साहित्य समाज का वह परिधान है जो जनता
के जीवन के सुख-दुख, हर्ष-विषाद, आकर्षण-विकर्षण के ताने-बाने से बुना जाता
है। वह जीवन की व्याख्या करता है, इसी से उसमें जीवन देने की शक्ति आती
है। वह मानव को, उसके जीवन को लेकर ही जीवित है, इसलिये वह पूर्णत:
मानव-केन्द्रित हैं। मानव सामाजिक प्राणी है। सामाजिक समस्याओं, विचारों
तथा भावनाओं का जहाँ वह स्रष्टा होता है, वही वह उनसे स्वयं भी प्रभावित
होता हैं। इसी प्रभाव का मुखर रूप साहित्य हैं। साहित्य का अर्थ हैं- जो
हित सहित हो।भाषा द्वारा ही साहित्य हितकारी रूप में प्रकट होता हैं। उसी
के द्वारा मानव-समाज में एक दूसरे के सुख-दुख में भाग लेने का सहकारिता का
भाव उत्पन्न होता हैं। साहित्य मानव के सामाजिक सम्बंधों को और भी दॄढ
बनाता हैं, क्योंकि उसमें सम्पूर्ण मानव जाति का हित सम्मिलित रहता हैं।
साहित्य साहित्यकार के भावों को समाज में प्रसारित करता हैं जिससे सामाजिक
जीवन स्वयं मुखरित हो उठता हैं।साहित्य का आन्नद लेने के लिए हमें
सतोगुणात्मक वृत्तियों में रमने का अभ्यास हो जाता हैं। साहित्य सेवन से
मनुष्य की भावनाएँ कोमल बनती हैं।उसके भीतर मनुष्यता का विकास होता हैं,
शिष्टता और सभ्यता आती हैं। आप आँख दिखाकर किसी को वश में नही कर सकते।
केवल मधुर और कोमल वाणी ही ह्दय पर प्रभाव डालती हैं और उसके द्वारा आप
दूसरों से मनचाहा कार्य करा सकते हैं। तुलसी भी इस बात को स्वीकार करते
हैं---
तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।
वशीकरण इक मंत्र हैं,परिहर वचन कठोर॥
साहित्य का कान्ता-सम्मित मधुर उपदेश बडा प्रभावकारी होता हैं। केशव के एक छंद ने बीरबल को प्रसन्न कर राजा इन्द्रजीत सिंह पर किया हुआ जुर्माना माफ करवा दिया था। बिहारी के एक दोहे ने राजा जयसिंह का जीवन बदल दिया था। इस प्रकार साहित्य हमारे बाहय और आन्तरिक जीवन को निरन्तर प्रभावित करता रहता हैं। समाज और साहित्य का सम्बंध अनादि काल से चला आ रहा हैं। बाल्मिकी ने अपनी रामायण में एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था का चित्रण कर अपने दृष्टिकोण के अनुसार समाज के विभिन्न पहलुओं की विवेचना करते हुए यह सिद्व किया कि मानव- समाज किस पथ का अनुसरण करने से पूर्व संतोष और सुख का अनुभव कर सकता हैं। तुलसी ने भी अपने समय की सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित होकर रामराज्य और राम परिवार को मानव समाज के सम्मुख आदर्श रूप में प्रस्तुत किया। अत: साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब हैं।
तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।
वशीकरण इक मंत्र हैं,परिहर वचन कठोर॥
साहित्य का कान्ता-सम्मित मधुर उपदेश बडा प्रभावकारी होता हैं। केशव के एक छंद ने बीरबल को प्रसन्न कर राजा इन्द्रजीत सिंह पर किया हुआ जुर्माना माफ करवा दिया था। बिहारी के एक दोहे ने राजा जयसिंह का जीवन बदल दिया था। इस प्रकार साहित्य हमारे बाहय और आन्तरिक जीवन को निरन्तर प्रभावित करता रहता हैं। समाज और साहित्य का सम्बंध अनादि काल से चला आ रहा हैं। बाल्मिकी ने अपनी रामायण में एक आदर्श सामाजिक व्यवस्था का चित्रण कर अपने दृष्टिकोण के अनुसार समाज के विभिन्न पहलुओं की विवेचना करते हुए यह सिद्व किया कि मानव- समाज किस पथ का अनुसरण करने से पूर्व संतोष और सुख का अनुभव कर सकता हैं। तुलसी ने भी अपने समय की सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित होकर रामराज्य और राम परिवार को मानव समाज के सम्मुख आदर्श रूप में प्रस्तुत किया। अत: साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब हैं।
5 comments:
- तुलसी के समय में साहित्य महान चरित्रों द्वारा लिखा गया। अब उस पर बौनों का साम्राज्य है! :-)Reply
- bahut accha laga sahity ko lekar is prkar ka chintan केशव के एक छंद ने बीरबल को प्रसन्न कर राजा इन्द्रजीत सिंह पर किया हुआ... IN PRSANGON KO THODA AUR VISTAR MILNA CHAHIYE TAKI MERE JAISE LOGO KO KUCHH JANKARI MIL SAKE ..YE MATR REQUEST HAI ANAYTHA NA LEIN ...KUL MILA KAR AAPKE BLOG PAR AANA ACHHA LAGA.Reply
pehle toh bahut bahut shukriya ki aapne mujh nacheez ke blog pe aa ke comment kiya....
aur ab main ye kehna chahunga ki sahitya he ek aisa pul he jo ek nahi anek sanskritiyon ko jodta hai...
bahut achha likha hai aapne...
main aapka follower ban raha hoon aata rahunga.....
asha hai aap bhi aati rahegi apni kripamay salaah aur tippaniya dene....