मेरी भावनाएं.../कंचनलता चतुर्वेदी
Monday, 9 December 2019
कुण्डलिया
कुण्डलिया
तुलसी आँगन में जहाँ, बनते बिगड़े काम।
सेवन करते पात का,नहीं रोग फिर धाम।।
नहीं रोग फिर धाम,सदा रहती खुशहाली।
औषधि से भरपूर,रहे इसकी हरियाली।
आँगन तुलसी देख,हिया कंचन की हुलसी।
देती नित जलधार,वृक्ष औषधि है तुलसी।
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