देख सृष्टि सर्जक है नारी,
नहीं कभी हिम्मत है हारी।
सात जनम की कसम निभाती,
बाबुल छोड़ पिया घर जाती।
मर्यादा गहना बन सजती,
जीवन को सुरभित वो करती।
संस्कार से ही घर बनता,
नारी से ही रिश्ता सजता।
माता बनकर आशीष दिया,
पाल पोश कर वो बड़ा किया।
आँचल तो है सुख की छइया,
चार धाम है माँ के पइया।
नारी को सम्मान मिले जब,
खुशियों का फिर फूल खिले तब।
सदा लाज नारी की रखना,
लज्जा ही नारी का गहना।
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