दिनांक-01/12/2019
दोहा गजल
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साँप-नेवला मत बनो , चलो न गिरगिट चाल।
मानव मन दूषित रहे , ऐसा रोग न पाल।।
नफरत के बाजार में , नकली है व्यवहार,
मरी पड़ी संवेदना , हुआ हाल बेहाल।
अपना घर खुद तोड़कर , खुद ही करें विनाश,
नफरत है दिल में भरी , कैसा है ये काल।
कड़ी धूप बरसात में , मिले नहीं आराम,
लाचारी में पेट की , बुरा सभी का हाल।
तनहा है ये जिंदगी , पल पल रहे उदास,
सब किस्मत का खेल है , या दुश्मन की चाल।
बरगद बूढ़ा हो गया , नहीं मिले अब छाँव,
सोचें दादा गाँव के , कहाँ लगे चौपाल।
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