22/05/
मृदु वाणी हो अधर पर , आँखों में हो नेह।
आभूषण हो सत्य का , करे सुशोभित देह।।
एक नार ऐसी दिखी , जिसके नैन विशाल।
चाल चले गज के सदृश , सबको करे निहाल।।
मृग लोचन है मदभरी ,और गुलाबी गाल।
कौन नार, ये सुंदरी , मन में उठे सवाल।।
अनुपम कृति ये प्रकृति है , दूजा नारी रूप।
सृष्टि कहाँ इनके बिना , दोनों रूप अनूप।।
कोमल है ये पुष्प-सी , और नैन में नेह।
लगे अधर सुंदर सुधा , भूषण चमके देह।।
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