग।।

अमन दूत का पाठ पढ़,रह हिंसा से दूर।
दया दृष्टि रखना सदा,अगर दिखे मजबूर।।

सोच मिलेगा क्या तुझे,देकर सबको घाव।
मानव तन दुर्लभ मिले, छोड़ कपट का भाव।।

काम क्रोध मद लोभ तज,समझ यही वैराग्य।
पल पल जप श्री राम को,दूर करे दुर्भाग्य।।

मौन खड़ी लेकर तुला,कैसा है ये न्याय।
चलती गाड़ी झूठ की,सत्य खड़ा असहाय।।

दोहा शून्य पर

दिया शून्य इस गणित ने,रखा शून्य का ध्यान।
शून्य बिना बढ़ता नहीं,किसी अंक का मान।।

दोहे


-अनुपम
अनुपम छवि प्रभु राम की , तीर, धनुष हैं हाथ।
धाम छोड़ वन को चले , सीता,लक्ष्मण साथ।।

2-द्रष्टा
राजा हो या रंक हो , सब हैं एक समान।
हरते सबके पीर को , सम द्रष्टा भगवान।।

3-दुर्लभ
बैठे दुर्लभ सब लगे , जाती किस्मत रूठ।
मेहनत कहता है सदा , भाग्य रेख को झूठ।।

दोहा

विपदा में जो साथ दे,समझ वही भगवान।
बैठ भवन चिंतन करो,मित्र शत्रु पहचान।।

Monday 13 April 2020

गजल


एक कोशिश
2122  1212  22

मैं हृदय में उसे बसाता हूँ।
पीर किससे कहूँ छुपाता हूँ।
ऐ खुदा ऐतबार करना तू,
दर्द लिखकर गजल सुनाता हूँ।
जिंदगी ये बिखर गयी ऐसे,
आरजू अब नहीं सजाता हूँ।

Sunday 12 April 2020

कोरोना काल के कुछ दोहे

1
दहल उठे सुनकर सभी , बहुत हुआ संताप।भारत में जब से सुना , कोरोना पदचाप।।
2
मार पड़े जब वक्त की , होता है संताप।
समय बड़ा बलवान है , समझ समय पद चाप।।
3
त्राहि त्राहि है जगत में , जन जन हैं भयभीत।
दूर रहो समुदाय से , कुछ दिन मेरे मीत।।
4
कैसा ये दुर्भाग्य है , सहमा है इंसान।
संकट ये गहरा गया , दूर करो भगवान।।
5
जगदम्बे माँ तुम हरो , जन जन की अब पीर।
दुख छाया घनघोर है , सबके नैनन नीर।।
6
कोरोना के कोप से , मचा हुआ है द्वंद।
बात मान सरकार की , नहीं बनो मतिमंद।।
7
समय बिताओ भवन में , मात-पिता के साथ।
आप संक्रमण से बचो , बार बार धो हाथ।।
8
कोरोना का भय जहाँ , सूनसान हर शाम।
देखो इस ब्रह्मांड में , ठहर गया हर काम।।
9
बीमारी तो विकट है , दिखे न कोई छोर।
कोरोना योद्धा सबल , लगा रहे हैं जोर।।
10
दीप जलाकर तुम भरो , जन जन में उत्साह।
राष्ट्रधर्म सबसे बड़ा , सभी करें निर्वाह।।
11
दीप जले दहलीज पर , भवन खिले हर फूल।
दुख का साया दूर हो , जीवन हो अनुकूल।।
12
दीप जले सद्भाव का, और जले अविराम।
खुशियों की बौछार हो , अब तो सबके धाम।।

कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

Thursday 9 April 2020

भ्रूण हत्या पाप है

हत्या भ्रूण की पाप है,इससे बड़ा न पाप।
सुता-सुवन अंतर नहीं,समझो इसको आप।।

रचती है ये सृष्टि को,होती कुल की शान।
ये आँचल की छाँव है,रखती सबका मान।।

तुलसी आँगन की लगे,बेटी शीतल छाँव।
रक्षा करना ईश तुम,कांटा गढ़े न पांव।।
कंचन लता चतुर्वेदी
09/04/2020

Saturday 4 April 2020

दोहे


1-ब्रह्मांड
कोरोना का भय जहाँ, सूनसान हर शाम।
देखो इस ब्रह्मांड में,ठहर गया हर काम।।

2-संक्रमण
समय बिताओ भवन में,मात-पिता के साथ।
आप संक्रमण से बचो,बार बार धो हाथ।।

3-राष्ट्रधर्म
राष्ट्रधर्म का मान रख , रहिये अपने धाम।
कोरोना के दंश का,करिये काम तमाम।।

Sunday 29 March 2020

दोहे


1-नवरात्र
दीप जला नवरात्र में , बैठो माँ के पास।
दूर करेंगी कष्ट माँ , मन में हो विश्वास।।

2-नववर्ष
अभिनंदन हम सब करें , आया है नववर्ष।
जन जन का दुख दूर हो , सबको दे ये हर्ष।।

करें सुरक्षा स्वयं की , बनो नहीं नादान।
अपने घर में बैठकर , करो ईश का ध्यान।।

दोहे


1-कन्हैया
लिए कन्हैया जब जनम  , किये जगत उद्धार।
बचपन से दिखने लगे , उनके ये उपकार।।

2-दुर्भाग्य
रोते हैं दुर्भाग्य पर , बैठे बैठे लोग।
मिलता है सब कर्म से , कर पहले उद्योग।।

3-तुम्हारा
तेरा मेरा मत करो , जीवन है दिन चार।
यहाँ तुम्हारा कुछ नहीं , जाना है उस पार।।


Sunday 15 March 2020

होली पर दोहा


राधा सखियाँ संग में,ग्वाल संग है श्याम।
भर भर मारे रंग जब,झूम उठे ब्रजधाम।।

कुण्डलिया



होली का त्योहार है,नटखट गोपी ग्वाल।
रंग बिरंगे रंग ले,रंग रहे हैं गाल।।
रंग रहे हैं गाल ,अधर पर खुशियाँ छाई।
हाथों में ले रंग,किशोरी दौड़ी आई।
लेकर रंग गुलाल,चली बच्चों की टोली।
करें नहीं हुड़दंग,प्रेम से खेले होली।

बालक की टोली चली,प्रीत रंग ले हाथ।
डाले रंग गुलाल ये,शोर मचाते साथ।।
शोर मचाते साथ, खूब मस्ती में झूमे।
लेकर लाल गुलाल,एक दूजे सँग घूमे।
खुशियाँ हो चहुँ ओर,करूँ विनती जग पालक।
रखना दुख से दूर,रहे हँसते ये बालक।

Friday 13 March 2020

दोहे किसान पर


जौ उपजाता खेत में,जीवन का आधार।
मेहनत से करते सदा,सब पर ही उपकार।।

सुबह सबेरे ये उठे,सुन चिड़ियों का शोर।
बैलो की जोड़ी लिए,चले खेत की ओर।।

सूखा पड़ता है कभी,कभी हुई अतिवृष्टि।
रोवे हलधर भाग्य पर,लेकर व्याकुल दृष्टि।।

धूप,शीत सहता सदा,मैं तो एक किसान।
भरता सबका पेट मैं, नहीं करूँ अभिमान।।

यह धरती कुरुक्षेत्र है,खेती करे किसान।
जाल रचा अतिवृष्टि ने,खाली है खलिहान।।

होली पर कुण्डलिया



होली का त्योहार है,नटखट गोपी ग्वाल।
रंग बिरंगे रंग ले,रंग रहे हैं गाल।।
रंग रहे हैं गाल ,अधर पर खुशियाँ छाई।
हाथों में ले रंग,किशोरी दौड़ी आई।
लेकर रंग गुलाल,चली बच्चों की टोली।
करें नहीं हुड़दंग,प्रेम से खेले होली।


होली पर कुण्डलिया


बालक की टोली चली,प्रीत रंग ले हाथ।
डाले रंग गुलाल ये,शोर मचाते साथ।।
शोर मचाते साथ, खूब मस्ती में झूमे।
लेकर लाल गुलाल,एक दूजे सँग घूमे।
खुशियाँ हो चहुँ ओर,करूँ विनती जग पालक।
रखना दुख से दूर,रहे हँसते ये बालक।

Wednesday 19 February 2020

कुण्डलिया


काले- काले केश हैं,उनमे सजा गुलाब।
पैरों में पाजेब हैं,बैठी है बेताब।।
बैठी है बेताब,और उर -उपवन सूना।
मिलन-विरह ले हृदय,दर्द उपजा है दूना।
श्वेत वसन मोहिनी,कैसे घड़ा संभाले।
देखे पी की बाट, नैन ये काले काले।

कुण्डलिया


 ममता ये अनमोल है,कहीं न इसका मोल।
पल पल ये आशीष को,रखती बाँहें खोल।।
रखती बाँहें खोल,कहूँ क्या माँ की महिमा।
किया सदा ही प्यार,ईश की जीवित प्रतिमा।
बच्चों का हर बोझ उठाती,ऐसी क्षमता।
सुखी लगे संसार,मिले जब माँ की ममता।

कुण्डलिया


निश्छल मन की ये परी, देख रही आकाश।
मात-पिता आये नहीं,कैसे करे तलाश।।
कैसे करे तलाश,अब आदित्य भी डूबा।
बैठे होंगे दैत्य,गलत लेकर मंसूबा।
लालटेन ले हाथ,निहारे पथ वो पल पल।
मात-पिता की राह,देखती नन्हीं निश्छल।

दोहे


महके बगिया देश की,बढ़े तिरंगा शान।
नहीं धर्म पर वार अब,सबका हो सम्मान।।

ये झंडा चूमे गगन,बढ़े तिरंगा शान।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख मिल,रखे देश का मान।।

 गान करें जयहिंद का,आओ मिलकर साथ।
कदम बढ़े सत्कर्म पथ,दे हाथों में हाथ।।

फुलका सिंकता आग पर,बढ़ जाता है स्वाद।
सब्जी मक्खन साथ हो,चटनी और सलाद।।

दोहा


कितना बेबस-बेजुबाँ,कैसे भरे उड़ान।
साथ शिकारी दौड़ता,लेकर तीर कमान।।

दोहा


कर जोरी विनती करूँ, हे राधे गोपाल।
अमर रहे मम प्रेम यह,जीवन हो खुशहाल।।

दोहे


काम,क्रोध,मद लोभ से,बोलो छूटा कौन।
क्रोध अग्नि जब भी जले, उस पल बैठो मौन।।

वीरो की रणभूमि है,पावन मेरा देश।
वीर धीर त्यागी यहाँ, सुंदर है परिवेश।।

जीवन की रण भूमि में,कभी न मानो हार।
बना रहे यदि हौसला,होगी नैया पार।।

कुण्डलिया


काले- काले केश हैं,उनमे सजा गुलाब।
पैरों में पाजेब हैं,बैठी है बेताब।।
बैठी है बेताब,और उर -उपवन सूना।
मिलन-विरह ले हृदय,दर्द उपजा है दूना।
श्वेत वसन मोहिनी,कैसे घड़ा संभाले।
देखे पी की बाट, नैन ये काले काले।

Tuesday 11 February 2020

साधना पर दोहा


1-ऐ साधक कर साधना,फल की इच्छा त्याग।
जनम-मरण के मोह में,मत कर भागमभाग।।
2-मधुर सुनाओ गीत तुम,आ जाये मधुमास।
दिखे कला की साधना, छा जाये उल्लास।।

Wednesday 5 February 2020

दोहा मुक्तक


कच्चा धागा प्रेम का,देते पल पल तोड़।
दुर्गम पथ आता जहाँ, लेते मुख फिर मोड़।
सुख-दुख में सम भाव हो,छोड़े कभी न हाथ,
मुश्किल में ताकत बने,रखते बंधन जोड़।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

Monday 3 February 2020

दोहे


1-वसंत
ऋतु वसंत को देख के , कोयल गाती गीत।
भौरा फूलों के लिए , और जताता प्रीत।।

2-मधुमास
पीत वसन में भू सजी , आया जब मधुमास।
मधुर तान दे कोकिला , दिखता चहुँ उल्लास।।

3-सुगन्ध
चहुँ सुगंध है फूल का , सुंदर सुखद वसंत।
देख वसंती रूप को , खुशियाँ मिले अनंत।।


मोर


अब तो दुखी मयूर है,कैसे नाचे मोर।
वन में फैली आग जो,दहक उठी चहुँ ओर।।

कृष्ण छवि


कमल नयन सुंदर बदन,नील वर्ण आभास।
बलि बलि जाऊँ निरख छवि,मिटे न मन की प्यास।।

मोर मुकुट औ पीत पट,पग नूपुर उर माल।
कुण्डल औ कटि करधनी,मख खाते गोपाल।।

युद्ध भूमि हर घर सजी,जीना है दुश्वार।
छाया दुख घन घोर है,आ फिर जगत सँवार।।

नीर पर दोहा


नहीं किसी घर जाइये,ले नैनो में नीर।
करते हैं उपहास बस,नहीं हरे वो पीर।।

Saturday 25 January 2020

मुक्तक


मुक्तक
2122  2122  2122
सुन भ्रमर रे अब सताना छोड़ दे तू।
गीत गाकर अब लुभाना छोड़ दे तू।
गैर पर अब हक जताना ठीक है क्या,
राज दिल का अब सुनाना छोड़ दे तू।

दोहा-देश पर


वीरों का था हौसला,दहक उठी थी आग।
रक्षा की थी देश की,खेल खून का फाग।।

दोहा


लगते अधर गुलाब से,और मधुर मुस्कान।
नैना तीर कमान हैं,लेते सबकी जान।।

Tuesday 21 January 2020

गुरु पर दोहा


चरणों में वंदन करूँ, गुरु ही तीनो देव।
जीवन के पतवार बन,देते नैया खेव।।

दोहा


मात-पिता औ बंधु हो,तुम मेरे भगवान।
साथी सुख-दुख के तुम्हीं, देते धन औ ज्ञान।।

गुरु पर दोहा


गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु है,गुरु है ईश समान।
इनके सम कोई नहीं,दूर करे अज्ञान।।

Monday 20 January 2020

समय पर दोहा


तुम्हें न पछताना पड़े,समझो ये संकेत।
यहीं समय है चेत लो,चिड़िया चुगे न खेत।।

Saturday 18 January 2020

खत


चिट्ठी मन का प्यार है,प्यार भरी सौगात।
घने घने अक्षर दिखे,भरे हुए जज्बात।।

Friday 17 January 2020

दोहा गीत

जय माँ शारदे
दोहा गीत
**********************
कहता मन भौरा बनूं , गाऊँ मीठे गीत।
बांटू सबको प्रेम रस , बनूं सभी का मीत।

कली-कली मँडरा रहा , और सुनाता गीत,
हँसने लगते फूल तब , देख मधुप की प्रीत।
कलियाँ मेरी दोस्त हैं , फूलो से हैं प्यार,
बहिनें मेरी तितलियाँ , मैं हूँ पहरेदार।

तन से काला वो दिखे , पर उजली है प्रीत।
कहता मन भौरा बनूं , गाऊँ मीठे गीत।

उपवन उपवन घूमता , सदा लुटाता नेह,
सच्चा प्रेमी मधुप है , करो नही सन्देह।
रूप रंग गुण अलग है , रहता फूलों संग,
नेह लुटाता ये मधुप , चूम चूम ये अंग।

समझो रे मन बावरा , कैसी जग की रीत।
कहता मन भौरा बनूं , गाऊँ मीठे गीत।

गुन गुन गाये गीत वो, मन का भेद मिटाय,
भौरा कहता प्रीत कर , प्रेम-सुधा बरसाय।
जगत करम का खेत है , जो बोए सो पाय,
 प्रेम भाव से सींच ले , नाही तो पछताय।

अपनेपन का लोप है , रिश्ते कहाँ पुनीत।
कहता मन भौरा बनूं , गाऊँ मीठे गीत ।


दोहा गीत


विधा-दोहा गीत 
**********************

चंचल नयनों से झरे , आँसू बन के प्यार।
सपनों में पल पल उठूँ , करने को मनुहार।

इस निर्मल आकाश को , प्रतिदिन रही निहार।
विनती करती काग से , आते मेरे द्वार।
देते पी संदेश तुम , देती गोरस भात।
पिया मिलन की आस है , समझो तुम जज्बात।

विछुरन की इस विरह में , जीवन है बेकार।
सपनों में पल पल उठूँ , करने को मनुहार।

काँव काँव जब भी करे , मन में उठे उमंग।
सज धज कर पथ देखती , भरती मन में रंग।
आशा का दीपक जला , जलती है दिन-रात।
छप्पर ऊपर काग रे , मत करना आघात।

तारें भी चिनगी लगे , चाँद लगे अंगार।
सपनों में पल पल उठूँ , करने को मनुहार।

आज अकेली मैं पिया , आप बसे परदेश।
आंखें अब सावन बनी , धर ली जोगन वेश।
बैठी बाट निरख रही , गये मुझे वो भूल।
तन्हा तन्हा मैं रही , उठे हृदय में शूल।

मिलन चाह उपजे हिया , कब होगा दीदार।
सपनों में पल पल उठूँ , करने को मनुहार।


Sunday 12 January 2020

दोहा गजल

जय माँ शारदे
दोहा गजल

शुद्ध हवा पानी मिले , ऐसा मेरा गाँव।
साथ रहे परिवार सब , ऐसा मेरा गाँव।।

मस्त मगन हो घूमते , पंख पसारे मोर,
गाती मीठी कोकिला , ऐसा मेरा गाँव।

मिट्टी में खुशबू बसी , शीतल बहे बयार,
कल कल बहती है नदी , ऐसा मेरा गाँव।

छूकर जाते पैर को , कहे चरण में धाम,
मात-पिता आशीष दे , ऐसा मेरा गाँव।

मेरी दादी प्यार से , कहे कहानी रोज,
सोते आँचल छाँव में , ऐसा मेरा गाँव।

संस्कार की पोटली , मिलती है भरपूर
मिलजुल कर रहते सभी , ऐसा मेरा गाँव।

पत्थर पर दोहा


मैं पत्थर हूँ चुप रहूँ , सहता रहा प्रहार।
मंदिर औ मस्जिद बनें , दुष्टों के हथियार।।

नव रस


नव रस में हैं ये बँधी, करते सब रस पान।
कविता कहते है इसे,भाव समझ इंसान।।

दोहे--तन ,मन,धन


1-तन
माया में उलझो नहीं , राम नाम धन लूट।
हंस उड़े तन छोड़ के , जाता सब कुछ छूट।।

2-मन
देख न गलती और की , अपने मन में झांक।
अपना मन दर्पण बना , खुद अपने को आंक।।

3-धन
धन-वैभव जब पास हो , तभी सुखद संसार।
लालच धन जब भी बढ़े , उर में उपजे रार।।


Friday 10 January 2020

शराब पर दोहा


क्यों मरता बिन मौत ही,सेहत करे खराब।
मानुष तन दुर्लभ रहे,मानव छोड़ शराब।।

Thursday 9 January 2020

दोहा

जीवन तुम ऐसे जियो,करे सभी फिर याद।
मर कर भी जिंदा रहो, रहो सदा आबाद।।

Wednesday 8 January 2020

काया



यह तन तो कच्चा घड़ा,मन का कर  श्रृंगार।
अंधे की लाठी बनो,और करो उपकार।।

भौरा


तन से काला मैं दिखूं,पर उजली है प्रीत।
भौंरा कहते हैं मुझे,गुन गुन गाता गीत।।

नववर्ष पर दोहे

रोटी


अगर पसीना पूजता,मिलती रोटी रोज।
बारहमासी फूल है,दुनिया करती खोज।।

मुस्कान


नहीं किसी को दर्द दो,दे दो कुछ मुस्कान।
पीड़ा से सब मुक्त हों,रख इतना तू ध्यान।।

गरल

गरल
गरल ह्रदय में है भरा,बोले मीठे बोल।
पल पल बदले भाव जब,खोले उसका पोल।।

बेटियां

घर की रौनक बेटियां, दो कुल की है शान।
होती मूरत त्याग की,करती सब बलिदान।।

कौआ और कोयल

जय माँ शारदे
दोहा
**********************
कौआ कोयल परख ले ,आप तराजू तोल।
कोयल गाती है मधुर,बाजे मन में ढोल।।

कौआ करता शोर है , बोले कर्कश बोल।
वाणी के हैं मायने , समझो इसका मोल।।

शीश झुका कर क्या घटा , मिलता सबका मान।
जग में कर्म प्रधान है , काहे को अभिमान।।

कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी