देखा राजा रंक तक , सबका इक सा हाल।।
दशरथ जी तो भूप थे , पर था पुत्र वियोग।
तड़प तड़प कर वो मरे , कैसा जीवन भोग।।
देख कथा श्री राम की , छोड़ दिये सुख धाम।
लक्ष्मण,सीता साथ में , वन वन भटके राम।।
सीता माँ थी पतिव्रता , फिर भी लगा कलंक।
जीवन बीता विरह में , गयी धरा के अंक।।
नारी थी इक उर्मिला , छूटा पति का संग
लौटे चौदह वर्ष पर , बदला जीवन रंग।।
नारी थी इक द्रोपदी , सहे दुखों की आँच।
लाज बचायी कृष्ण ने , रहे विवश पति पाँच।।
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