Sunday, 9 December 2012

नारी वेदना/कंचनलता चतुर्वेदी /Old Post-1

फूलों जैसे पलकों से मैं,
कांटे रोज़ चुना करती हूँ।
गीत सुनाकर गजल सुनाकर,
तुमसे मैं पूछा करती हूँ।

कर कमलो से अपने ही मैं,
फूलों की हूँ सेज सजाती।
नयनों में आँसू है फिर भी,
तुम पर अपना प्यार लुटाती।

बंधी पाँव में बेड़ी जबसे,
इसको खोल नहीं सकती हूँ।
मन में कितना दर्द छिपा है,
लेकिन बोल नहीं सकती हूँ।

ये जीवन सोने का पिज़डा़
पंछी बनी तड़पती हूँ मैं।
दुनिया के सब नाते टूटे,
तन्हा-तन्हा रहती हूँ मैं।

गज़ल नहीं यह गीत नहीं यह,
मेरी व्यथा कहानी है ये।
जीवन में बस दुख ही दुख है,
आँखो में बस पानी है ये।

17 comments:

  1. Blog jagat me aapka swagat hai.
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  2. ये जीवन सोने का पिज़डा़
    पंछी बनी तड़पती हूँ मैं।
    दुनिया के सब नाते टूटे,
    तन्हा-तन्हा रहती हूँ मैं।.....achchhi rachana.
    Reply
  3. bahut sudnar kavita .....is sajiv chitran ke liye aapko badhai ..

    vijay
    pls read my new sufi poem :
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/06/blog-post.html
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  4. bahut hi sunder kavita likhi hai aapne. badhai deta hun.
    Reply
  5. बहुत खूबसूरत लिखा आपने
    ‘.जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस......’
    इस गज़ल को पूरा पढें यहां

    http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
    http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें
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  6. अच्छे भावः, सुन्दर अभिव्यक्ति है ............
    _______________________________________
    अपने प्रिय "समोसा" के 1000 साल पूरे होने पर मेरी पोस्ट का भी आनंद "शब्द सृजन की ओर " पर उठायें.
    Reply
  7. ATI UTTAM
    BADHAIYAN
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  8. bahut sundar abhivyakti hai aabhaar
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  9. aap mere blog par aayeen achha laga...
    vaise main bhee uttarpradesh ka rahne vala hu....
    mahtura main shri krishan janmbhoomi ke pas mera ghar hai....
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  10. khoobsoortee ke saath likha hai ,bdhai.
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  11. सुन्‍दर। शुभकामनाएँ।
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  12. meri kavita par apne vichar dene ke liye shukriya apki kavita padkar mahadevivarma ki yed aa gayi
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  13. फूलों जैसे पलकों से मैं,
    कांटे रोज़ चुना करती हूँ।

    नारी वेदना की शानदार अभिव्यक्ति है
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  14. kya bat hai...
    bahut-bahut-bahut khoobsurat kavita hui hai
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  15. फूलों जैसे पलकों से मैं,
    कांटे रोज़ चुना करती हूँ।
    बेहद कोमल भाव बहुत खूबसूरत रचना
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