माँ ! माँ ! मैं फिर से बच्चा बनना चाहता हूँ | मुझे अपने आंचल में छुपा लो
माँ ! मुझे वही कहानी सुनाओ जो सुनाया करती थी | मैं इस देश दुनियां से
अनभिज्ञ रहना चाहता हूँ | मैं इन लोगों का रुदन बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा |
भ्रष्टाचार की डरावनी चीखें, भूखमरी के विलाप से अच्छा है कि मैं बच्चा ही
रहूँ, कभी बड़ा न होऊं |
काश ! मैं बच्चा होता,
खाता खेलता हँसता,
लोरी सुनकर सोता,
काश ! मैं बच्चा होता |
काश ! मैं बच्चा होता,
सुख सपनों में खोता,
चाद तारों के लिए रोता,
काश ! मैं बच्चा होता |
काश ! मैं बच्चा होता,
नानी, दादी से कहानी सुनता,
माँ के आंचल में छुपकर सोता,
काश ! मैं बच्चा होता |
काश ! मैं बच्चा होता,
माँ के हाथों रोटी खाता,
भूखमरी, बेरोजगारी से न रोता,
काश ! मैं बच्चा होता |
बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,आभार।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती
ReplyDeleteबहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,,
ReplyDeleteआप भी फालो करे तो मुझे हादिक खुशी होगी,,,
RECENT POST : अभी भी आशा है,
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत भावपूर्ण रचना ....
ReplyDeleteबचपन याद दिलाती रचना, बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुती
ReplyDeleteबचपन की यादें झंकृत हो गयीं ... बधाई
ReplyDeleteबचपन को गुदगुदाती ... माँ के अंतरमन का भाव लिए सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteकाश जीवन भर हम बच्चों की तरह निर्मल रह सकें .... भाव पूर्ण अभिव्यक्ति .... मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार
ReplyDeleteबचपन तो बस बचपन ही होता है, बहुत सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
बचपन के दिन भी क्या दिन थे!बहुत सुन्दर कविता.
ReplyDeleteChild hood is the best stage of the life.
ReplyDeleteVinnie
सुंदर।
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