Saturday 25 January 2020

मुक्तक


मुक्तक
2122  2122  2122
सुन भ्रमर रे अब सताना छोड़ दे तू।
गीत गाकर अब लुभाना छोड़ दे तू।
गैर पर अब हक जताना ठीक है क्या,
राज दिल का अब सुनाना छोड़ दे तू।

दोहा-देश पर


वीरों का था हौसला,दहक उठी थी आग।
रक्षा की थी देश की,खेल खून का फाग।।

दोहा


लगते अधर गुलाब से,और मधुर मुस्कान।
नैना तीर कमान हैं,लेते सबकी जान।।

Tuesday 21 January 2020

गुरु पर दोहा


चरणों में वंदन करूँ, गुरु ही तीनो देव।
जीवन के पतवार बन,देते नैया खेव।।

दोहा


मात-पिता औ बंधु हो,तुम मेरे भगवान।
साथी सुख-दुख के तुम्हीं, देते धन औ ज्ञान।।

गुरु पर दोहा


गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु है,गुरु है ईश समान।
इनके सम कोई नहीं,दूर करे अज्ञान।।

Monday 20 January 2020

समय पर दोहा


तुम्हें न पछताना पड़े,समझो ये संकेत।
यहीं समय है चेत लो,चिड़िया चुगे न खेत।।

Saturday 18 January 2020

खत


चिट्ठी मन का प्यार है,प्यार भरी सौगात।
घने घने अक्षर दिखे,भरे हुए जज्बात।।

Friday 17 January 2020

दोहा गीत

जय माँ शारदे
दोहा गीत
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कहता मन भौरा बनूं , गाऊँ मीठे गीत।
बांटू सबको प्रेम रस , बनूं सभी का मीत।

कली-कली मँडरा रहा , और सुनाता गीत,
हँसने लगते फूल तब , देख मधुप की प्रीत।
कलियाँ मेरी दोस्त हैं , फूलो से हैं प्यार,
बहिनें मेरी तितलियाँ , मैं हूँ पहरेदार।

तन से काला वो दिखे , पर उजली है प्रीत।
कहता मन भौरा बनूं , गाऊँ मीठे गीत।

उपवन उपवन घूमता , सदा लुटाता नेह,
सच्चा प्रेमी मधुप है , करो नही सन्देह।
रूप रंग गुण अलग है , रहता फूलों संग,
नेह लुटाता ये मधुप , चूम चूम ये अंग।

समझो रे मन बावरा , कैसी जग की रीत।
कहता मन भौरा बनूं , गाऊँ मीठे गीत।

गुन गुन गाये गीत वो, मन का भेद मिटाय,
भौरा कहता प्रीत कर , प्रेम-सुधा बरसाय।
जगत करम का खेत है , जो बोए सो पाय,
 प्रेम भाव से सींच ले , नाही तो पछताय।

अपनेपन का लोप है , रिश्ते कहाँ पुनीत।
कहता मन भौरा बनूं , गाऊँ मीठे गीत ।


दोहा गीत


विधा-दोहा गीत 
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चंचल नयनों से झरे , आँसू बन के प्यार।
सपनों में पल पल उठूँ , करने को मनुहार।

इस निर्मल आकाश को , प्रतिदिन रही निहार।
विनती करती काग से , आते मेरे द्वार।
देते पी संदेश तुम , देती गोरस भात।
पिया मिलन की आस है , समझो तुम जज्बात।

विछुरन की इस विरह में , जीवन है बेकार।
सपनों में पल पल उठूँ , करने को मनुहार।

काँव काँव जब भी करे , मन में उठे उमंग।
सज धज कर पथ देखती , भरती मन में रंग।
आशा का दीपक जला , जलती है दिन-रात।
छप्पर ऊपर काग रे , मत करना आघात।

तारें भी चिनगी लगे , चाँद लगे अंगार।
सपनों में पल पल उठूँ , करने को मनुहार।

आज अकेली मैं पिया , आप बसे परदेश।
आंखें अब सावन बनी , धर ली जोगन वेश।
बैठी बाट निरख रही , गये मुझे वो भूल।
तन्हा तन्हा मैं रही , उठे हृदय में शूल।

मिलन चाह उपजे हिया , कब होगा दीदार।
सपनों में पल पल उठूँ , करने को मनुहार।


Sunday 12 January 2020

दोहा गजल

जय माँ शारदे
दोहा गजल

शुद्ध हवा पानी मिले , ऐसा मेरा गाँव।
साथ रहे परिवार सब , ऐसा मेरा गाँव।।

मस्त मगन हो घूमते , पंख पसारे मोर,
गाती मीठी कोकिला , ऐसा मेरा गाँव।

मिट्टी में खुशबू बसी , शीतल बहे बयार,
कल कल बहती है नदी , ऐसा मेरा गाँव।

छूकर जाते पैर को , कहे चरण में धाम,
मात-पिता आशीष दे , ऐसा मेरा गाँव।

मेरी दादी प्यार से , कहे कहानी रोज,
सोते आँचल छाँव में , ऐसा मेरा गाँव।

संस्कार की पोटली , मिलती है भरपूर
मिलजुल कर रहते सभी , ऐसा मेरा गाँव।

पत्थर पर दोहा


मैं पत्थर हूँ चुप रहूँ , सहता रहा प्रहार।
मंदिर औ मस्जिद बनें , दुष्टों के हथियार।।

नव रस


नव रस में हैं ये बँधी, करते सब रस पान।
कविता कहते है इसे,भाव समझ इंसान।।

दोहे--तन ,मन,धन


1-तन
माया में उलझो नहीं , राम नाम धन लूट।
हंस उड़े तन छोड़ के , जाता सब कुछ छूट।।

2-मन
देख न गलती और की , अपने मन में झांक।
अपना मन दर्पण बना , खुद अपने को आंक।।

3-धन
धन-वैभव जब पास हो , तभी सुखद संसार।
लालच धन जब भी बढ़े , उर में उपजे रार।।


Friday 10 January 2020

शराब पर दोहा


क्यों मरता बिन मौत ही,सेहत करे खराब।
मानुष तन दुर्लभ रहे,मानव छोड़ शराब।।

Thursday 9 January 2020

दोहा

जीवन तुम ऐसे जियो,करे सभी फिर याद।
मर कर भी जिंदा रहो, रहो सदा आबाद।।

Wednesday 8 January 2020

काया



यह तन तो कच्चा घड़ा,मन का कर  श्रृंगार।
अंधे की लाठी बनो,और करो उपकार।।

भौरा


तन से काला मैं दिखूं,पर उजली है प्रीत।
भौंरा कहते हैं मुझे,गुन गुन गाता गीत।।

नववर्ष पर दोहे

रोटी


अगर पसीना पूजता,मिलती रोटी रोज।
बारहमासी फूल है,दुनिया करती खोज।।

मुस्कान


नहीं किसी को दर्द दो,दे दो कुछ मुस्कान।
पीड़ा से सब मुक्त हों,रख इतना तू ध्यान।।

गरल

गरल
गरल ह्रदय में है भरा,बोले मीठे बोल।
पल पल बदले भाव जब,खोले उसका पोल।।

बेटियां

घर की रौनक बेटियां, दो कुल की है शान।
होती मूरत त्याग की,करती सब बलिदान।।

कौआ और कोयल

जय माँ शारदे
दोहा
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कौआ कोयल परख ले ,आप तराजू तोल।
कोयल गाती है मधुर,बाजे मन में ढोल।।

कौआ करता शोर है , बोले कर्कश बोल।
वाणी के हैं मायने , समझो इसका मोल।।

शीश झुका कर क्या घटा , मिलता सबका मान।
जग में कर्म प्रधान है , काहे को अभिमान।।

कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी