Monday, 9 December 2019

धरती माता

जग जननी धरती कहलाती।
पानी बिन बंजर बन जाती।।
शीत धूप को सहती रहती।
धरती माता कुछ ना कहती।।

सूरज चीर क्षितिज जब आता।
फिर तरु-पल्लव को झुलसाता।।
कितना पीड़ादायक होता।
देख व्यथा फिर मानव रोता।।

प्रकृति नष्ट ना मानव करता।
फिर विपदा से कभी न  लड़ता।।
जड़ चेतन में जोश जगाते।
सूरज अपना धर्म निभाते।।

बादल बनते हैं जब दुल्हे।
तभी घरों में जलते चुल्हे।।
साज बाज सह लेकर आते।
गरज- गरज कर जल बरसाते।।

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