Friday 17 January 2020

दोहा गीत


विधा-दोहा गीत 
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चंचल नयनों से झरे , आँसू बन के प्यार।
सपनों में पल पल उठूँ , करने को मनुहार।

इस निर्मल आकाश को , प्रतिदिन रही निहार।
विनती करती काग से , आते मेरे द्वार।
देते पी संदेश तुम , देती गोरस भात।
पिया मिलन की आस है , समझो तुम जज्बात।

विछुरन की इस विरह में , जीवन है बेकार।
सपनों में पल पल उठूँ , करने को मनुहार।

काँव काँव जब भी करे , मन में उठे उमंग।
सज धज कर पथ देखती , भरती मन में रंग।
आशा का दीपक जला , जलती है दिन-रात।
छप्पर ऊपर काग रे , मत करना आघात।

तारें भी चिनगी लगे , चाँद लगे अंगार।
सपनों में पल पल उठूँ , करने को मनुहार।

आज अकेली मैं पिया , आप बसे परदेश।
आंखें अब सावन बनी , धर ली जोगन वेश।
बैठी बाट निरख रही , गये मुझे वो भूल।
तन्हा तन्हा मैं रही , उठे हृदय में शूल।

मिलन चाह उपजे हिया , कब होगा दीदार।
सपनों में पल पल उठूँ , करने को मनुहार।


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