सरस्वती वंदना
चौपाई छंद
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कर जोरी विनती मैं करती।
जग के दुख तू माता हरती।।
सकल विघ्न माँ हरती रहना।
सबके मन को निर्मल करना।।
सबके हिय में उपजे अब सुख।
निकट किसी के आवे ना दुख।।
सुख समृद्धि सम्मान मिले माँ।
नित जीवन में खुशी मिले माँ।।
कृपा आपकी जो मिल जाती।
तभी छंद कुछ मैं लिख पाती।।
लय छन्दों का ज्ञान करा दो।
जन जीवन में ज्योति जगा दो।।
दिव्य रूप माँ ज्ञानदायनी।
तिमिर मिटाओ हंस वाहिनी।।
बुद्धिहीन अब नहीं रहूँ मैं।
भावों का विस्तार करू मैं।।
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