Saturday, 23 May 2020

शृंगार रस


22/05/
मृदु वाणी हो अधर पर , आँखों में हो नेह।
आभूषण हो सत्य का , करे सुशोभित देह।।

एक नार ऐसी दिखी , जिसके नैन विशाल।
चाल चले गज के सदृश , सबको करे निहाल।।


मृग लोचन है मदभरी ,और गुलाबी गाल।
कौन नार, ये सुंदरी , मन में उठे सवाल।।


अनुपम कृति ये प्रकृति है , दूजा नारी रूप।
सृष्टि कहाँ इनके बिना , दोनों रूप अनूप।।

कोमल है ये पुष्प-सी , और नैन में नेह।
लगे अधर सुंदर सुधा , भूषण चमके देह।।


No comments:

Post a Comment