रामचरित मानस रचे , करके तुलसी शोध।।
काम क्रोध मद लोभ सब , तज कर तुलसी संत।
रामचरित मानस रचे , महिमा बड़ी अनंत।।
कथा कहे श्री राम की , किये राम से प्रीत।
रामचरित तुलसी रचे , लिए हृदय को जीत।।
जन जन के उर में बसे , तुलसी के श्री राम।
जो भजता श्री राम को , मिलता है सुख धाम।।
तुलसी सूर कबीर जी , तीनो संत सुजान।
भगवन का गुणगान कर , बांटा सबको ज्ञान।।
दोहे संत कबीर के , देते हैं संदेश।
दीपक जलता ज्ञान का , मिटता मन का क्लेश।।
गुरू बड़ा है ईश से , कहते यही कबीर।
ज्ञान ज्योति गुरु से जले , बदले जो तकदीर।।
पाखण्डों को काटते , ऐसे संत कबीर।
भेद भाव से मुक्त हो , मगहर तजा शरीर।।
तरुवर खाता फल नहीं , नदी न पीती नीर।
सज्जन तो सद्ज्ञान से , हरते सबके पीर।।
09/05/2020
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
10/05/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
वाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब...