23/05
विधा-दोहा
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मात-पिता के वचन का , करना तुम निर्वाह।
उन चरणों में धाम है , मत कर कभी गुनाह।।
पाक रहे ये जिंदगी , करती हूँ आगाह।
महनत से सब कुछ मिले , करना नहीं गुनाह।।
खुद को मत छोटा समझ , मन में रख उत्साह।
हीन समझना स्वयं को , सबसे बड़ा गुनाह।।
करना नहीं गुनाह तू , पाप-पुण्य पहचान।
बनो न भागी नर्क का , रखो कर्म का ध्यान।।
गलती से ही सीखता , हर कोई इंसान।
बचना मगर गुनाह से , सही गलत पहचान।।
भोला अरु मासूम रह , रखना स्वच्छ निगाह।
दूषित मन करना नहीं , करके कोइ गुनाह।।
ऐसी जगह नहीं जहाँ , होते नहीं गुनाह।
न्याय हमेशा ही मिले , यही मनुज की चाह।।
मंदिर मस्जिद ही नहीं , प्रभु तो है चहुँ ओर।
करता मनुज गुनाह तो , देते दंड कठोर।।
मुझसे नजरें चार कर , मुझको किया तबाह।
प्यार किया था बस उन्हें , फिर क्या किया गुनाह।।
कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
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