Saturday, 23 May 2020

गुनाह

23/05
विधा-दोहा
*****************
मात-पिता के वचन का , करना तुम निर्वाह।
उन चरणों में धाम है , मत कर कभी गुनाह।।

पाक रहे ये जिंदगी , करती हूँ आगाह।
महनत से सब कुछ मिले , करना नहीं गुनाह।।

खुद को मत छोटा समझ , मन में रख उत्साह।
हीन समझना स्वयं को , सबसे बड़ा गुनाह।।

करना नहीं गुनाह तू , पाप-पुण्य पहचान।
बनो न भागी नर्क का , रखो कर्म का ध्यान।।

गलती से ही सीखता , हर कोई इंसान।
बचना मगर गुनाह से , सही गलत पहचान।।

भोला अरु मासूम रह , रखना स्वच्छ निगाह।
दूषित मन करना नहीं , करके कोइ गुनाह।।

ऐसी जगह नहीं जहाँ , होते नहीं गुनाह।
न्याय हमेशा ही मिले , यही मनुज की चाह।।

मंदिर मस्जिद ही नहीं , प्रभु तो है चहुँ ओर।
करता मनुज गुनाह तो , देते दंड कठोर।।

मुझसे नजरें चार कर , मुझको किया तबाह।
प्यार किया था बस उन्हें , फिर क्या किया गुनाह।।

कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी  (उत्तर प्रदेश)

No comments:

Post a Comment