Tuesday 30 June 2020

देश भक्ति पर दोहे



लिए तिरंगा हाथ में,ये हैं वीर जवान।
कदम मिलाकर चल रहे, हैं भारत की शान।।

रक्षा करते देश की, होकर ये कुर्बान।
चलो बढायें जोश हम,रखकर इनका मान।।

आन बान ये शान हैं, चलो करें जयगान।
जियें हजारों साल ये,भारत के अभिमान।।

Wednesday 24 June 2020

प्रकृति का महत्व

1-
मत काटो तुम वृक्ष को,ये जीवन के अंग।
इनके बिन जीवन कहाँ, भरते यही उमंग।

2-
प्रकृति सम्पदा हैं बड़ी,इसको पल पल तोल।
श्वास बिना सुन हे मनुज,क्या जीवन का मोल।।

3-
हे मानव नादान तू,मत जीवन को भूल।
धरती से यदि तरु हटे, होगा नष्ट समूल।।

4-
धरती के शृंगार है,इनसे कर लो प्यार।
वृक्षों ने हमको दिया,ये सुंदर संसार।।

5-
पेड़ कटे जीवन घटे, नहीं मिले सुख धाम।
पेड़ बढ़े जीवन मिले, करें पथिक विश्राम।।

6-
मेघ प्रीत बरसा रहा,जैसे हो उपहार।
सज जायेगी अब धरा,कर नूतन शृंगार।।

7-
गीत सलोने गा रहे,मेघ सजायें साज।
सात सुरों के साथ हैं,बारिश बूँदे आज।।

8-
नहीं प्रकृति हैं जल बिना,नहीं सकल संसार।
पानी बिन जीवन कहाँ, जल जीवन आधार।।

9-
नदियाँ परहित में बहे,नहीं करें अभिमान।
पशु पक्षी इंसान को,जीवन करे प्रदान।।

10-
पानी बिन सब सून है,नदियाँ बनती रेत।
जल जीवन आधार है,मानव रहो सचेत।।


दोहा मुक्तक


सगुण भक्ति दो रूप में,कृष्ण भक्ति अरु राम।
मूल कथा इस काल के,राम और हैं श्याम।
सूरदास जी ने किया,मोहन का गुणगान,
मूरत थे आदर्श के,तुलसी के श्री राम।

Tuesday 23 June 2020

दोहा मुक्तक


(2)
अब कागज के फूल से,सभी सजाते द्वार।
देख अपरचित से लगे,दिखती नहीं बहार।
कलयुग है कंचन सुनो, सब हैं माया जाल,
सूरत चिकनी झूठ की,जिससे करते प्यार।

Monday 22 June 2020

दोहा मुक्तक

नमन मंच
दोहा मुक्तक प्रतियोगिता
22/06/2020
सोमवार
विधा-दोहा मुक्तक
(1)
हार गई मैं सत्य कह,कौन रखे अब मान।
दीवानें अब झूठ के,झूठी है मुस्कान।
सत्य भले लगता कठिन,देता ये विश्वास,
देख रही पर झूठ अब,बन बैठा बलवान।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

Sunday 14 June 2020

दोहा मुक्तक


दोहा मुक्तक
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कैद किये प्रिय नजर से , दिये एक मुस्कान।
हार गयी मैं हृदय को , और हुई कुर्बान।
कर सोलह श्रृंगार मैं , गई सजन के पास,
उपमा में मुझको कहा , मुखड़ा चाँद समान।

फँसी मुहब्बत जाल में , जकड़ गयी मैं यार।
मेरे मन के मीत थे , कर ली उनसे प्यार।
सात जनम में बँध गयी ,मैं सजना के साथ,
दर्पण थे मेरे पिया , करती थी श्रृंगार।

चुरा लिया चित चोर ने , लगा प्रेम का रोग।
वो पतंग मैं डोर हूँ , कहते ऐसे लोग।
सुध बुध खोई मैं खड़ी , करूँ पिया को याद,
करें सखी उपहास ये , किया किसी ने जोग।

क्या मोहब्बत है यही ,कौन मुझे समझाय।
जियरा धड़के जोर से , पल पल बढ़ता जाय।
नहीं दवा इस रोग का , कहते ऐसे  वैद्य,
प्रीत रोग मुझको लगी , अब क्या करूँ उपाय।


Saturday 13 June 2020

कुण्डलिनी छंद


कहता मन भँवरा बनूँ, गाऊँ मीठे गीत।
बाँटूं सबको प्रेम रस,बनकर सबका मीत।।
बनकर सबका मीत, सभी के उर में रहता।
सदा लुटाऊँ नेह,यही मन मेरा कहता।

Wednesday 10 June 2020

कुण्डलिनी छंद


ऐसी सास ननद मिली,करें बहू से घात।
करतीं बात घमंड से,ताना दे दिन रात।।
ताना दे दिन रात,बहू आयी है कैसी।
बहे नैन से नीर,पीर सहती वो ऐसी।

कुण्डलिनी छंद


छोटी बिटिया ने कहा,मुझको भाती शाम।
काम काज सब छोड़कर,पापा आते धाम।।
पापा आते धाम,बनाती माता रोटी।
पकड़ पिता का हाथ,खुशी से नाचे छोटी।

कुण्डलिनी छंद


पूजा होती कर्म की,समझो पर की पीर।
पंछी है ये आत्मा,उड़ती छोड़ शरीर।।
उड़ती छोड़ शरीर,संग ना जाता दूजा।
यदि हो कर्म महान,जगत में होती पूजा।

Sunday 7 June 2020

बेटियाँ


07/06/2020
चित्राक्षरी लेखन
पढ़े बढ़े अब बेटियाँ, बदले और समाज।
शान बने इस देश की,इनके सिर हो ताज।।

खुशबू है ये फूल की,सात सुरों का साज।
इंद्रधनुष-सा रूप है,ये धरती का ताज।।

ये मीठी मुस्कान हैं,लक्ष्मी का वरदान।
जिस घर से अनजान है,उस घर की पहचान।।

अगर न होती बेटियाँ, थम जाता संसार।
सृष्टि कहाँ इनके बिना,इनसे घर परिवार।।

Saturday 6 June 2020

जीवन,सत्संग,विश्वास


दिनांक-06/ 06/ 2020
1-विश्वास
बाँध डोर विश्वास की , लेते हैं दिल जीत।
संकट में जो साथ दे , वो हैं सच्चे मीत।।

2-सत्संग
निर्मल मन,प्रमुदित हृदय , पुलकित होते अंग।
उत्तम जन यदि साथ हो , जीवन है सत्संग।।

3-जीवन
हाथ बढ़े सहयोग को , समझे सबका मर्म।
मानव जीवन तब सफल , अगर नेक हो कर्म।।