जय माँ शारदे
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मैं सूरज के साथ था , रहा दर्प से दूर।
वो जुगनू के संग में , कैसे है मगरूर।।
उपवन में देखा बहुत , खिले हुए थे फूल।
हरते मन के शूल को , खुशियां दे भरपूर।।
अंतर मन अब साफ हो , पले हृदय में प्रेम,
सदा सत्य का साथ दो , राग द्वेष हो दूर।
जल अन्न और वायु हो , और मधुर हो बोल,
क्रोध,लोभ को दूर कर , करना नहीं गुरूर।
ऐसा अब कलयुग भयो , देख भयो उर खेद,
झूठे,लोभी लालची , मद में रहते चूर।
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