Wednesday 26 August 2020

मुक्तक


2122 2122  2122  212
दोस्तों के बीच गद्दारी कहाँ से आ गई।
था घना ये प्रेम मक्कारी कहाँ से आ गई।
फासला बढ़ने लगा था पाटना जिसको हमें,
भाइयों के बीच लाचारी कहाँ से आ गई।

मुक्तक


2122  2122  2122  212
अब अचानक ही ये दुश्वारी कहाँ से आ गई।
जानना मुश्किल कि बीमारी कहाँ से आ गई।
अब सभी अपने घरों में कैद हैं ज्यों जेल हो,
ओह ऐसी यार लाचारी कहाँ से आ गई।

Saturday 22 August 2020

कुछ यूं ही

जब हम पहली बार मिले थे।
इन अधरों पर फूल खिले थे।
एक झलक ने ऐसा छेड़ा
मेरे दिल के तार हिले थे।

दिल की घण्टी खूब बजी थी।
नैनो में बस प्रीत सजी थी।
साजन तेरी खातिर मैं तो,
निज बाबुल का गेह तजी थी।

Friday 21 August 2020

मुक्तक


212  212  212  212
शिव कृपा आपकी ही सदा चाहिए।
शीश पर हाथ हो और क्या चाहिए।
हर कदम पर हमें साथ उनका मिले,
गम रहे दूर ऐसी दुआ चाहिए।

Thursday 20 August 2020

मुक्तक

20/08/2020
2122  2122  2122
द्वेष उर से मैं मिटाना चाहती हूँ।
राह के काँटे हटाना चाहती हूँ।
फूल पग पग पर खिले ऐसा करें हम,
इक जहां ऐसा बसाना चाहती हूँ।

मुक्तक

मुक्तक
122  122  122  122
न हमसे करो इस तरह तुम किनारा।
चलो हम बनें दूसरे का सहारा।
यहाँ छोड़कर सब है जाना सभी को,
नहीं कुछ तुम्हारा नहीं कुछ हमारा।


जल ही जीवन है


20/08/
प्रदत्त शब्द-जल हल कल
मुक्तक

नीर नहीं तो कैसा कल है।
जीवन तब जब भू पर जल है।
नीर बचाना सीखो मानव,
जल संरक्षण इसका हल है।

धरती पर जब जल बिखरेगा।
बोलो कल कैसे निखरेगा।
नीर बचाओ तो जीवन है,
इस हल से जीवन संवरेगा।

जल बिन कैसे कल पाओगे।
अपनी प्यास बुझा पाओगे।
नीर बचे कैसे अब सोचो,
सोच लिया तो हल पाओगे।

आकर बादल प्यास बुझाते।
धरती के मन को सहलाते।
जीव जंतु भी खुश हो जाते,
यूं खुशियों की राह सजाते।

Tuesday 18 August 2020

मुक्तक

एक कोशिश
2122  2122  2122
जिन्दगी को मैं सजाना चाहती हूँ।
कुछ नया करके दिखाना चाहती हूँ।
है कठिन यदि ये डगर तो क्या हुआ जी,
सत्य का इक पथ बनाना चाहती हूँ।

Monday 17 August 2020

हरिगीतिका छंद में ईश वंदना



कर जोरि है विनती हमारी हे प्रभो!स्वीकार कर,
तुझको नमन उपकार कर सबका यहाँ अभिमान हर।
बस प्रेम का दीपक जले दिल से कपट अब दूर हो,
हम साथ मिलकर ही चले मद में न कोई चूर हो।
तम छा गया विपदा हरो भयभीत है जन जन यहाँ,
आयी शरण मैं आपकी बोलो तुम्हीं जायें कहाँ।
ताला खुला पर कैद में लगता बँधे हैं जेल में,
अब कौन सी गोटी चलें शतरंज के इस खेल में।
इक व्यूह रचकर है खड़ा हमको यहाँ ललकारता,
हिम्मत नहीं की लड़ सकूं अब मन नहीं स्वीकारता।
दुख बन घटा में छा गया प्रभु बन पवन आओ यहाँ,
ले जा उड़ा कर अब इसे आये न अब मुड़कर यहाँ।
दिन-रात करते आरती हम बैठ तेरे द्वार पर,
आये शरण हम आपकी अब जिंदगी से हार कर।
प्रभु प्रेम में बलिदान जो अपना मनुज जीवन करे,
हरदम झुकाये शीश जो प्रभु क्लेश को क्षण में हरें।


Thursday 13 August 2020

जय श्री कृष्णा


जब जन्में गोपाल जी, थी अंधियारी रात।
छाई थी काली घटा, खूब हुई बरसात।।

मोर मुकुट है शीश पर,श्याम वर्ण गोपाल।
मक्खन खाते चाव से,नटखट सुंदर लाल।।

माखन की चोरी करें,नंद दुलारे लाल।
मात देख झट से छुपे,नटखट थे गोपाल।।

नटखट है इनकी अदा, करते सबसे प्रीत।
अपनी इक मुस्कान से,लेते मन को जीत।।

जन जन के उर में बसे,चुलबुल नंदकिशोर।
गोकुल की ये गोपियां,कहती माखन चोर।।