कांटे रोज़ चुना करती हूँ।
गीत सुनाकर गजल सुनाकर,
तुमसे मैं पूछा करती हूँ।
कर कमलो से अपने ही मैं,
फूलों की हूँ सेज सजाती।
नयनों में आँसू है फिर भी,
तुम पर अपना प्यार लुटाती।
बंधी पाँव में बेड़ी जबसे,
इसको खोल नहीं सकती हूँ।
मन में कितना दर्द छिपा है,
लेकिन बोल नहीं सकती हूँ।
ये जीवन सोने का पिज़डा़
पंछी बनी तड़पती हूँ मैं।
दुनिया के सब नाते टूटे,
तन्हा-तन्हा रहती हूँ मैं।
गज़ल नहीं यह गीत नहीं यह,
मेरी व्यथा कहानी है ये।
जीवन में बस दुख ही दुख है,
आँखो में बस पानी है ये।
17 comments:
- sandhyaguptaJune 14, 2009 11:31 AMBlog jagat me aapka swagat hai.Reply
- ये जीवन सोने का पिज़डा़Reply
पंछी बनी तड़पती हूँ मैं।
दुनिया के सब नाते टूटे,
तन्हा-तन्हा रहती हूँ मैं।.....achchhi rachana. - bahut sudnar kavita .....is sajiv chitran ke liye aapko badhai ..Reply
vijay
pls read my new sufi poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/06/blog-post.html - bahut hi sunder kavita likhi hai aapne. badhai deta hun.Reply
- बहुत खूबसूरत लिखा आपनेReply
‘.जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस......’
इस गज़ल को पूरा पढें यहां
http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें - अच्छे भावः, सुन्दर अभिव्यक्ति है ............Reply
_______________________________________
अपने प्रिय "समोसा" के 1000 साल पूरे होने पर मेरी पोस्ट का भी आनंद "शब्द सृजन की ओर " पर उठायें. - aap mere blog par aayeen achha laga...Reply
vaise main bhee uttarpradesh ka rahne vala hu....
mahtura main shri krishan janmbhoomi ke pas mera ghar hai.... - meri kavita par apne vichar dene ke liye shukriya apki kavita padkar mahadevivarma ki yed aa gayiReply
- फूलों जैसे पलकों से मैं,Reply
कांटे रोज़ चुना करती हूँ।
नारी वेदना की शानदार अभिव्यक्ति है - kya bat hai...Reply
bahut-bahut-bahut khoobsurat kavita hui hai - फूलों जैसे पलकों से मैं,Reply
कांटे रोज़ चुना करती हूँ।
बेहद कोमल भाव बहुत खूबसूरत रचना