Wednesday 17 July 2013

काश ! मैं बच्चा होता


         माँ ! माँ ! मैं फिर से बच्चा बनना चाहता हूँ | मुझे अपने आंचल में छुपा लो माँ ! मुझे वही कहानी सुनाओ जो सुनाया करती थी | मैं इस देश दुनियां से अनभिज्ञ रहना चाहता हूँ | मैं इन लोगों का रुदन बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा | भ्रष्टाचार की डरावनी चीखें, भूखमरी के  विलाप से अच्छा है कि मैं बच्चा ही रहूँ,  कभी बड़ा न होऊं  |

काश ! मैं बच्चा होता,
खाता खेलता हँसता,
लोरी सुनकर सोता,
काश ! मैं बच्चा होता |

काश ! मैं बच्चा होता,
सुख सपनों में खोता,
चाद तारों के लिए रोता,
काश ! मैं बच्चा होता |

काश ! मैं बच्चा होता,
नानी, दादी से कहानी सुनता,
माँ के आंचल में छुपकर सोता,
काश ! मैं बच्चा होता |

काश ! मैं बच्चा होता,
माँ के हाथों रोटी खाता,
भूखमरी, बेरोजगारी से न रोता,
काश ! मैं बच्चा होता |

16 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,आभार।

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  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती

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  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती

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  4. बहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,,
    आप भी फालो करे तो मुझे हादिक खुशी होगी,,,
    RECENT POST : अभी भी आशा है,

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !!

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  6. बहुत खूबसूरत भावपूर्ण रचना ....

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  7. बचपन याद दिलाती रचना, बहुत सुन्दर

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  8. सुन्दर प्रस्तुती

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  9. बचपन की यादें झंकृत हो गयीं ... बधाई

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  10. बचपन को गुदगुदाती ... माँ के अंतरमन का भाव लिए सुन्दर रचना ...

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  11. काश जीवन भर हम बच्चों की तरह निर्मल रह सकें .... भाव पूर्ण अभिव्यक्ति .... मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आभार

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  12. बचपन तो बस बचपन ही होता है, बहुत सुंदर.

    रामराम.

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  13. बचपन के दिन भी क्या दिन थे!बहुत सुन्दर कविता.

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  14. Child hood is the best stage of the life.
    Vinnie

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