दोहागजल
धरती के श्रृंगार है , इनसे कर लो प्यार।
वृक्षों ने हमको दिया , ये सुंदर संसार।।
पंछी के घर बार है , बरसाते ये मेघ,
बिना मुकुट के भूप हैं , करें प्रकृति शृंगार।
हरे हवा के जहर को , इनसे मिलती श्वांस,
देते हैं बिन लोभ के , करते नित उपकार।
भाव समर्पण का रहे , हर क्षण सेवा,त्याग,
रक्षा करते वृक्ष ये , खुशहाली के द्वार।
साफ करें पर्यावरण , ये जीवन के अंग,
इनके बिन जीवन नहीं , ये जीवन आधार।
इनसे ही भोजन मिले , इनसे बने मकान,
काट रहे क्यों वृक्ष को , करना मनुज विचार।
वाह !बहुत सुंदर सृजन आदरणीय
ReplyDeleteसादर