आलू के है गुण बड़े, यह सब्जी का भूप।
होता गोल मटोल-सा, इसका रूप अनूप।।
छिप कर रहे जमीन में, बढ़े मिले जब खाद।
व्यंजन बनते हैं कई, इसका अच्छा स्वाद।।
जनमें धरती गर्भ से, रक्षा करे किसान।
बेचे अच्छे भाव में, और बने धनवान।।
नहीं जलन की भावना,करता सबसे प्रीत।
सबके दुख में साथ दे, बनकर उसका मीत।।
मानव तुम भी सीख लो, ऐसा जीवन भोग।
खून खराबा द्वेष सब, है जीवन के रोग।।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 30 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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