Friday, 27 December 2019

काल पर दोहा


वक्त वक्त का फेर है,कभी धूप तो छाँव।
परख लिया यदि काल को,कांटा लगे न पाँव।।

Thursday, 26 December 2019

मुक्तक


हो अँधेरी रात तो दीया जलाओ,
कल्पना के हाथ से मंदिर बनाओ।
देख उजड़ा हो किसी का आशियाना,
साथ मिलकर के कभी उसको बसाओ।

मंजिल पर मुक्तक


स्नेह मिला जिस राह पर,उस पथ को पहचान।
लम्बी मंजिल तय करो,बनना मत अनजान।
जीवन के इस राह पर,मत करना आराम,
नहीं मिले संघर्ष बिन मंजिल ऐ नादान।

Wednesday, 25 December 2019

चाय पर दोहा


विषय-चाय
तुलसी लौंग इलायची,अदरक देहु मिलाय।
बनती बढ़िया चाय फिर,सबके मन को भाय।।

अन्न दायिनी


अन्न दायिनी भूमि तू , तू जननी तू प्राण।
शरण दायिनी देवि तू , करती सबका त्राण।।

पंछी बैठा शाख पर


पंछी बैठा शाख पे,तन्हा और उदास।
टूटे उसके पंख है,पर जीने की आस।।

Tuesday, 24 December 2019

दोहा गीत

दिनांक-24/12/2019
मंगलवार
श्रद्धेय बलवीर सिंह रंग जी को समर्पित..
आयोजन गीत रंग महोत्सव-54
दोहा गीत
**********************
पंछी होती मैं अगर , गाती मीठे गीत।
लोभ-द्वेष से दूर हो , करती सबसे प्रीत।।

चीं चीं चूं चूं गा रही , ऊपर बैठ मुंडेर,
सुबह जगाती है हमें , तनिक न करती देर।
छोटी है पर सीख दे , रखे समय का ध्यान,
समय लौट आता नहीं , समझो रे नादान।

लोभ-द्वेष से दूर हो , करती सबसे प्रीत।
रखती ऐसी भावना , बनती मन का मीत।

चिड़िया थकती है नहीं , गाती मीठी गान,
खुश रहती है वो सदा , है छोटी- सी जान।
खान-पान निर्मल रहे , शुद्ध हवा औ धूप,
बना रहे जब हौसला , तब निखरेगा रूप।

परहित सोचे हम सभी , सोचे हार न जीत।
लोभ-द्वेष से दूर हो , करे सभी से प्रीत।

हिम्मत उसमे गजब की , कभी न मानी हार,
तिनका तिनका जोड़ कर , दिया हवा को मार।
हासिल कर जब लक्ष्य को , किया विजय का गान,
देख हौसला सब करे , जज्बे का सम्मान।

नभ के आँगन में उडू., होकर मैं बिंदास।
जाना नभ के छोर पर , मन में ले विश्वास।

कंचन लता चतुर्वेदी
वाराणसी

Monday, 23 December 2019

मातृभूमि


विषय-मातृभूमि
मातृभूमि,वसुधा,धरा,प्यारी तेरी गोद।
नदियाँ प्रेम प्रवाह है,करता पवन विनोद।।

बादल बन आकाश में


बादल बन आकाश में,बुझा  धरा की प्यास।
कर निर्मित तुम स्वयं को,रख मन में विश्वास।।

आकाश


हो अनंत ब्रह्मांड में,बना नया आकाश।
ऊँची भरो उड़ान अब,होना नहीं निराश।।

संकल्प


भेद लक्ष्य संकल्प ले,मन में हो विश्वास।
कल में उलझे मत रहो, बना नया इतिहास।।

संकल्प


तोड़ो मत यूं कल्पना,करता समय पुकार।
सोवो मत संकल्प लो,मत जीवन से हार।।

Friday, 20 December 2019

संस्कार,सभ्यता,संकल्प

जय माँ शारदे
प्रदत्त शब्द- संकल्प,संस्कार,सभ्यता
**********************
1-संकल्प
आओ ले संकल्प हम , रचे नया इतिहास।
कदम बढ़े सत कर्म पर , द्वेष न भटके पास।।

2-संस्कार
मात-पिता,गौ,गुरु सदा , इनका कर सम्मान।
संस्कार औ सभ्यता , भारत की पहचान।।

3-सभ्यता
लुप्त हो रही सभ्यता , बदल रहा परिवेश।
छायी है भय की घटा , ये कैसा अब देश।।

गुरु पर दोहे

जय माँ शारदे
सुमन संग वंदन करू , महिमा अपरम्पार।
 बिना गुरु नहीं ज्ञान है , समझो जीवन सार।।

विद्या धन उत्तम रहे , खर्च करे बढ़ जाय।
संचय से घटता सदा , हमको गुरु बतलाय।।

जीवन रौशन है तभी , गुरु जब देते ज्ञान।
मात-पिता,गुरु का सदा , करना तुम सम्मान।।

Thursday, 19 December 2019

भारत पर दोहा


विषय-भारत
माटी ऐसी देश की,जनम लिए भगवान।
वीर,धीर,त्यागी यहाँ, भारत देश महान।।

मीरा पर दोहा


कहती मीरा बावरी,हुई कृष्ण से प्रीत।
नहीं हृदय दूजा बसे,मेरा प्रेम पुनीत।।

Wednesday, 18 December 2019

दर्पण पर दोहा


अपना मन दर्पण बना,जमे न इस पे धूल।
समझो जीवन मोल को,करना कभी न भूल।।

धूल पर दोहा


खनिज रत्न सब हैं छुपे,इससे ही फल फूल।
ये जीवन आधार है,पानी, मिट्टी-धूल।।

Sunday, 15 December 2019

दोहा गजल

जय माँ शारदे
*********************
मैं सूरज के साथ था , रहा दर्प से दूर।
वो जुगनू के संग में , कैसे है मगरूर।।

उपवन में देखा बहुत , खिले हुए थे फूल।
 हरते मन के शूल को , खुशियां दे भरपूर।।

अंतर मन अब साफ हो , पले हृदय में प्रेम,
सदा सत्य का साथ दो , राग द्वेष हो दूर।

जल अन्न और वायु हो , और मधुर हो बोल,
क्रोध,लोभ को दूर कर , करना नहीं गुरूर।

ऐसा अब कलयुग भयो , देख भयो उर खेद,
झूठे,लोभी लालची , मद में रहते चूर।


Saturday, 14 December 2019

धरती,आकाश,प्रदूषण

जय माँ शारदे

प्रदत्त शब्द- धरती, आकाश, प्रदूषण
**********************
1-धरती
धरती जब बंजर बने, पड़ता तभी अकाल।
क्या होगा पानी बिना, सोचो कल का हाल।।

2-आकाश
पाँव तले खिसके धरा, पीड़ा करे प्रहार।
एक नया आकाश बन, मत जीवन से हार।।

3-प्रदूषण
धरा प्रदूषित हो रही, संकट है ये घोर।
अब तो मानव जाग तू , करे प्रदूषण शोर।।


Friday, 13 December 2019

शारदे,कविता,चोर


प्रदत्त विषय-लेखनी, गुणगान,कविता चोर
1-विनती सुन माँ शारदे,करती मैं गुणगान।
नवल सृजन करती रहूँ, ऐसा दो वरदान।।
2-सही लेखनी खुद करे,सच की थामे डोर।
सुनने को गुणगान वो,बनते कविता चोर।।
3-तुम झूठा गुणगान सुन,मत हो भाव विभोर।
सफल करो खुद लेखनी,बनो न कविता चोर।।

वसंत,सुगंध,साहस


प्रदत्त शब्द-सुगंध,बसंत, साहस

1-बसंत
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घर आँगन सुंदर लगे , आया देख बसंत।
मधुर तान दे कोकिला , खुशियां मिले अनंत।।

2-सुगंध
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पुष्प विविध हैं डोर में , बधे एक ही बंध।
बनते सुंदर हार जब , देते प्रेम सुगंध।।

3-साहस
*********
मुश्किल में आगे बढ़ो , उलझे धागे चीर।
साहस से सब होत है , मन में राखो धीर।।

अनमोल,जीवन,सत्कार


प्रदत्त विषय-जीवन, सत्कार,अनमोल
1-अनमोल
अभी मौन मुखरित हुआ , लक्ष्य शक्ति अब तोल।
छोड़ो मत उम्मीद तुम , ये जीवन अनमोल।।

2-जीवन
जीवन तो शतरंज है , चलते रहते दांव।
कौन किसे कब मात दे , सोच समझ रख पाँव।।

3-सत्कार
जिसके मन सदभावना , वो पाता सत्कार।
निर्मल मन रख आप भी , सदा करे उपकार।।


चंदन,वंदन,अभिनंदन


प्रदत्त शब्द-चंदन,वंदन,अभिनंदन
**********************
1-चंदन
माथे पर चंदन सजे , तन मन शीतल होय।
महके सदा बयार बन , मन खुशबू में खोय।।

2-वंदन
दया निधे!वंदन करूँ , जले खुशी का दीप।
कलुषित मन अब दूर हो , करुणा, प्रेम समीप।।

3-अभिनंदन
तुम रक्षक इस देश के , तुझ पर है अभिमान।
अभिनंदन करते सभी , रहे अमर बलिदान।।

बनती ठनती बात से


बनती ठनती बात से,जब भी बोलो तोल।
नहीं किसी का दिल दुखे,वाणी हो अनमोल।।

सूरज


विषय-रवि
रवि से ही संसार में, ऋतु आये ऋतु जाय।
पवन चले पादप उगे,घन श्यामल तन पाय।।

भगवान


विषय-भगवान(प्रभु)
आदि अंत जिसका नहीं,और नहीं है छोर।
फिर भी प्रभु के हाथ में, सबकी जीवन डोर।।

Thursday, 12 December 2019

अतीत


जीते रहे अतीत में,लगे न जीवन खास।
देख पलट के जिंदगी,इतनी नहीं उदास।।

Wednesday, 11 December 2019

बादल लगते डाकिया


बादल लगते डाकिया,जाते सारे  देश।
पाती विरहन की लिए,ज्यों वाहक संदेश।।

कथनी करनी एक हो

कथनी-करनी एक हो,करो न इसमें भेद।
कहते सो करते नहीं,और जताते खेद।।

चिंता रूपी शूल से


चिन्ता रूपी शूल से, हिय में उठती पीर।
इसकी औषधि हैं कहाँ, मन में रखिये धीर।।

जला ज्ञान का दीप


मन का तम जब से छंटा ,जला ज्ञान का दीप।
यह जग तो मिथ्या लगे,मन यह हुआ महीप।।

मन मे हो सद्भाव


मन में हो सद्भावना,करिये नहीं गुरूर।
है खजूर किस काम का,फल, छाया अति दूर।।

समय बड़ा बलवान


फिसल न जाये रेत-सा,समय बड़ा बलवान।
समय कभी रुकता नहीं,जीवन गति पहचान।।

जग में कर्म प्रधान है


शीश झुकाकर क्या घटा,मिलता सबका मान।
जग में कर्म प्रधान हैं,फिर कैसा अभिमान।।

मन का कर श्रृंगार


तन तो काँचा कुम्भ है,कर मन का शृंगार।
सत्य,शील,सदभाव से; त्यागो मनोविकार।।

डाल पात तोड़ो नहीं


डाल-पात तोड़ो नहीं,नहीं सताओ जीव।
पात-पात भगवान हैं,इनसे सभी सजीव।।

पानी की हर बूँद का


पानी की हर बूँद का,मानव कर सम्मान।
आँखे या आकाश हो,रख सबका तू मान।।

शब्दों में रमणीयता


शब्दों में रमणीयता,वाचन में रसधार।
कविता की शोभा गढ़े,अलंकार की धार।।

नारी बन नारायणी


नारी बन नारायणी,मानव बन तू राम।
मात-पिता आशीष हो,घर में चारो धाम।।

चींटी हमको सीख दे


चींटी हमको सीख दे, श्रम का पाठ पढ़ाय।
कारज कितना हो कठिन,करके वो दिखलाय।।

माता है ममतामयी


माता है ममतामयी, पिता ज्ञान की खान।
बहना घर की मान है,भाई होता शान।।

वाणी को विणा बना


वाणी को वीणा बना,मत बेधो बन बाण।
इस जीवन संगीत से,कर सबका कल्याण।।

हौसला


था ये उसका हौसला,बुझी न उसकी आग।
आँधी या तूफान हो,जलता रहा चिराग।।

गागर में सागर


गागर में सागर भरो,छोड़ व्यर्थ का राग।
एक गीत ऐसा गढ़ो, जो लाये अनुराग।।

दोहा


सबकी माता माह नौ,रखे गर्भ में  लाल।
खुशी खुशी पालन करे,कोई नहीं मलाल।।

दोहा


सदा विजय होती वहीं, सत्य करे जब वार।
सत पथ पर तुम भी चलो,कभी न मिलती हार।।

दोहा


झूठ बोलना पाप है,छोड़ कपट का भाव।
राह भले काँटो भरी, बदलो नहीं स्वभाव।।

मन


मन तेरा है बावला,मन दुख का आधार।
जो मन को वश में करे,उसकी नैया पार।।

अनमोल वचन


जो बोया वो काटता,करो न कोई भूल।
सोच मिलेगा फल कहाँ, बोया अगर बबूल।।

दोहा


मानव कभी न छोड़ना,दया धर्म का मूल।
पाप मूल अभिमान है,करना कभी न भूल।।

प्रदूषण


वायु प्रदूषण हो रहा,फैल रहा है रोग।
झेल रहा है फेफड़ा,किससे कहे वियोग।।

फूल


आओ सीखें फूल से,देते खुशी अपार।
पल भर की है जिंदगी,पर सुंदर व्यवहार।।

बेटी पर दोहा


जीवन रूपी राग में,बिटिया है संगीत।
मात-पिता की लाडली, बनकर रहती मीत।।

Tuesday, 10 December 2019

दोहा


विषय-न्याय
क्रंदन करती बेटियां,हमें बचावे कौन।
क्या अपंग है न्याय भी,जो बैठा है मौन।।

दोहा


निर्मलता हो नीर-सी,सदा रहे सद्भाव।
धनाभाव के कारने,बदले नहीं स्वभाव।।

दोहा


मेघ बिना पादप नहीं,नहीं नीर बिन कूप।
गुरु बिना नहीं ज्ञान है,ज्यों बिन सूरज धूप।।

दोहा


रे पुरवइया तुम सुनो,जाना पी के देश।
यहाँ अकेली मैं पिया,देना तुम संदेश।।

बचपन पर दोहा


भोली सूरत सरलता,जीवन था निष्पाप।
बचपन फिर से खोजता,मिटता मन संताप।।

कुण्डलिया


कुण्डलिया

गोरी बाट निरख रही,कर सोलह श्रृंगार।
मिलन चाह उपजे हिया,कब होगा दीदार।।
कब होगा दीदार,चाँद तुम जल्दी आना।
पिया मिलन की आस,देर तुम नहीं लगाना।
सात जनम हो साथ,करू विनती कर जोरी।
लता कहे हर बार,बनूं साजन की गोरी।

कुण्डलिया


कुण्डलिया
गोरी बैठी द्वार पर,पिया बसे परदेश।
कैसे करु श्रृंगार मैं, नहीं मिला संदेश।।
नहीं मिला संदेश,चाँद पिय को तुम लाना।
जाना तुम उस पार, पीर मेरी बतलाना।
करना ये उपकार,जोड़ती कर मैं तोरी।
कहना पी से जाय,खोजती तेरी गोरी।

जय माँ शारदे


हंस वाहिनी शारदे,दो जीवन तुम तार।
विद्या ज्ञान विवेक दो,कर दो नैया पार।।



जय माँ शारदे


रुके राह अज्ञान की,बने सभी विद्वान।
प्रेम ज्योति ऐसी जले,मिट जाये अभिमान।।

जय माँ शारदे


वीणा के सुर छेड़ माँ,निकले वो संगीत।
प्रेम ज्योति फिर से जले,जन जन में हो प्रीत।।



जय माँ शारदे


हंस वाहिनी सरस्वती,आप कला की खान।
कर जोरी विनती करू,दो मुझको तुम ज्ञान।।

जय माँ शारदे


हंस वाहिनी सरस्वती,आप कला की खान।
कर जोरी विनती करू,दो मुझको तुम ज्ञान।।

भक्तों के गोपाल


मुरली राजत अधर पर,मनमोहक मुस्कान।
भक्तों के गोपाल जी,मधुर बजावे तान।।

सत्य वचन

2
पत्थर लेकर हाथ में, मत कीचड़ में फेक।
तुझ पर पड़े न गंदगी,बनकर रह तू नेक।।

सूर्य


सूर्य
******
वसुधा के तुम हो जनक,परमपिता भगवान।
अमर ज्योति के पुंज हो,सभी करे गुणगान।।

दोहा


फूंक फूंक कर रख कदम,काँटा गड़े न पाँव।
जीवन के इस दौड़ में,अभी दूर हैं ठाँव।।

दोहा


धन- दौलत दिन चार के,मत करना अभिमान।
अपने सद व्यवहार को,सच्ची दौलत मान।।

कुण्डलिया


कुण्डलिया
*********
लाली छाई गगन में,दिनकर किरणें संग।
सजी घाट पर आरती,मन भावन है रंग।।
मन भावन है रंग,नैन सूरज जब खोले।
हुई सुहानी भोर,पवन शीतल फिर डोले।
सभी खड़े कर जोर,आरती की ले थाली।
कंचन देती अर्घ,देख सूरज की लाली।।

कुण्डलिया


कुण्डलिया
***********
रवि का सब अर्चन करे,छठ पूजा सत्कार।
यह प्रकाश का पुंज हैं,महिमा अपरंपार।।
महिमा अपरंपार,मिले सुख शान्ति समृद्धि।
छठ पावन त्योहार,दिलाये रिद्धि औ सिद्धि।
कहे लता कर जोर,बहुत सुंदर लगती छवि।
ऊर्जा का संचार,करे जन जन में ये रवि।

दोहा


बुरा देख मत सुन बुरा,कर ले आँखे बंद।
बुरा नहीं तुम बोलना,सच को करो बुलंद।।

दोहा


मैली करो न जिंदगी,लगे न कोई दाग।
अच्छाई स्वीकार कर,बुरी आदतें त्याग।।

दोहा


सज्जन की पहचान हैं, बोले मीठे बोल।
करे बड़ाई खुद नहीं,बोले वाणी तोल।।

दोहा


खिली मालती किरन सह, विमल श्वेत रतनार।
खूब सजी है ये निशा,प्रात दिखे कचनार।।

दोहा


हिंसा को हम त्याग कर,रहें द्वेष से दूर।
पथ अपनाएं प्रेम का,मिले खुशी भरपूर।।

दोहा


क्यो बोले तुम कटु वचन,लेते सब मुख मोड़।
मधुर बोल औषधि रहे,देते रिश्ते जोड़।।

अनमोल वचन पर दोहा


साबुन से तन क्यो मले,मन का मैल उतार।
प्रभु से नाता जोड़ लो,जो जग पालन हार।।

दोहा


प्रेम भाव सम भाव हो,अनुचित बंधन तोड़।
हँसते हँसते हम बढ़े,कदम कदम को जोड़।।

जिंदगी पर दोहा


अंदर से तन्हा रहे,मुख पर रहे गुमान।
जीता झूठी जिंदगी,मन में ले अभिमान।।

दोहा


छूना नहीं अतीत को,फिर दुख दूना होय।
चार दिनों की जिंदगी,नहीं बिताओ रोय।।

दोहा


परहित की रख भावना,जैसे जलता दीप।
धन -दौलत हो प्रेम का, मत रख द्वेष समीप।।

फूल पर दोहा


काँटो बीच गुलाब है,देते मधुर सुगंध।
प्रेम जगत का मूल है,बने नेक संबंध।।

मतलब की दुनियां


पेड़ कहे यों पात से,धीरे छोड़ो शाख।
मतलब की दुनिया सदा,बन जाओगे राख।।

दोहा


कुर्सी की अब दौड़ में,लगी जीत की आस।
अब तो जनता देख कर,करे हास परिहास।।

दोहा


हैं बातो के वो धनी, खाली उनकी जेब।
झूठी उनकी है हँसी, दिल में रहे फरेब।।

दोहा


रहे प्रेम का पालना,बधे अहिंसा डोर।
ममता सा मन भाव हो,सुख उपजे चहुँ ओर।।

बेटियां


उमड़े मन के मेघ घन, मिले नहीं अब चैन।
आजा अब तो लाडली,निर्झर बरसे नैन।।
निर्झर बरसे नैन, सदा बहती जल धारा।
कुटिया है खामोश,अब न कुछ लगता प्यारा।
बेटी हो लाचार,नहीं अब जीवन उजड़े।
इससे ही संसार,प्यार बेटी पर उमड़े।

बेटियों पर कुण्डलिया


नहीं सुरक्षित बेटियां, अब भी हैं लाचार।
विनती सुन माँ शाम्भवी,करो दुष्ट संहार।।
करो दुष्ट संहार,तुम्हीं हे मात भवानी।
आयी तेरी शरण,पीर हरो महारानी।
कहे लता कर जोरि, नहीं पावन धरा रही।
मेरी सुनो पुकार,न्याय हो अन्याय नहीं।

मीत पर दोहा


दुख-सुख में सम भाव हो,सदा रहे वो साथ।
वही हमारा मीत है,छोड़े कभी न हाथ।।

दोहा


मतलब की दुनिया सदा,किस पर हो विश्वास।
यीशू को सूली मिली,गए राम वनवास।।

किस्मत


किस्मत से ज्यादा नहीं, मिलता कहते लोग।
मत बनना नादान तू,सब कर्मो का भोग।।

दोहा


धूप बहुत है राह में,जलती हुई जमीन।
फँसे हुए हैं भीड़ में,लेकर स्वप्न नवीन।।

दोहा


संग्रह कर तू प्रेम-धन,बिके नहीं ये तोल।
कहते संत फकीर सब,ये सबसे अनमोल।।

दोहा


मृदु वाणी मधु-सी लगे,कर्कश वाणी घाव।
हो मुस्कान लुभावनी, हिय उपजे सद्भाव।।

दोहा गीत


सबका मन स्वार्थ भरा,
रखें न परहित भाव।
झोली भरते स्वयं की,
दे दूजे को घाव।

मन में हो शुचि भावना,
छोड़ कपट का भाव।

अपने ही चादर तले,
आप पसारो पाँव।
रहे न मन दुर्भावना,
देते संत सुझाव।

मन में हो शुचि भावना,
छोड़ कपट का भाव।

ये जीवन अनमोल है,
करो नेक बर्ताव।
कर्मयोग निष्काम हो,
सबके संग लगाव।

मन में हो शुचि भावना,
छोड़ कपट का भाव।


Monday, 9 December 2019

दोहा गजल


तन तो कांचा कुम्भ है , कर मन का सिंगार।
सत्य,शील, हो सादगी , त्यागो मनो विकार।।

चोरी भ्रष्टाचार है , दंगा और फसाद,
कैसा आया वक्त ये , है जनता लाचार।

घिसती टांगे न्याय बिन , नहीं मिला इंसाफ,
फाँसी प्रिय लगने लगी , उजड़ा फिर संसार।

नहीं जुर्म साबित हुआ , इससे बड़ा न जुर्म,
ह्रदय हीन ये न्याय है , नहीं सत्य स्वीकार।

टूटा हुआ पहाड़ था , नदियां हुई विलुप्त,
बूढ़ा बरगद सूखता , जीना है दुश्वार।

जहाँ कटोरी थी रखी , वहां दिखी बस प्यास,
टूटा पंछी-पंख था , बैठी रोती नार।

दोहा

कथनी-करनी एक हो,करो न इसमें भेद।
कहते सो करते नहीं,और जताते खेद।।

दोहा

जीवन पथ के मोड़ पर,कभी न मानी हार।
आँधी या बरसात हो,किया ख्वाब साकार।।

दोहा

बादल लगते डाकिया,जाते सारे देश।
पाती विरहन की लिए,ज्यों वाहक संदेश।।

दोहा

शीत, धूप धरती सहे, रहे एक ही भाव।
सहनशील तुम भी बनो,रख्खो एक स्वभाव।।

दोहा

मन का तम जब से छंटा ,जला ज्ञान का दीप।
यह जग तो मिथ्या लगे,मन यह हुआ महीप।।

दोहा

एक डोर में बाँधती,रखती सबका मान।
हम भारत के लोग की,हिंदी है पहचान।।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
बनकर भिक्षुक माँ खड़ी,कैसा हुआ समाज।
खुद के ही दरबार में,हाथ पसारे आज।।
हाथ पसारे आज,बनी है याचक माता।
करती बहुत दुलार,मोल क्यों समझ न पाता।
इस जीवन से सीख, रहेगा कब तक तनकर।
दिल करता आगाह, न जीना ऐसे बनकर।

माँ

छाया बनकर है खड़ी,पावन उसका प्यार।
माँ की महिमा क्या कहूँ,वो हैं अपरम्पार।।
वो हैं अपरम्पार, प्रेम से हमको पाला।
देकर हमको ज्ञान,संस्कारों में ढाला।
होती नैया पार,आशीष माँ का पाया।
माता रहती साथ,सदा ही बनकर छाया।

दोहे

मात-पिता की लाडली,अपने घर की शान।
निश्छल मन की ये परी, है बेटी वरदान।।
घर घर की ये शान है,हम सबका अभिमान।
जीवन है ये प्राण है,कई गुणों की खान।।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
चिड़िया चुगे न खेत को,यहीं समय है चेत।
तुम्हें न पछताना पड़े,समझो ये संकेत।।
समझो ये संकेत,समय की कर रखवारी।
रहे बड़ा बलवान,सभी पर पड़ता भारी।
बदले ये तकदीर,मोल समझे जब दुनिया।
सही समय का ज्ञान,खेत नहिं चुगती चिड़िया।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
मन में हो शुचि भावना,नहीं रहे अभिमान।
सबके हिय तम दूर हो,बनो नेक इंसान।
बनो नेक इंसान,नया होवे  उजियारा।
मन का मैल उतार, मिटेगा तब अँधियारा।
भरो प्रेम का भाव,यहां पर तुम जन जन में।
समरसता सद्भाव,सदा हो सबके मन में।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
जिसका पेट भरा नहीं,बन बैठा मजदूर।
चिंता उसको भूख की,करती हैं मजबूर।।
करती है मजबूर पेट की है लाचारी।
नहीं खर्च को दाम फैली बेरोजगारी।।
जनसंख्या का वार घातक परिणाम इसका।
फिरता वो लाचार पेट भरता नहि जिसका।।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
नारी बन नारायणी,मानव बन तू राम।
मात-पिता आशीष हो,घर में चारो धाम।।
घर में चारो धाम, खुशी की हो फुलवारी।
रहे सदा आबाद, फले जीवन की क्यारी।।
मात-पिता हो संग,लगे ये दुनिया प्यारी।
मत कर तू अपमान,सृष्टि सर्जक है नारी।।

दोहा

था ये उसका हौसला,बुझी न उसकी आग।
आँधी या तूफान हो,जलता रहा चिराग।।

सत्य पर दोहा

सदा विजय होती वहीं, सत्य करे जब वार।
सत पथ पर तुम भी चलो,कभी न मिलती हार।।

विषय-मित्रता

मित्र वही जो साथ निभावे।
डूबी नैया पार लगावे।।
मित्र अगर हो अवसरवादी।
करता जीवन की बरवादी।।

साथी से ही जीवन चहके।
जीवन बगिया उससे महके।।
लाता जीवन में हरियाली।
विखरे ज्यों सबेर की लाली।।

धर्म जाति का भेद न करता।
सच्चा साथी बनकर रहता।।
जैसे हो वैसे अपनाता।
असली मित्र वही कहलाता।।

साया बनकर साथ निभावे।
मुश्किल में ताकत बन जावे।।
हर रिश्तों से ऊपर होता।
गंगा जल-सा पावन होता।।

चौपाई छंद-माँ

सबसे प्यारी जग से न्यारी,
खुशियां देती हमको सारी।
माँ का आँचल है फुलवारी,
खुशियों की रहती किलकारी।

बिन लोरी रोया करती थी,
पलके ना सोया करती थी।
मेरी माँ का रूप सलोना,
मैं हूँ माँ का असली सोना।

माँ दुनियां में सबसे न्यारी,
सींचा करती जीवन क्यारी।
चलना खाना हमें सिखाती,
मंजिल पर हमको पहुंचाती।

हम छंद अगर वो कविता है,
हम लव-कुश तो वह सीता है।
छाया बनकर साथ निभाती,
सबके मन को हैं वो भाती।

चौपाई छंद-पिता

पिता सम नहीं कोई दूजा।
मात-पिता की कर लो पूजा।।
यदि उनकी आशीषें पायें।
हम जीवन भर ही मुस्कायें।।

श्रम करना हमको बतलाया।
दुर्गम पथ चलना सिखलाया।।
पिता बिना हम समझ न पाते।
जीवन पथ पर फिर घबड़ाते।।

 पिता एक उम्मीद रहे हैं।
आस और विश्वास रहे हैं।।
मात–पिता की सेवा कर लो।
फिर जीवन में खुशियां भर लो।।

धरती माता

जग जननी धरती कहलाती।
पानी बिन बंजर बन जाती।।
शीत धूप को सहती रहती।
धरती माता कुछ ना कहती।।

सूरज चीर क्षितिज जब आता।
फिर तरु-पल्लव को झुलसाता।।
कितना पीड़ादायक होता।
देख व्यथा फिर मानव रोता।।

प्रकृति नष्ट ना मानव करता।
फिर विपदा से कभी न  लड़ता।।
जड़ चेतन में जोश जगाते।
सूरज अपना धर्म निभाते।।

बादल बनते हैं जब दुल्हे।
तभी घरों में जलते चुल्हे।।
साज बाज सह लेकर आते।
गरज- गरज कर जल बरसाते।।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
*********
लाली विखरे भोर की,चिड़िया करती शोर।
मंद मंद शीतल हवा,बहती चारो ओर।।
बहती चारो ओर सुबह में रहती हलचल।
नदियां प्रेम प्रवाह सदा बहती है कलकल।
हो सबका कल्याण अगर होगी हरियाली।
मनवा भाव विभोर देख सूरज की लाली।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
**********
ऐसा भोजन कीजिए,होवे नेक विचार।
तन मन को शीतल करे,कभी न हो बीमार।।
कभी न हो बीमार अगर संयम से रहते।
रखते नेक विचार नित योग यदि तुम करते।
सेहत होगी ठीक सुनो कहती हूँ जैसा।
बढ़ता जिससे खून करो भोजन तुम ऐसा।

दोहा

झूठ बोलना पाप है,छोड़ कपट का भाव।
राह भले काँटो भरी, बदलो नहीं स्वभाव।।

दोहा

निर्मलता हो नीर-सी,सदा रहे सद्भाव।
धनाभाव के कारने,बदले नहीं स्वभाव।।     

दोहा

आओ सीखें फूल से,देते खुशी अपार।
पल भर की है जिंदगी,पर सुंदर व्यवहार।।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
जागो अब रजनी गयी,भर लो मन में जोश।
आलस को तुम मात दो,मत खोवो तुम होश।।
मत खोवो तुम होश, समय की कर रखवारी।
नहीं रहे लाचार, फले जीवन की क्यारी।।
मान लता की बात,नहीं श्रम से तुम भागो।
यही समय है चेत,सुबह अब तुम नित जागो।।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
आँखे मन का आइना, सबसे सुंदर अंग।
आँखे सब कुछ बोलती,भरती यही उमंग।।
भरती यही उमंग हमे दुनिया दिखलाती।
जब भी करती बात मौन वाणी हो जाती।।
नयनन प्रेम समाय हिया में हरदम राखे।
जब हो मन में पीर नीर भर ले तब आंखे।।

कुण्डलिया

कुण्डलिया

गोरी बाट निरख रही,कर सोलह श्रृंगार।
मिलन चाह उपजे हिया,कब होगा दीदार।।
कब होगा दीदार,चाँद तुम जल्दी आना।
पिया मिलन की आस,देर तुम नहीं लगाना।
सात जनम हो साथ,करू विनती कर जोरी।
लता कहे हर बार,बनूं साजन की गोरी।

जय माँ शारदे

हे माँ नव उत्थान दो, नव गति, नव लय तान।
लता करे नित आरती,उर में उपजे ज्ञान।।

अभिमान पर दोहा

रुके राह अज्ञान की,बने सभी विद्वान।
प्रेम ज्योति ऐसी जले,मिट जाये अभिमान।।

प्रदूषण पर दोहा

वायु प्रदूषण हो रहा,फैल रहा है रोग।
झेल रहा है फेफड़ा,किससे कहे वियोग।।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
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लाली छाई गगन में,दिनकर किरणें संग।
सजी घाट पर आरती,मन भावन है रंग।।
मन भावन है रंग,नैन सूरज जब खोले।
हुई सुहानी भोर,पवन शीतल फिर डोले।
सभी खड़े कर जोर,आरती की ले थाली।
कंचन देती अर्घ,देख सूरज की लाली।।

जय श्री राम

वन वन भटके राम
*******************
ऐसे सुत श्री राम थे,नहीं लिए सुख धाम।
आज्ञा का पालन किये,वन वन भटके राम।।
सीता जी की खोज में,वन वन भटके राम।
रावण का संहार कर,लौटे अपने धाम।।

दोहा

धन- दौलत दिन चार के,मत करना अभिमान।
अपने सद व्यवहार को,सच्ची दौलत मान।।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
ऐसे भी कुछ जगत में,जो मतलब से साथ।
डूबी नैया देख के,छुड़ा लिया है हाथ।।
छुड़ा लिया है हाथ,साथ वो नहीं निभाते।
दुख में जो दे साथ,वही साथी कहलाते।
कोई सच्चा मीत, बताओ परखू कैसे।
हरपल दे जो साथ,मीत ढूंढू में ऐसे।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
तुलसी आँगन में जहाँ, बनते बिगड़े काम।
सेवन करते पात का,नहीं रोग फिर धाम।।
नहीं रोग फिर धाम,सदा रहती खुशहाली।
औषधि से भरपूर,रहे इसकी हरियाली।
आँगन तुलसी देख,हिया कंचन की हुलसी।
देती नित जलधार,वृक्ष औषधि है तुलसी।

कुण्डलिया

कुण्डलिया
मानव तन हमको मिला,करने को कुछ काम।
कर्मयोग निष्काम हो,होगा जग में नाम।।
होगा जग में नाम,मान सम्मान मिलेगा।
सदा करो सत्कर्म,खुशी का दीप जलेगा।
करना नहीं कुकर्म,नहीं बनना तुम दानव।
यही लता की सीख, नेक बनना तुम मानव।

कुछ दोहे

प्रदत्त विषय-लेखनी, गुणगान,कविता चोर
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1-विनती सुन माँ शारदे,करती मैं गुणगान।
नवल सृजन करती रहूँ, ऐसा दो वरदान।।
2-सही लेखनी खुद करे,सच की थामे डोर।
सुनने को गुणगान वो,बनते कविता चोर।।
3-तुम झूठा गुणगान सुन,मत हो भाव विभोर।
सफल करो खुद लेखनी,बनो न कविता चोर।।

दोहा गजल

दोहा गजल 

1-सस्ता होता आदमी,महँगा है बाजार।
अब ऐसे हालात में,कैसे हो त्योहार।
2-मरी पड़ी संवेदना,नहीं रहा जज्बात,
बात बात पर हो गयी,बहुत बड़ी तकरार।
3-मानव मन दूषित हुआ,चलता गिरगिट चाल,
भरा छलावा आजकल,ये कैसा संसार।
4-हिंसा दहशत फूट है,रहती धुँधली शाम,
भटक रही इंसानियत,नहीं नेक किरदार।
5-जीवन ये अनमोल है,तोल न कौड़ी भाव,
नहीं करो अभिमान तुम,अपने मद को मार।

चौपाई छंद-सरस्वती वंदना

सरस्वती वंदना
चौपाई छंद
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कर जोरी विनती मैं करती।
जग के दुख तू माता हरती।।
सकल विघ्न माँ हरती रहना।
सबके मन को निर्मल करना।।

सबके हिय में उपजे अब सुख।
निकट किसी के आवे ना दुख।।
सुख समृद्धि सम्मान मिले माँ।
नित जीवन में खुशी मिले माँ।।

कृपा आपकी जो मिल जाती।
तभी छंद कुछ मैं लिख पाती।।
लय छन्दों का ज्ञान करा दो।
जन जीवन में ज्योति जगा दो।।

दिव्य रूप माँ ज्ञानदायनी।
तिमिर मिटाओ हंस वाहिनी।।
बुद्धिहीन अब नहीं रहूँ मैं।
भावों का विस्तार करू मैं।।


बालश्रम पर कुछ दोहे

1-बचपन से ये दूर है,बन बैठे मजदूर।
लाचारी ये पेट की,करती हैं मजबूर।।
2-जिन हाथों में चाहिए,पुस्तक कलम दवात।
वो गारो में सन रहा,कैसे ये हालात।।
3-होते ईश स्वरूप जो,क्यो इतने मजबूर।
श्रम शोषण से ये बचे,नहीं बने मजदूर।।

गंगा पर दोहे

गंगा
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1-गंगा, यमुना,सरस्वती,तेरा पावन धाम।
करू अर्चना आपकी,मैं तो सुबहो शाम।।
2-गंगा जीवनदायिनी,सकल जगत की मात।
दृश्य मनोरम जब मिले ;सूरज,नदी प्रभात।।
3-गंगा जल अमृत(अमरित)बने,जन जन की ये आस।
मिलकर रोके गंदगी,मन में ले विश्वास।।

मन का मीत

23/11/2019
शनिवार
कुण्डलिया

मेरा सच्चा प्यार है,मेरे मन का मीत।
सात जनम का साथ है,बनी रहे ये प्रीत।।
बनी रहे ये प्रीत,बहे सुख की अब नदियां।
कदम पड़े जिस राह,खिले फूलों की कलियां।
तुमसे ही अब नेह, हृदय में रहे बसेरा।
यही प्रेम संदेश,सदा रहना तू मेरा।

किताब पर दोहा

किताब
अक्षर अक्षर जोड़ कर,सुंदर सजी किताब।
दूर करे अज्ञानता,पूरे कर दे ख्वाब।।

किस्मत पर दोहा

कुछ दोहे

कुर्सी के बिन अब नहीं,मिलता है आराम।
नेताओं की रात-दिन,होती नींद हराम।।

देख तमाशा चुप हुई,बैठी जनता मौन।
उनको चिंता देश की,कुर्सी बैठे कौन।।

चौपाई छंद

देख सृष्टि सर्जक है नारी,
नहीं कभी हिम्मत है हारी।
सात जनम की कसम निभाती,
बाबुल छोड़ पिया घर जाती।

मर्यादा गहना बन सजती,
जीवन को सुरभित वो करती।
संस्कार से ही घर बनता,
नारी से ही रिश्ता सजता।

माता बनकर आशीष दिया,
 पाल पोश कर वो बड़ा किया।
आँचल तो है सुख की छइया,
चार धाम है माँ के पइया।

नारी को सम्मान मिले जब,
खुशियों का फिर फूल खिले तब।
सदा लाज नारी की रखना,
लज्जा ही नारी का गहना।


कुण्डलिया

उमड़े मन के मेघ घन, मिले नहीं अब चैन।
आजा अब तो लाडली,निर्झर बरसे नैन।।
निर्झर बरसे नैन, सदा बहती जल धारा।
कुटिया है खामोश,अब न कुछ लगता प्यारा।
बेटी हो लाचार,नहीं अब जीवन उजड़े।
इससे ही संसार,प्यार बेटी पर उमड़े।

दोहा गजल

दिनांक-01/12/2019
दोहा गजल
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साँप-नेवला मत बनो , चलो न गिरगिट चाल।
मानव मन दूषित रहे ,  ऐसा रोग न पाल।।

नफरत के बाजार में , नकली है व्यवहार,
मरी पड़ी संवेदना , हुआ हाल बेहाल।

अपना  घर खुद तोड़कर , खुद ही करें विनाश,
नफरत है दिल में भरी , कैसा है ये काल।

कड़ी धूप बरसात में , मिले नहीं आराम,
 लाचारी में पेट की , बुरा सभी का हाल।

तनहा है ये जिंदगी , पल पल रहे उदास,
सब किस्मत का खेल है , या दुश्मन की चाल।

बरगद बूढ़ा हो गया , नहीं मिले अब छाँव,
सोचें दादा गाँव के , कहाँ लगे चौपाल।


अनमोल वचन

संग्रह कर तू प्रेम-धन,ये होता अनमोल।
भाई संग न बंट सके,नहीं तराजू तोल।।               

कुछ दोहे

दहशत में हैं बेटियां , कौन बचावे लाज।
ये कानून अपंग है , रोवे बेटी आज।।

हो देवी तुम न्याय की , क्यों बैठी हो मौन।
धरा त्रस्त है पाप से , इसको रोके कौन।।

आज शब्द भी मौन है , क्यों बेटी लाचार।
मरी पड़ी संवेदना , नहीं नेक व्यवहार।।


आज के हालात पर एक दोहा

हनन किया विश्वास का,करके पंख विहीन।
लाज भंग कर हत हुई,बेटी एक कुलीन।।