मेरी भावनाएं.../कंचनलता चतुर्वेदी
Wednesday 19 February 2020
कुण्डलिया
काले- काले केश हैं,उनमे सजा गुलाब।
पैरों में पाजेब हैं,बैठी है बेताब।।
बैठी है बेताब,और उर -उपवन सूना।
मिलन-विरह ले हृदय,दर्द उपजा है दूना।
श्वेत वसन मोहिनी,कैसे घड़ा संभाले।
देखे पी की बाट, नैन ये काले काले।
कुण्डलिया
ममता ये अनमोल है,कहीं न इसका मोल।
पल पल ये आशीष को,रखती बाँहें खोल।।
रखती बाँहें खोल,कहूँ क्या माँ की महिमा।
किया सदा ही प्यार,ईश की जीवित प्रतिमा।
बच्चों का हर बोझ उठाती,ऐसी क्षमता।
सुखी लगे संसार,मिले जब माँ की ममता।
कुण्डलिया
निश्छल मन की ये परी, देख रही आकाश।
मात-पिता आये नहीं,कैसे करे तलाश।।
कैसे करे तलाश,अब आदित्य भी डूबा।
बैठे होंगे दैत्य,गलत लेकर मंसूबा।
लालटेन ले हाथ,निहारे पथ वो पल पल।
मात-पिता की राह,देखती नन्हीं निश्छल।
दोहे
महके बगिया देश की,बढ़े तिरंगा शान।
नहीं धर्म पर वार अब,सबका हो सम्मान।।
ये झंडा चूमे गगन,बढ़े तिरंगा शान।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख मिल,रखे देश का मान।।
गान करें जयहिंद का,आओ मिलकर साथ।
कदम बढ़े सत्कर्म पथ,दे हाथों में हाथ।।
फुलका सिंकता आग पर,बढ़ जाता है स्वाद।
सब्जी मक्खन साथ हो,चटनी और सलाद।।
दोहा
कितना बेबस-बेजुबाँ,कैसे भरे उड़ान।
साथ शिकारी दौड़ता,लेकर तीर कमान।।
दोहा
कर जोरी विनती करूँ, हे राधे गोपाल।
अमर रहे मम प्रेम यह,जीवन हो खुशहाल।।
दोहे
काम,क्रोध,मद लोभ से,बोलो छूटा कौन।
क्रोध अग्नि जब भी जले, उस पल बैठो मौन।।
वीरो की रणभूमि है,पावन मेरा देश।
वीर धीर त्यागी यहाँ, सुंदर है परिवेश।।
जीवन की रण भूमि में,कभी न मानो हार।
बना रहे यदि हौसला,होगी नैया पार।।
कुण्डलिया
काले- काले केश हैं,उनमे सजा गुलाब।
पैरों में पाजेब हैं,बैठी है बेताब।।
बैठी है बेताब,और उर -उपवन सूना।
मिलन-विरह ले हृदय,दर्द उपजा है दूना।
श्वेत वसन मोहिनी,कैसे घड़ा संभाले।
देखे पी की बाट, नैन ये काले काले।
Tuesday 11 February 2020
साधना पर दोहा
1-ऐ साधक कर साधना,फल की इच्छा त्याग।
जनम-मरण के मोह में,मत कर भागमभाग।।
2-मधुर सुनाओ गीत तुम,आ जाये मधुमास।
दिखे कला की साधना, छा जाये उल्लास।।
Wednesday 5 February 2020
दोहा मुक्तक
कच्चा धागा प्रेम का,देते पल पल तोड़।
दुर्गम पथ आता जहाँ, लेते मुख फिर मोड़।
सुख-दुख में सम भाव हो,छोड़े कभी न हाथ,
मुश्किल में ताकत बने,रखते बंधन जोड़।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी
Monday 3 February 2020
दोहे
1-वसंत
ऋतु वसंत को देख के , कोयल गाती गीत।
भौरा फूलों के लिए , और जताता प्रीत।।
2-मधुमास
पीत वसन में भू सजी , आया जब मधुमास।
मधुर तान दे कोकिला , दिखता चहुँ उल्लास।।
3-सुगन्ध
चहुँ सुगंध है फूल का , सुंदर सुखद वसंत।
देख वसंती रूप को , खुशियाँ मिले अनंत।।
मोर
अब तो दुखी मयूर है,कैसे नाचे मोर।
वन में फैली आग जो,दहक उठी चहुँ ओर।।
कृष्ण छवि
कमल नयन सुंदर बदन,नील वर्ण आभास।
बलि बलि जाऊँ निरख छवि,मिटे न मन की प्यास।।
मोर मुकुट औ पीत पट,पग नूपुर उर माल।
कुण्डल औ कटि करधनी,मख खाते गोपाल।।
युद्ध भूमि हर घर सजी,जीना है दुश्वार।
छाया दुख घन घोर है,आ फिर जगत सँवार।।
नीर पर दोहा
नहीं किसी घर जाइये,ले नैनो में नीर।
करते हैं उपहास बस,नहीं हरे वो पीर।।
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)