Sunday, 9 December 2012

दहेज/Old Post-6

      दहेज प्रथा ने आज सम्पूर्ण समाज को इतने प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया हैं कि व्यक्ति,परिवार तथा समाज के जीवन में विघटन की दशा उत्पन्न हो गयी हैं। इसका सबसे बडा़ दुष्परिणाम पारिवारिक विघटन के रूप में हमारे सामने आया हैं। जब कभी भी वर पक्ष को दहेज में इच्छित सम्पत्ति और उपहार प्राप्त नही होते तो इसके बदले नव-वधू को तरह- तरह से अपमानित किया जाता हैं। इससे नव दम्पत्ति का पारिवारिक जीवन विघटित हो जाना बहुत स्वभाविक हैं। दहेज प्रथा स्त्रियों की समाजिक स्थिति को गिराने वाला एक प्रमुख कारण सिद्ध हुई हैं। इसके कारण प्रत्येक परिवार में पुत्री के जन्म को एक भावी विपत्ति’ के रूप में देखा जाने लगा हैं। इसी कारण लड़कियों को पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में लड़्को के समान अधिकार प्राप्त नही हो पाते। दहेज व्यक्तियों में ऋणग्रस्तता की समस्या को अत्यधिक बढ़ावा दिया हैं। दहेज का प्रबंध करने के लिए अधिकांश व्यक्ति या तो ऋण पर निर्भर होते हैं या सम्पूर्ण जीवन अपने द्धारा उपार्जित आय का स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग नही कर पाते। भारत में जैसे-जैसे दहेज प्रथा की समस्या गम्भीर होती जा रही हैं। नव विवाहित स्त्रियों द्धारा की जाने वाली आत्महत्याओं की संख्या भी बढ़ती जा रही हैं। यह समस्या समाज के सम्भ्रांत, समृद्ध और सशक्त वर्ग से सम्बंधित होने के कारण यह जानना भी कठिन हो जाता हैं कि ऎसी दुर्घटना को हत्या कहा जाय या आत्महत्या। जैसे- जैसे स्त्रियाँ दहेज के विरुद्ध जागरुक होती जा रही हैं, उनकी समस्या सुलझने के स्थान पर और अधिक जटिल बनती जा रही हैं। भारत में दहेज प्रथा उन्मूलन करने के लिए सरकार ने सन १९६१ में एक दहेज निरोधक अधिनियम लागू किया लेकिन असफल रहा। इस अधिनियम को अधिक प्रभावपूर्ण बनाने के लिए सरकार ने सन १९८३ में कानून मे संशोधन किया इसके अतिरिक्त सरकार ने सन १९८५ में भी एक नया कानून बनाया जिसे ‘दहेज निरोधक अधिनियम १९८८’ कहा गया। यह सम्पूर्ण भारत में २ अक्टूबर १९८५ में लागू हो गया। इन सब प्रयत्नों के बाद भी यह हैं कि सरकार का कोई भी वैधानिक अथवा प्रशासकीय प्रयत्न दहेज की समस्या को कम नही कर सका। दहेज के इस कलंक को मिटाने के लिए समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता हैं। इस अभिशाप को मिटाने के लिए युवक और युवतियों को सजग होकर इसका विरोध करना चाहिए। इस दहेज रूपी दानव से युवक ही मुक्ति दिला सकते हैं यदि वे यह संकल्प कर ले कि हम बिना दहेज का विवाह करेंगे तो दहेज माँगनेवालो को कड़ी से कड़ी सजा दिला सकते हैं। इससे हमारे समाज से दहेज लोभी अवश्य दूर हो जायेंगे।है न...

6 comments:

  1. दहेज के इस कलंक को मिटाने के लिए समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की आवश्यकता हैं। इस अभिशाप को मिटाने के लिए युवक और युवतियों को सजग होकर इसका विरोध करना चाहिए।

    Aapki baat se sahmat hoon.
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  2. यदि वे यह संकल्प कर ले कि हम बिना दहेज का विवाह करेंगे तो दहेज माँगनेवालो को कड़ी से कड़ी सजा दिला सकते हैं। इससे हमारे समाज से दहेज लोभी अवश्य दूर हो जायेंगे...


    सही कहा आपने ....!!
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  3. आश्चर्य है कि अभी भी लोग इसे लेने और देने में विश्वास रखते हैं। लेखनी से एक अच्छा प्रयास किया है इस सामाजिक समस्या से निबटने का।
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  4. nahin main aapse sahmat nahin .. har samsya ka samadhan uske karno mein chhipa hota hai..dahez ladki ko uske pita se milne wala vah dhan hai jo use pita ki sampati se milna tha yadi vah ladka hoti .. galti dahhez mein nahi uske anupalan mein hai.. na ladki ke mata pita ko na hi var paksh ke logon ko ye adhikar hai ki ladki ke bhag ke is dhad ko idhar udhar ki vyarhttaon aur dikhavon mein ujad dein ..ye poori kadai ke sath ladki ke nam se bank ya kisi jaydad ke roop mein surkshit rahna chahiye.. (koi sarkari agency iski custodian honi chahiye)..(iska pata bhi ladki ke pita aur ladki ke siva anay kisi ko nahin hona chahiye..) jo ya to bahut aadey samay mein ya aage bacchon ke kam aa sake.. iske liye jaroori hai ki shadi ki rasmey bahut sadgi se hon .. var paksh par bhi koi dvab nahin hona chahiye..behtar ho ki shadiyan court mein ragistar hon 5-5 log dono pakshon se aayein bat khatam .. aaj ke samay ko dekhte hue shadi to bahut hi vyarth si cheez lagne lagi hai ..mujhe lagta hai matrisatatmak samaj bhi achha vikalp ho sakta hai..ye bahas kisi sahi nishkarsh tak pahoonchey bina ab rukni nahin chahiye.. osho ne ek bat kahi thi aadhe adure man se ladi jane wali koi bhi ladai hare jane ke liye hoti hai
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  5. बहुत सही जगह प्रहार कर रही हैं आप। यह प्रथा ,परम्परा या लालच सभ्य समाज पर अभिशाप है।
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  6. Dahej ka swaroop aaj bhale hi badal gaya hai lekin wah aaj bhi kam ghatak nahi..
    bahut badiya aalkeh..aabhar!
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1 comment:

  1. यह प्रथा सभ्य समाज पर अभिशाप है।

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